Urdhvareteshwar (ऊर्ध्वरेतेश्वर)

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Urdhvareteshwar

ऊर्ध्वरेतेश्वर

उर्ध्व प्रवाहित वीर्य को सनातन धर्म में उर्ध्व-रेतस के नाम से जाना जाता है। उर्ध्व का अर्थ है ऊपर की ओर, रेतस है वीर्य। ऊर्ध्वरेतस शब्द ब्रह्मचारी का पर्यायवाची बन गया है, लेकिन वास्तव में यह अधिक अर्थपूर्ण है। योगाभ्यास, विशेषकर ब्रह्मचर्य (ब्रह्मचर्य) के अभ्यास से निपुण व्यक्ति कभी भी वीर्य को नीचे की ओर नहीं बहने देता, बल्कि उसे ऊपर की ओर मोड़ देता है। खेचरी, वज्रोली और योनि मुद्रा जैसी मुद्राओं के अभ्यास से कोई उर्ध्वरेता बन सकता है। योगियों के देवता (योगेश्वर) शिव भगवान एक आदर्श उर्ध्वरेत हैं। अन्य उदाहरण कण्व जैसे ऋषि और गोरखनाथ जैसे हठ योगी हैं। उर्ध्वरेतस बनकर व्यक्ति प्राण को बढ़ाता है, वीर्य बढ़ाता है और जीवन काल बढ़ाता है।

ध्यान बिंदु उपनिषद (79-80) में कहा गया है कि खेचरी मुद्रा खोपड़ी के सबसे ऊपरी भाग (तालु-मूला) में स्थित चंद्रमा से निकलने वाले अमृत के नीचे की ओर प्रवाह को रोकती है। इसमें जीभ की नोक को पीछे की ओर मोड़ना और इसे नरम तालु (कपालकुहारा) के ऊपर के मार्ग में डालना, साथ ही भौंहों के बीच टकटकी को स्थिर करना शामिल है। ऐसा कहा जाता है कि इस तरह खेचरी मुद्रा का अभ्यास करने से, निपुण व्यक्ति स्खलन की अनुमति दिए बिना अपने वीर्य को सुरक्षित रख सकता है, भले ही वह यौन उत्तेजित महिलाओं (कामिनी) द्वारा गले लगाया गया हो। यह भी कहा गया है कि जब तक वीर्य सुरक्षित रहता है तब तक मृत्यु से डरने की जरूरत नहीं है। पाठ आगे समझाता है (श्लोक 85 और 86) कि यदि, किसी भी संयोग से, स्खलन होता है, तो विशेषज्ञ वीर्य को वापस ऊपर की ओर मोड़ सकता है और योनि मुद्रा के अभ्यास द्वारा इसे संरक्षित कर सकता है।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

ऊर्ध्वरेतास्त्रिदंडायाः संप्राप्तोत्र स्वयं विभुः । कूश्मांडकं गणाध्यक्षं पुरस्कृत्य व्यवस्थितः ।।

ऊर्ध्वां गतिमवाप्नोति वीक्षणादूर्ध्वरेतसः । ऊर्ध्वरेतसि ये भक्ता न हि तेषामधोगतिः ।।

त्रिदंड नगरी से स्वयं भगवान श्री ऊर्ध्वरेतस् यहाँ आये हैं। उन्होंने गणों के अधिपति कूष्माण्डक को अपने सामने रखकर स्वयं को स्थापित किया है। ऊर्ध्वरेता के दर्शन से भक्त को श्रेष्ठ पद की प्राप्ति होती है। ऊर्ध्वरेता के भक्तों को नीचे (स्थिति आदि में) जाने का कोई प्रश्न ही नहीं है।


तारकासुर वध निमित्त देवताओं का शिव पार्वती के मिलन का प्रयास...

