Sthanu Mahalinga (स्थाणु महालिंग - कुरुक्षेत्र, काशी)

0

Sthanu Mahalinga

स्थाणु महालिंग - कुरुक्षेत्र, काशी

स्थाणु :- संज्ञा पुं॰ [सं॰] : खंभा; स्तंभ, शिव का एक नाम, स्थिर वस्तु

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_१_(माहेश्वरखण्डः)/अरुणाचलमाहात्म्यम्_२/अध्यायः २
कुरुक्षेत्रमिति स्थानं भवते विनिवेदितम् । यत्र स्थाणुप्रिया देवी देवः स्थाणुसमाह्वयः ॥३४॥
नंदी कहते हैं : आपसे कुरूक्षेत्र नामक पवित्र स्थान का वर्णन किया गया है। वहां देवी स्थाणुप्रिया हैं और भगवान स्थाणु कहलाते हैं।

मूल (थानेसर, कुरुक्षेत्र) : स्थाणु महादेव मंदिर, यानी शिव का स्थान। धर्मग्रंथों और इतिहास के पन्नों पर स्थाणु तीर्थ का उल्लेख सदियों से नहीं, बल्कि युग युगांतर से है। स्थाणु, स्थाणीश्वर, स्थाणेश्वर का अपभ्रंश ही अब थानेसर है। महाभारत एवं पुराणों में वर्णित कुरुक्षेत्र का यह पावन तीर्थ थानेसर शहर के उत्तर में स्थित है। वामन पुराण में इसे स्थाणुतीर्थ कहा गया है जिसके चारों ओर हजारों शिवलिंग है जिनके दर्शन मात्र से ही व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है। कहा जाता है कि स्वयं प्रजापति ब्रह्मा ने यहां शिवलिंग की स्थापना की थी। वामन पुराण में स्थाणु तीर्थ के चारों और अनेक तीर्थो का वर्णन आता है। इस तीर्थ के चारों ओर विस्तृत एक वट वृक्ष का उल्लेख मिलता है। स्थाणु तीर्थ के नाम पर ही वर्तमान थानेसर नगर का नामकरण हुआ जिसे प्राचीनकाल में स्थाण्वीश्वर कहा जाता था। थानेसर के वर्धन साम्राज्य के संस्थापक पुष्पभूति ने अपने राज्य श्रीकंठ जनपद की राजधानी स्थाण्वीश्वर नगर को ही बनाया था। हर्षवर्धन के राज कवि बाण भट्ट के द्वारा रचित हर्षचरितम् महाकाव्य में स्थाण्वीश्वर नगर के सौंदर्य का अनुपम चित्रण किया है।

यही थानेसर करीब 1400 साल पहले अंतिम हिंदू सम्राट हर्षवर्धन की राजधानी रहा। यहां वर्धनवंश के शासनकाल के दौरान ही चीन के इतिहासकार ह्वेनसांग कुरुक्षेत्र आए थे। उन्होंने यहां 100 देव मंदिरों और भगवान शिव के इस भव्य एवं समृद्ध मंदिर का भी उल्लेख किया था, जिसमें अकूत संपत्ति हीरे जवाहरात और सोना,चांदी था। इस उल्लेख के करीब 400 साल बाद, यानी सन 1014 में विदेशी आततायी महमूद गजनी ने भारत के जिन प्रमुख मंदिरों को लूटा, उनमें प्रमुख मंदिर थानेसर का यह शिव मंदिर भी था। थानेसर के इस मंदिर की लूट का उल्लेख इतिहास के पन्नों पर दर्ज है।

कुरुक्षेत्र तीर्थ काशी : स्कंद पुराण काशीखंड का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि ब्रह्मांड के समस्त तीर्थ अपने मूल में स्थित देवताओं के साथ काशी में वास करते हैं। यह पुराणों का वचन है। उसी क्रम में थानेसर कुरुक्षेत्र से भगवान स्थाणु, कुरुक्षेत्र तीर्थ के साथ काशी में स्वयंभू प्राकट्य हैं। काशी में स्थित यह कुरुक्षेत्र तीर्थ मूल में स्थित तीर्थ से करोड़ो गुना ज्यादा फल देने वाला है। भगवान वेदव्यास ने स्कंद पुराण काशी खंड में इनका वर्णन किया है। इसके साथ ही मूल में भगवान स्थाणु के साथ कुरुक्षेत्र कुंड जो मूल में स्थित है वह भी काशी में स्वयंभू रूप से प्राकट्य हैं।

कुरुक्षेत्र तीर्थ, काशी की वर्तमान स्थिति : स्कंदपुराण काशी खंड का अध्ययन करने पर यह पता चलता है कि यह तीर्थ थानेश्वर कुरुक्षेत्र से काशी में स्वयंभू प्राकट्य है। पौराणिक संदर्भ होते हुए भी यह तीर्थ आज उपेक्षित है। इसके चारों ओर लोगों का कब्जा और अतिक्रमण हो चुका है। कुंड जल भी प्रदूषित हो गया है। द्वापर युग में कुरुक्षेत्र ही महातीर्थ है। काशी वासियों का यह सौभाग्य है कि ब्रह्मांड के समस्त काशी में स्वयंभू रूप से प्राकट्य है। इन तीर्थों का संरक्षण प्रत्येक काशी वासियों तथा शासन का कार्य है।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

।। सर्वलिंगमयी काशी सर्वतीर्थेकजन्मभूः ।।
सर्व लिंग रूप काशी समस्त तीर्थों का उद्गम स्थल है।

स्थाणुर्नाम महालिंगं देवदेवस्य मोक्षदम् । कुरुक्षेत्रादिहोद्भूतं कलाशेषोस्ति तत्र वै ।।

तदग्रे सन्निहत्याख्या महापुष्करिणी शुभा । लोलार्क पश्चिमे भागे कुरुक्षेत्रस्थली तु सा ।।

तत्र स्नातं हुतं जप्तं तप्तं दत्तं शुभार्थिभिः । कुरुक्षेत्राद्भवेत्सत्यं कोटिकोटिगुणाधिकम् ।।

मोक्षदायक महान् देवों के देव स्थाणु का लिंग, कुरूक्षेत्र से यहाँ उत्पन्न हुआ है। उसका केवल सोलहवाँ भाग ही वहाँ विद्यमान है। इसके सामने लोलार्क के पश्चिमी भाग में सन्निहत्या नामक महान भव्य पुष्करिणी (पवित्र झील) है। यह पवित्र स्थान कुरुक्षेत्रस्थली है। कल्याण चाहने वालों द्वारा वहां जो भी पवित्र अनुष्ठान किया जाता है, जैसे कि पवित्र स्नान, प्रसाद, जप, तपस्या और मौद्रिक उपहार, वह वास्तव में कुरुक्षेत्र की तुलना में करोड़ों-करोड़ों गुना अधिक लाभदायक होगा।



मूल कुरुक्षेत्र में स्थित तीर्थ को यहां देखें : CLICK HERE


कुरुक्षेत्र, काशी में स्थित तीर्थ को यहां देखें : CLICK HERE


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)