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स्कन्दपुराणम्/खण्डः ४ (काशीखण्डः)/अध्यायः ०७३ | |
विश्वेशं माधवं ढुण्ढिं दण्डपाणिं च भैरवम्। वन्दे काशीं गुहां गंगा भवानीं मणिकर्णिकाम्।। |
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काशी खंड में स्थित 42 महालिंग |
इन महालिंगो (काशी रत्न) की जानकारी उन्हीं के पास भेजें जो भगवान के भक्त एवं आस्थावान हों। |
क्रम | प्रथमा | द्वितीया | तृतीया |
1 | ॐ कारेश्वर | अमृतेश्वर | शैलेश्वर |
2 | त्रिलोचनेश्वर | तारकेश्वर | संगमेश्वर |
3 | आदि महादेव | ज्ञानेश्वर | स्वर्लिनेश्वर |
4 | कृत्तिवासेश्वर | करुणेश्वर | मध्यमेश्वर |
5 | रत्नेश्वर | मोक्षद्वारेश्वर | हिरण्यगर्भेश्वर |
6 | चंद्रेश्वर | स्वर्गद्वारेश्वर | ईशानेश्वर |
7 | केदारेश्वर | ब्रह्मेश्वर | गोप्रेक्षेश्वर |
8 | धर्मेश्वर | लाङ्गलेश्वर | वृषभध्वजेश्वर |
9 | वीरेश्वर | वृद्धकालेश्वर | उपशान्तेश्वर |
10 | कामेश्वर | वृषेश्वर | ज्येष्ठेश्वर |
11 | विश्वकर्मेश्वर | चण्डीश्वर | निवासेश्वर |
12 | मणिकर्णिकेश्वर | नंदिकेश्वर | शुक्रेश्वर |
13 | अविमुक्तेश्वर | महेश्वर | व्याघ्रलिंगेश्वर |
14 | आत्माविश्वेश्वर | ज्योतिरूपेश्वर | जम्बुकेश्वर |
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भगवान स्कंद देव महर्षि अगस्त से कहते हैं - इस क्षेत्र में ये सभी महालिंग विराजमान हैं तथापि कलिकाल में प्रभावित हो गए हैं। जो ईश्वर के प्रति सदा भक्ति रखते हैं वही ऐसे महालिंगो को जान पाते हैं। जिनके नाम उच्चारण मात्र से कलि-कल्मष का छय हो जाता है और अन्य कोई इनको नहीं जान सकता। कलि काल के पाप बुद्धि लोगों के समक्ष कदापि इन महालिंगो का वर्णन नहीं करना चाहिए। जो इनकी आराधना करते हैं वह कभी संसार पथ के पथिक नहीं होते। यही अनुपम काशी रत्न भंडार है। इसे जिस किसी से नहीं कहना चाहिए। |
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