शिवपुराण / (रुद्रसंहिता) / खण्डः ३ /अध्यायः १६

न मया तारको वध्यो हरिणापि हरेण च । नान्येनापि सुरैर्वापि मद्वरात्सत्यमुच्यते।।
शिववीर्य्यसमुत्पन्नो यदि स्यात्तनयस्सुराः । स एव तारकाख्यस्य हंता दैत्यस्य नापरः।।
यमुपायमहं वच्मि तं कुरुध्वं सुरोत्तमाः । महादेवप्रसादेन सिद्धिमेष्यति स धुवम्।।
सती दाक्षा यिणी पूर्वं त्यक्तदेहा तु याभवत् । सोत्पन्ना मेनकागर्भात्सा कथा विदिता हि वः ।।
तस्या अवश्यं गिरिशः करिष्यति कर ग्रहम् । तत्कुरुध्वमुपायं च तथापि त्रिदिवौकसः ।।
तथा विदध्वं सुतरां तस्यां तु परियत्नतः । पार्वत्यां मेनकाजायां रेतः प्रतिनिपातने ।।
तमूर्द्ध्वरेतसं शंभुं सैव प्रच्युतरेतसम् । कर्तुं समर्था नान्यास्ति तथा काप्यबला बलात् ।।
सा सुता गिरिराजस्य सांप्रतं प्रौढयौवना । तपस्यते हिमगिरौ नित्यं संसेवते हरम् ।।
वाक्याद्धिमवतः कालीं स्वपितुर्हठतश्शिवा । सखीभ्यां सेवते सार्द्धं ध्यानस्थं परमेश्वरम् ।।
तामग्रतोऽर्च्चमानां वै त्रैलोक्ये वरवर्णिनीम् । ध्यानसक्तो महेशो हि मनसापि न हीयते ।।

मेरे वर के प्रभाव से न मैं तारकासुर का वध कर सकता हूँ, न भगवान् विष्णु कर सकते हैं और न भगवान् शंकर ही उसका वध कर सकते हैं। दूसरा कोई वीर पुरुष अथवा सारे देवता मिलकर भी उसे नहीं मार सकते, यह मैं सत्य कहता हूँ। देवताओ! यदि शिवजी के वीर्य से कोई पुत्र उत्पन्न हो तो वही तारक दैत्यका वध कर सकता है, दूसरा नहीं। सुरश्रेष्ठगण! इसके लिये जो उपाय मैं बताता हूँ, उसे करो। महादेव जी की कृपा से वह उपाय अवश्य सिद्ध होगा। 


पूर्वकाल में जिस दक्षकन्या सती ने दक्ष के यज्ञ में अपने शरीर को त्याग दिया था, वही इस समय हिमालय- पत्नी मेनकाके गर्भसे उत्पन्न हुई है। यह बात तुम्हें भी विदित ही है। महादेव जी उस कन्या का पाणिग्रहण अवश्य करेंगे, तथापि देवताओ! तुम स्वयं भी इसके लिये प्रयत्न करो। तुम अपने यत्नसे ऐसा उद्योग करो, जिससे मेनका कुमारी पार्वती में भगवान् शंकर अपने वीर्य का आधान कर सकें। भगवान् शंकर ऊर्ध्वरेता हैं (उनका वीर्य ऊपर की ओर उठा हुआ है), उनके वीर्य को प्रस्खलित करने में केवल पार्वती ही समर्थ हैं। दूसरी कोई अबला अपनी शक्ति  से ऐसा नहीं कर सकती। गिरिराज की पुत्री वे पार्वती इस समय युवावस्था में प्रवेश कर चुकी हैं और हिमालय पर तपस्या में लगे हुए महादेव जी की प्रतिदिन सेवा करती हैं। अपने पिता हिमवान के कहने से काली शिवा अपनी दो सखियों के साथ ध्यानपरायण परमेश्वर शिव की साग्रह सेवा करती हैं। तीनों लोकों में सबसे अधिक सुन्दरी पार्वती शिव के सामने रहकर प्रतिदिन उनकी पूजा करती हैं, तथापि वे ध्यानमग्न महेश्वर मन से भी ध्यानहीन स्थिति में नहीं आते। अर्थात् ध्यान भंग करके पार्वती की ओर देखने का विचार भी मन में नहीं लाते देवताओ


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ऊर्ध्वरेतेश्वर फुलवरिया गांव, कुष्मांड विनायक मंदिर (कैंटोनमेंट के पश्चिम) में स्थित है।
Urdhwareteshwar is located at Phulwariya village, Kushmand Vinayak Temple (west of the cantonment).

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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