Krodhan Bhairav
क्रोधन भैरव, कामाख्या मंदिर - काशी
काशी में क्रोधन भैरव मां कामाख्या देवी मंदिर के गर्भगृह के भीतर है....
क्रोध भैरव ध्यान व स्वरूप
भगवान भैरव के इस रूप का रंग नीला होता है तथा इनकी सवारी गरुड़ होती है। भगवान शिव के भाति ही क्रोध भैरव की भी तीन आंखे होती है तथा ये दक्षिण और पश्चिम के स्वामी माने जाते है। काल भैरव के इस रूप की पूजा करने पर सभी प्रकार की मुसीबतो और परेशानियों से मुक्ति मिलती है तथा व्यक्ति में इन मुसीबतो एवं परेशनियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। इनका नक्षत्र रोहिणी और रत्न मोती है। क्रोध भैरव का पत्नि वैष्णवी है और इनका मुख्य मंदिर तमिलनाडु के थिरुविसन्नलूर में है।
॥ क्रोधभैरव ध्यानम् ॥
उद्यद्भास्कररूपनिभन्त्रिनयनं रक्ताङ्ग रागाम्बुजं। भस्माद्यं वरदं कपालमभयं शूलन्दधानं करे॥
नीलग्रीवमुदारभूषणशतं शन्तेशु मूढोज्ज्वलं। बन्धूकारुण वास अस्तमभयं देवं सदा भावयेत्॥
अष्ट भैरव-
भैरव शिवजी के ही प्रतिरूप हैं। वस्तुत: शिवजी और भैरव में कोई अन्तर नहीं है। अत: भैरव की उपासना भी शिवजी की उपासना के समान फल देने वाला है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है –
भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥
भैरव के स्वरूप : -
श्री भैरव के शरीर का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएँ हैं जिनमें वे त्रिशूल, खड्ग, खप्पर तथा नरमुण्ड धारण करते हैं। अन्य मतानुसार वे एक हाथ में मोर पंखों का चंवर भी धारण करते हैं। उनका वाहन श्वान (कुत्ता) है। उनकी वेशभूषा लगभग शिवजी के समान है। शरीर पर भस्म, मस्तक पर त्रिपुण्ड, बाघम्बर धारण किए, गले में मुण्ड माला और सर्पो से शोभायमान रहते हैं। भैरव श्मशान वासी हैं। ये भूत-प्रेत योगिनियों के अधिपति हैं। भक्तों पर स्नेहवान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। हर प्रकार के कष्टों को दूर करके बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करने के कारण इनकी विशेष प्रसिद्धि है।
श्री भैरव के अन्य रूपों में ‘महाकाल भैरव’ तथा ‘बटुक भैरव’ मुख्य हैं।
असिताङ्गोरुरुश्चण्डः क्रोधश्चोन्मत्तभैरवः। कपालीभीषणश्चैव संहारश्चाष्टभैरवम् ॥
अष्ट प्रधान भैरव के रूप में जिन आठ नामों की प्रसिद्धि है वे इस प्रकार हैं-
- असिताङ्ग भैरव,
- रूरू भैरव
- चण्ड भैरव,
- क्रोधन भैरव,
- उन्मत्त भैरव,
- भयंकर (भीषण) भैरव,
- कपाली भैरव,
- संहार भैरव,
शिवजी के प्रकारान्तर से निम्न नौ स्वरूप भी भैरव के माने जाते हैं
- क्षेत्रपाल,
- दण्डपाणि,
- नीलकण्ठ,
- मृत्युञ्जय,
- मंजुघोष,
- ईशान,
- चण्डेश्वर,
- दक्षिणामूर्ति,
- अर्द्धनारीश्वर
भगवान भैरव के मुख्यतः आठ स्वरूप है जिन्हे अष्ट भैरव कहते हैं। उनके इन आठो स्वरूपों को पूजने से वे अपने भक्तो पर प्रसन्न होते है तथा उन्हें अलग-अलग फल प्रदान करते है।
अष्ट भैरव का ध्यान स्तोत्र इस प्रकार है-
अष्ट भैरव ध्यानस्तोत्रम्
भैरवः पूर्णरूपोहि शङ्करस्य परात्मनः। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिताः शिवमायया ॥
ॐ हं षं नं गं कं सं खं महाकालभैरवाय नमः ।
नमस्कार मन्त्रः –
ॐ श्रीभैरव्यै, ॐ मं महाभैरव्यै, ॐ सिं सिंहभैरव्यै,
ॐ धूं धूम्रभैरव्यै, ॐ भीं भीमभैरव्यै, ॐ उं उन्मत्तभैरव्यै,
ॐ वं वशीकरणभैरव्यै, ॐ मों मोहनभैरव्यै ।
॥ अष्टभैरव ध्यानम् ॥
असिताङ्गोरुरुश्चण्डः क्रोधश्चोन्मत्तभैरवः ।
कपालीभीषणश्चैव संहारश्चाष्टभैरवम् ॥
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