Siddheshwari

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।। देवी सिद्धिदात्रि ।।

भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मान्तर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है।
नवदुर्गा आयुर्वेद : एक मत यह कहता है कि ब्रह्माजी के दुर्गा कवच में वर्णित नवदुर्गा नौ विशिष्ट औषधियों में हैं।
सिद्धिदात्री (शतावरी) : दुर्गा का नौवाँ रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं। यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि । सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी ॥
देवी सिद्धिदात्री, जिन्हें सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवताओं, दानवों आदि द्वारा पूजा जाता है, उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल हैं, सभी सिद्धियों के दाता और उनके ऊपर विजय पाने वाली माँ सिद्धिदात्री मुझे शुभता अर्थात् कल्याण प्रदान करें।

माँ दुर्गा की नौवीं शक्ति का नाम सिद्धिदात्री हैं। ये सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। नवरात्र के नौवें दिन इनकी उपासना की जाती है। मान्यता है कि इस दिन शास्त्रीय विधि-विधान और पूर्ण निष्ठा के साथ साधना करने वाले साधक को सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।इनका वाहन सिंह है और यह कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। नवरात्र में यह अन्तिम देवी हैं। हिमाचल के नन्दापर्वत पर इनका प्रसिद्ध तीर्थ है

माना जाता है कि इनकी पूजा करने से बाकी देवीयों कि उपासना भी स्वंय हो जाती है।

यह देवी सर्व सिद्धियाँ प्रदान करने वाली देवी हैं। उपासक या भक्त पर इनकी कृपा से कठिन से कठिन कार्य भी आसानी से संभव हो जाते हैं। अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व आठ सिद्धियाँ होती हैं। इसलिए इस देवी की सच्चे मन से विधि विधान से उपासना-आराधना करने से यह सभी सिद्धियां प्राप्त की जा सकती हैं।

कहते हैं भगवान शिव ने भी इस देवी की कृपा से यह तमाम सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

इस देवी के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।

विधि-विधान से नौंवे दिन इस देवी की उपासना करने से सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। इनकी साधना करने से लौकिक और परलौकिक सभी प्रकार की कामनाओं की पूर्ति हो जाती है। मां के चरणों में शरणागत होकर हमें निरन्तर नियमनिष्ठ रहकर उपासना करनी चाहिए। इस देवी का स्मरण, ध्यान, पूजन हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।

नवदुर्गा: सनातन धर्म में भगवती माता दुर्गा जिन्हे आदिशक्ति जगत जननी जगदम्बा भी कहा जाता है, भगवती के नौ मुख्य रूप है जिनकी विशेष पूजा व साधना नवरात्रि के दौरान और वैसे भी विशेष रूप से करी जाती है। इन नवों/नौ दुर्गा देवियों को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं और सभी परम भगवती दुर्गा जी से ही प्रकट होती है।

दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नाङ्कित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं-

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

काशी खंड ने नवरात्रि के दौरान नौ गौरी एवं नौ दुर्गा देवी यात्रा निर्धारित की है जहां भक्तों को नवरात्रि के सभी नौ दिनों में दुर्गा देवी के विभिन्न रूपों की पूजा करने का आह्वान किया गया है।
शारदीय नवरात्रि के 9वें दिन सिद्धेश्वरी देवी की पूजा करते हैं।
मां दुर्गा का नौवां स्वरूप सिद्धि धात्री हैं। ये अपने भक्तों को हर प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं। विभिन्न पुराणों में कई प्रकार की सिद्धियों का उल्लेख मिलता है। देवी पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने उनके आशीर्वाद से सभी सिद्धियों को प्राप्त किया। उनके आधे शरीर ने देवी का रूप धारण कर लिया। इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है।
मां सिद्धि धात्री के चार हाथ हैं। इनका वाहन सिंह है। वह कमल के फूल पर विराजमान हैं। उनके नीचे वाले दाहिने हाथ में चक्र, ऊपर वाले दाहिने हाथ में गदा/बग, नीचे वाले बाएं हाथ में शंख और ऊपर वाले बाएं हाथ में कमल का फूल है।
इनके भक्त दु:खों से मुक्त हो जाते हैं और संसार के समस्त सुखों को भोगकर मोक्ष को प्राप्त होते हैं।

Kashi Khand has described Nau Gauri and Nau Durga Devi Yatras during Navratri where devotees are called upon to worship different forms of Goddess Durga on all the nine days of Navratri.
Siddheshwari is worshiped on the 9th day of Sharadiya Navratri.
Siddhi Dhatri is the ninth form of Maa Durga. She bestows all kinds of achievements to her devotees. Many types of achievements are mentioned in different Puranas. According to Devi Purana, Lord Shiva attained all siddhis by her blessings. Half of his body took the form of a goddess. That's why he is also called Ardhanarishwar.
Mother Siddhi Dhatri has four hands. The lion is his conveyance. He is seated on a lotus flower. He has chakra in his lower right hand, mace/bug in upper right hand, conch shell in lower left hand and lotus flower in upper left hand.
His devotees become free from sorrows and attain salvation by enjoying all the pleasures of the world.

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