Balram
सङ्कर्षण, बलराम, दाऊ
दर्शन महात्म : बलराम जयंती - भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, षष्ठी
श्रीमद् भागवतम
वासुदेव: सङ्कर्षण: प्रद्युम्न: पुरुष: स्वयम् । अनिरुद्ध इति ब्रह्मन् मूर्तिव्यूहोऽभिधीयते ॥
स विश्वस्तैजस: प्राज्ञस्तुरीय इति वृत्तिभि: । अर्थेन्द्रियाशयज्ञानैर्भगवान् परिभाव्यते ॥
अङ्गोपाङ्गायुधाकल्पैर्भगवांस्तच्चतुष्टयम् । बिभर्ति स्म चतुर्मूर्तिर्भगवान् हरिरीश्वर: ॥
हे ब्राह्मण शौनक! वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न तथा अनिरुद्ध—ये भगवान् के साक्षात् अंशों (चतुर्व्यूह) के नाम हैं। मनुष्य भगवान् की कल्पना जाग्रत, सुप्त तथा सुषुप्त अवस्थाओं में कर सकता है, जो क्रमश: बाह्य वस्तुओं, मन तथा भौतिक बुद्धि के माध्यम से कार्य करती हैं। एक चौथी अवस्था भी है, जो चेतना का दिव्य स्तर है और शुद्ध ज्ञान के लक्षण वाली है। इस प्रकार भगवान् हरि चार साकार अंशों (मूर्तियों) के रूप में प्रकट होते हैं जिनमें से हर अंश प्रमुख अंग, गौण अंग, आयुध तथा आभूषण से युक्त होता है। इन स्पष्ट स्वरूपों से भगवान् चार अवस्थाओं को बनाये रखते हैं।
स्कन्दपुराण : काशीखण्ड
संकर्षणः समर्च्योत्र शंखाब्जारिगदायुधः । तन्मूर्तिपूजनाज्जातु जंतुर्न स्यात्पुनर्भवी ।।
संकर्षण (बलराम या दाऊ) मूर्ति की पूजा निम्नलिखित हथियारों के साथ की जानी चाहिए: शंख (ऊपरी दाहिना हाथ), पद्म (ऊपरी बायां हाथ), चक्र (निचला बायां हाथ) और गदा (निचला दाहिना हाथ)। यदि इस मूर्ति की पूजा की जाती है, तो प्राणी का पुनर्जन्म नहीं होता है।
बलराम स्तवन
॥ श्रीव्यास उवाच ॥
देवाधिदेव भगवन्कामपाल नमोऽस्तु ते । नमोऽनन्ताय शेषाय साक्षाद्रामाय ते नमः ॥ ३६ ॥
धराधराय पूर्णाय स्वधाम्ने सीरपाणये । सहस्रशिरसे नित्यं नमः संकर्षणाय ते ॥ ३७ ॥
रेवतीरमण त्वं वै बलदेवोऽच्युताग्रजः । हलायुधः प्रलंबघ्नः पाहि मां पुरुषोत्तम ॥ ३८ ॥
बलाय बलभद्राय तालांकाय नमो नमः । नीलांबराय गौराय रौहिणेयाय ते नमः ॥ ३९ ॥
श्रीव्यासजी बोले-हे भगवन् ! आप देवताओं के भी अधिदेवता और कामपाल (सबका मनोरथ पूर्ण करनेवाले) हैं, आपको नमस्कार है । आप साक्षात् अनन्तदेव शेषनाग हैं, बलराम हैं, आपको मेरा प्रणाम है ॥ ३६॥आप धरणीधर, पुर्णस्वरूप, स्वयंप्रकाश, हाथ में हल धारण करनेवाले, सहस्र मस्तकों से सुशोभित तथा संकर्षंणदेव हैं, आपको नमस्कार है ॥ ३७ ॥ हे रेवतीरमण ! आप ही बलदेव तथा श्रीकृष्ण के अग्रज हैं । हलायुध एवं प्रलम्बासुर के नाशक हैं । हे पुरुषोत्तम ! आप मेरी रक्षा कीजिये ॥ ३८ ॥ आप बल, बलभद्र तथा ताल के चिह्न से युक्त ध्वजा धारण करनेवाले हैं; आपको नमस्कार है । आप नीलवस्त्रधारी, गौरवर्ण तथा रोहिणी के सुपुत्र हैं; आपको मेरा प्रणाम है ॥ ३९ ॥
धेनुकारिर्मुष्टिकारिः कुम्भाण्डारिस्त्वमेव हि । रुक्म्यरिः कूपकर्णारिः कूटारिर्बल्वलान्तकः ॥ ४० ॥
कालिन्दीभेदनोऽसि त्वं हस्तिनापुरकर्षकः । द्विविदारिर्यादवेन्द्रो व्रजमण्डलमंडनः ॥ ४१ ॥
कंसभ्रातृप्रहन्ताऽसि तीर्थयात्राकरः प्रभुः । दुर्योधनगुरुः साक्षात्पाहि पाहि जगत्प्रभो ॥ ४२ ॥
जयजयाच्युत देव परात्परस्वयमनन्त दिगन्तगतश्रुत । सुरमुनीन्द्रफणीन्द्रवराय ते मुसलिने बलिने हलिने नमः ॥ ४३ ॥
इह पठेत्सततं स्तवनं तु यः स तु हरेः परमं पदमाव्रजेत् । जगति सर्वबलं त्वरिमर्दनंभवति तस्य जयः स्वधनं धनम् ॥ ४४ ॥
आप ही धेनुक, मुष्टिक, कुम्भाण्ड, रुक्मी, कुपकर्ण, कुट तथा बल्वल के शत्रु हैं ॥ ४० ॥ कालिन्दी की धारा को मोड़नेवाले और हस्तिनापुर को गङ्गा की ओर आरक्षित करनेवाले आप ही हैं । आप द्विविद के विनाशक, यादवों के स्वामी तथा ब्रजमण्डल के मण्डन ( भूषण ) हैं ॥ ४१ ॥ आप कंस के भाइयों का वघ करनेवाले तथा तीर्थयात्रा करनेवाले प्रभु हैं । दुर्योधन के गुरु भी साक्षात् आप ही हैं । हे प्रभो ! जगत की रक्षा कीजिये, रक्षा कीजिये ॥ ४२॥ अपनी महिमा से कभी च्युत न होनेवाले परात्पर देवता साक्षात् अनन्त ! आपकी जय हो, जय हो । आपका सुयश समस्त दिगन्त में व्याप्त है । आप सुरेन्द्र, मुनिन्द्र और फणीन्द्रों में सर्वश्रेष्ठ हैं आप मुसलधारी, हलधर तथा बलवान् हैं; आपको नमस्कार है ॥४३॥ जो इस जगत्में सदा इस स्तवन का पाठ करेगा, वह श्रीहरि के परमपद को प्राप्त होगा। संसार में उसे शत्रुओं का संहार करनेवाला सम्पूर्ण बल प्राप्त होगा । उसकी सदा जय होगी और वह प्रचुर धन का स्वामी होगा ॥ ४४॥
इस प्रकार सत्यवतीनन्दन श्रीव्यास द्वारा बलरामजी अथवा शेषजी की स्तुति अथवा बलराम स्तवन सम्पूर्ण हुआ॥
For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी