Pritikeshwar (प्रीतिकेश्वर)

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Pritikeshwar

प्रीतिकेश्वर

प्रीति के पति महर्षि पुलस्त्य द्वारा काशी में स्थापित लिंग पुलस्त्येश्वर : यहाँ देखें

महर्षि पुलस्त्य ब्रह्मा के मानसपुत्र है। पुलस्त्य की संध्या, प्रतीची और प्रीति आदि कई स्त्रियाँ थीं, और दत्तोलि आदि कई पुत्र थे। यही दत्तोलि स्वायम्भुव मन्वन्तर में अगस्त्य नाम से प्रसिद्ध हुए। उन्हीं की एक पत्नी हविर्भू से विश्रवा हुए थे जिनके पुत्र थे कुबेर, रावण आदि हुए। ये योग विद्या के आचार्य माने जाते हैं।

ऋषि पुलस्त्य ने ही देवर्षि नारद को वामन पुराण की कथा सुनायी है। जब पराशर क्रुद्ध होकर राक्षसों के नाश के लिये एक महान् यज्ञ कर रहे थे तब वशिष्ठ के परामर्श से पुलस्त्य का अनुरोध मानकर उन्होंने यज्ञ बन्द कर दिया, जिससे महर्षि पुलस्त्य उन पर अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी कृपा और आशीर्वाद से समस्त शास्त्रों का पारदर्शी बना दिया।

महर्षि पुलस्त्य की पत्नी प्रीति द्वारा स्थापित शिवलिंग काशी में प्रीतिकेश्वर महादेव के नाम से विख्यात है। पुलस्त्य की पत्नी प्रीति संसार में प्रीति अर्थात हर्ष और आनंद का संचार करती हैं। इनका यही दायित्व है।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

तत्सन्निधौ प्रीतिकेशस्तत्र प्रीतिर्मम प्रिये । तत्रोपवासादेकस्मात्फलमब्दशताधिकम् ।।
एकं जागरणं कृत्वा प्रीतिकेश उपोषितः । गणत्वपदवी तस्य निश्चिता मम पर्वणि ।।
..इसके निकट ही प्रीतिकेश्वर है । हे मेरे प्रिय, मैं उसमें आनंद लेता हूं। वहां किये गये एक ही व्रत का फल सौ वर्ष से भी अधिक समय तक रहता है। यदि मेरे पर्व (अर्थात् शिवरात्रि) के दौरान कोई भक्त प्रीतिकेश्वर में व्रत रखता है और जागरण करता है, तो यह निश्चित है कि उसे गण का पद प्राप्त होता है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_१००
॥ एकादश आयतन यात्रा 
अन्या यात्रा प्रकर्तव्यैका दशायतनोद्भवा ॥६२ ॥
आग्नीध्र कुंडे सुस्नातः पश्येदाग्नीध्रमीश्वरम् ॥ उर्वशीशं ततो गच्छेत्ततस्तु नकुलीश्वरम् ॥६३॥
आषाढीशं ततो दृष्ट्वा भारभूतेश्वरं ततः ॥ लांगलीशमथालोक्य ततस्तु त्रिपुरांतकम् ॥ ६४ ॥
ततो मनःप्रकामेशं प्रीतिकेशमथो व्रजेत् ॥ मदालसेश्वरं तस्मात्तिलपर्णेश्वरं ततः ॥ ६५ ॥
यात्रैकादशलिंगानामेषा कार्या प्रयत्नतः॥ इमां यात्रां प्रकुर्वाणो रुद्रत्वं प्राप्नुयान्नरः ॥ ६६॥


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प्रीतिकेश्वर महादेव का मंदिर साक्षी विनायक के पीछे, डी 10/8 पर स्थित है। पीतल वाली दुकान से रास्ता है।
The temple of Pritikeshwar Mahadev is situated at D.10/8, behind Sakshi Vinayak. There is a way from the brass shop.


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी



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