श्री सम्पूर्ण शिव स्तुतिः ॐ वन्दे देव उमापतिं सुरगुरुं
वन्दे देवमुमापतिं सुरगुरुं वन्दे जगत्कारणं
वन्दे पन्नगभूषणं मृगधरं वन्दे पशूनां पतिम् ।
वन्दे सूर्यशशाङ्कवह्निनयनं वन्दे मुकुन्दप्रियं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ १॥
पार्वतीपति भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ, देवताओं के गुरु तथा सृष्टि के कारणरूप परमेश्वर भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ, नागों को आभूषण के रूप में तथा हाथ में मृगमुद्रा धारण करनेवाले एवं समस्त जीवों के गुरुस्वामी भगवान शंकर को मैं नमस्कार करता हूँ, नमस्कार करता हूँ । सूर्य, चन्द्र और अग्निदेव को नेत्ररूप में धारण करनेवाले भगवान नारायण के परम प्रिय भगवान् शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले वरदानी कल्याणस्वरूप भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ १॥
वन्दे सर्वजगद्विहारमतुलं वन्देऽन्धकध्वंसिनं
वन्दे देवशिखामणिं शशिनिभं वन्दे हरेर्वल्लभम् ।
वन्दे नागभुजङ्गभूषणधरं वन्दे शिवं चिन्मयं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ २॥
जिनके विहार की पूरे विश्व में कोई तुलना नहीं है, ऐसे अतुलनीय विहारी भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । अन्धकासुर के हन्ता भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । जो सभी देवताओं के शिरोमणि हैं, जिनकी कान्ति चन्द्रमा के समान है, जिन्होंने अपने शरीर पर नागों और सर्पों को आभूषण के रूप में धारण कर रखा है और जो भगवान विष्णु को अत्यन्त प्रिय अपने भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले हैं, ऐसे वरदानी परम कल्याणस्वरूप चिदानन्द भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ २॥
वन्दे दिव्यमचिन्त्यमद्दयमहं वन्देऽर्कदर्पापहं
वन्दे निर्मलमादिमूलमनिशं वन्दे मखध्वंसिनम् ।
बन्दे सत्यमनन्तमाद्यमभयं वन्देऽतिशान्ताकृतिं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ३॥
अचिन्त्य शक्ति से सम्पन्न, दिव्य लोकोत्तर, अद्य ब्रह्मस्वरूप भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । सूर्य के अभिमान का दलन करनेवाले, निर्मल स्वरूपवाले, विश्व के मूल कारण भगवान् शंकर की मैं सतत् वन्दना करता हूँ । जो दक्ष प्रजापति के यज्ञ को नष्ट करनेवाले तथा शान्त आकृतिवाले, सत्यस्वरूप, अनन्तस्वरूप, आद्यस्वरूप और सदा निर्भय रहनेवाले एवं भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले हैं, ऐसे वरदानी कल्याणस्वरूप भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ३॥
वन्दे भूरथमम्बुजाक्षविशिखं वन्दे श्रुतित्रोटकं
वन्दे शैलशरासनं फणिगुणं वन्देऽधितूणीरकम् ।
वन्दे पद्म्जसारथिं पुरहरं वन्दे महाभैरवं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ४॥
त्रिपुरासुर को दग्ध करने के लिये पृथ्वी को रथ, ब्रह्मा को सारथि, सुमेरु पर्वत को धनुष, श्रुति को त्रोटक, शेष को प्रत्यंचा, आकाश को तूणीर और कमलनयन भगवान विष्णु को बाण बनानेवाले, महाभैरव रूपधारी, भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले तथा वरदानी कल्याणस्वरूप भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ४॥
वन्दे पञ्चमुखाम्बुजं त्रिनयनं वन्दे ललाटेक्षणं
वन्दे व्योमगतं जटासुमुकुटं चन्द्रार्धगङ्गाधरम् ।
वन्दे भस्मकृतत्रिपुण्डुजटिलं वन्देष्टपूर्त्यात्मकं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ५॥
जो पाँच मुखवाले हैं तथा जो अघोर, सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव और ईशानसंज्ञक हैं, उन कमल के समान मुखवाले भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । जिनके तीन नेत्र हैं, जिनका अग्निरूप नेत्र ललाट में है, ऐसे भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । अपने मस्तक पर भगवती गंगा और अर्ध चन्द्रमा को तथा सिर पर मुकुट के रूप में सुन्दर जटा को धारण किये हैं, ऐसे आकाश की तरह व्यापक भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । जिन भगवान शंकर की पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, यजमान, सूर्य और चन्द्र मतान्तर से शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव नामक आठ मूर्तियाँ हैं, ऐसे उन भस्मनिर्मित त्रिपुण्डू को जटा के रूप में धारण करनेवाले भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ । जो भक्त-जनों के आश्रयदाता हैं, उन वरदानी कल्याणस्वरूप भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ५॥
वन्दे कालहरं हरं विषधरं वन्दे मृडं धूर्जटिं
वन्दे सर्वगतं दयामृतनिधिं वन्दे नृसिंहापहम् ।
वन्दे विप्रसुराचिताङ्घ्रिकमलं वन्दे भगाक्षापहं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ६॥
जो काल को जीतनेवाले, पाप का हरण करनेवाले, कण्ठ में विष को धारण करनेवाले, सुख देनेवाले तथा जटा में गंगाजी को धारण करनेवाले व्यापक, दयारूपी अमृत के निधि हैं और शरभरूप धारणकर नृसिंह को लेकर आकाश में उड़ जानेवाले हैं एवं जिनके चरणकमलों की वन्दना ब्राह्मण एवं देवता भी करते हैं, जिन्होंने भगाक्ष (इन्द्र) -के दुःख का निवारण किया है तथा जो भक्तों को आश्रय देनेवाले और वरदानी हैं, ऐसे उन कल्याणस्वरूप भगवान शिव को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ६॥
वन्दे मङ्गलराजताद्रिनिलयं वन्दे सुराधीश्वरं
वन्दे शङ्करमप्रमेयमतुलं वन्दे यमद्वेषिणम् ।
वन्दे कुण्डलिराजकुण्डलधरं वन्दे सहस्राननं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ७॥
जो चाँदी के समान शुभ्र एवं मांगलिक हिमालय पर्वत पर रहते हैं, जो सहस्र (अनन्त) -मुखवाले हैं, जो सभी देवताओं के स्वामी हैं, जो कल्याण करनेवाले, अप्रमेय और अतुलनीय हैं एवं शेषनाग को जिन्होंने कानों का कुण्डल बनाया है, यम को पराजित किया है, भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले वरदानी कल्याणस्वरूप भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ७॥
वन्दे हंसमतीन्द्रियं स्मरहरं वन्दे विरूपेक्षणं
वन्दे भूतगणेशमव्ययमहं वन्देऽर्थराज्यप्रदम् ।
वन्दे सुन्दरसौरभेयगमनं वन्दे त्रिशूलायुधं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ८॥
जो सूर्यस्वरूप और इन्द्रियों से परे हैं, जो कामदेव को भस्म करनेवाले हैं, जो तीन नेत्र होने के कारण विरूपाक्ष कहे गये हैं, जो सर्वथा अविनाशी हैं, जो धन और राज्य के प्रदाता हैं तथा भूतगणों के स्वामी हैं, जो सुन्दर वृषवाहन पर आरूढ़ होकर चलते हैं, त्रिशूल ही जिनका आयुध है, ऐसे जो भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले वरदानी कल्याणस्वरूप भगवान शंकर हैं, उनको मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ८॥
वन्दे सूक्ष्ममनन्तमाद्यमभयं वन्देऽन्धकारापहं
वन्दे फूलननन्दिभृङ्गिविनतं वन्दे सुपर्णावृतम् ।
वन्दे शैलसुतार्धभागवपुषं वन्देऽभयं त्र्यम्बकं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ ९॥
उन महाशिव को प्रणाम है जो सूक्ष्म हैं, अनन्त हैं, जो सबके आद्य हैं और जो निर्भीक हैं; जिन्होंने अन्धकासुर का वध किया है, जिन्हें फूलन, नन्दी और भृंगी प्रणाम अर्पित करते हैं, जो सुपर्णाओं (कमलिनियों) -से आवृत हैं, जिनके आधे शरीर में शैलसुता पार्वती हैं, जो भक्तों को निर्भीक करनेवाले हैं, जिनके तीन नेत्र हैं । जो भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले एवं वरदानी हैं, ऐसे कल्याणस्वरूप भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ॥ ९॥
वन्दे पावनमम्बरात्मविभवं वन्दे महेन्द्रेश्वरं
वन्दे भक्तजनाश्रयामरतरुं वन्दे नताभीष्टदम् ।
वन्दे जह्नुसुताम्बिकेशमनिशं वन्दे गणाधीश्वरं
वन्दे भक्तजनाश्रयं च वरदं वन्दे शिवं शङ्करम् ॥ १०॥
जिनका आत्मविभव परम पावन है और आकाश की तरह व्यापक है, जो देवराज इन्द्र के भी स्वामी हैं, जो भक्तजनों के लिये कल्पवृक्ष के समान आश्रय हैं, जो प्रणाम करनेवालों को भी अभीष्ट फल प्रदान करते हैं, जिनकी एक पत्नी गंगा और दूसरी पार्वती हैं और जो अनेक प्रमुख गणों के भी स्वामी हैं, ऐसे भक्त-जनों को आश्रय देनेवाले वरदानी कल्याणस्वरूप भगवान शंकर को मैं निरन्तर प्रणाम करता हूँ ॥ १०॥
॥ इति श्रीशिवस्तुतिः सम्पूर्णा ॥
॥ इस प्रकार श्रीशिवस्तुतिं सम्पूर्ण हुई ॥