Karuneshwar (करुणेश्वर - काशीस्थ मोक्षद्वार निकट एवं मोक्षद्वारेश्वर शिव के समीप ४२ मोक्षलिंग अंतर्गत भगवान करुणेश्वर तत्पश्चात न्यास द्वारा करुणेश्वर मंदिर एवं तीर्थ दोनों का विध्वंस)

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Karuneshwar
(करुणेश्वर)

काशी के ४२ महालिंग (मोक्षलिंग) के अंतर्गत आने वाले करुणेश्वर का विध्वंस : श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर निर्माण में वाराणसी के ४२ मोक्षलिङ्ग अंतर्गत करुणेश्वर लिङ्ग तथा मंदिर (सी.के.३४/१०) को कॉरिडोर में संरक्षित करने की बात कही गई थी तथा न्यास द्वारा जारी कॉरिडोर पुस्तक में इस मंदिर का वर्णन, पता चित्र के साथ दिया हुआ है। परंतु काशी में न्यास अधिकारियों द्वारा इस मंदिर को ढहा दिया गया तथा मंदिर में स्थित लिङ्ग का कोई अता-पता वर्तमान (२०२४) तक नहीं है। काशी खण्डोक्त कई कूप भी कॉरिडोर में पाटे जा चुके हैं।

॥ स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०९४ ॥

मुनेऽन्यच्च महालिंगं करुणेश्वरसंज्ञितम्॥ मोक्षद्वार समीपे तु मोक्षद्वारेश्वराग्रतः ॥२०॥

दर्शनात्तस्य लिंगस्य महाकारुणिकस्य वै ॥ न क्षेत्रान्निर्गमो जातु बहिर्भवति कस्यचित् ॥२१॥

स्नातव्यं मणिकर्ण्यां च द्रष्टव्यः करुणेश्वरः ॥ क्षेत्रोपसर्गजा भीतिर्हातव्या परया मुदा ॥२२॥

सोमवासरमासाद्य एकभक्तव्रतं चरेत् ॥ यष्टव्यः करुणापुष्पैर्व्रतिना करुणेश्वरः ॥२३॥

तेन व्रतेन संतुष्टः करुणेशः कदाचन ॥ न तं क्षेत्राद्बहिः कुर्यात्तस्मात्कार्यं व्रतं त्विदम् ॥२४॥

हे अगस्त्य! मोक्षद्वार के निकट मोक्षद्वारेश्वर शिव के समीप करुणेश्वर नामक एक अन्य लिङ्ग स्थित है। जो व्यक्ति मणिकर्णिका में स्नानोपरान्त करुणेश्वर का दर्शन करता है, उसका क्षेत्र जनित उपसर्ग भय दूर हो जाता है। जो मानव सोमवार के दिन करुणापुष्प से करुणेश्वर की पूजा करता है तथा एक समय भोजन करके रहता है, देव करुणेश्वर उस पर प्रसन्न हो जाते हैं। वे उस व्यक्ति को काशीक्षेत्र से कभी बाहर नहीं निकालते। इसलिये सभी उनकी अर्चना करें। करुणापुष्प (एक प्रकार का मल्लिका पुष्प, देखें आप्टेशब्दकोष) की ही तरह उसके पत्र तथा फल से भी उस लिङ्ग की पूजा हो सकती है।

तत्पत्रैस्तत्फलैर्वापि संपूज्यः करुणेश्वरः ॥ यो न जानाति तल्लिंगं सम्यग्ज्ञानविवर्जितः ॥२५॥

तेनार्च्यः करुणावृक्षो देवेशः प्रीयतामिति ॥ यो वर्षं सोमवारस्य व्रतं कुर्यादिति द्विजः ॥२६॥

प्रसन्नः करुणेशोत्र तस्य दास्यति वांछितम् ॥ द्रष्टव्यः करुणेशोत्र काश्यां यत्नेन मानवैः ॥२७॥

इति ते करुणेशस्य महिमोक्तो महत्तरः ॥ यं श्रुत्वा नोपसर्गोत्थं भयं काश्यां भविष्यति ॥२८॥

मोक्षद्वारेश्वरं चैव स्वर्गद्वोरेश्वरं तथा ॥ उभौ काश्यां नरो दृष्ट्वा स्वर्गं मोक्षं च विंदति ॥ २९ ॥

जो व्यक्ति करुणेश्वर लिङ्ग का सन्धान नहीं पा सकता अर्थात वहां पहुँच नहीं सकता, वह “हे देवदेव! आप प्रसन्न हों” कहकर करुणावृक्ष की पूजा करें। उसे भी वही फल लाभ होगा। जो ब्राह्मण सोमवार को पूर्वोक्त व्रताचरण करता है, करुणेश्वर देव उससे प्रसन्न होकर उसकी अभिलाषा पूरी कर देते हैं। काशी में सर्वतोभावेन करूणेश्वर का दर्शन करना चाहिये। जो व्यक्ति करुणेश्वर माहात्य का श्रवण करता है, उसे कभी काशी में उपसर्ग जनित भय नहीं होता। काशी में स्वर्गद्वारेश्वर तथा मोक्षद्वारेश्वर के दर्शन से मनुष्य को क्रमशः स्वर्ग तथा मोक्ष लाभ होता है।

न्यास द्वारा करुणेश्वर मंदिर एवं तीर्थ दोनों का विध्वंस...

श्री काशी विश्वनाथ विशिष्ट क्षेत्र विकास परिषद, वाराणसी अधिनियम, 2018 - देखें

श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से जारी हेरिटेज जोन नामक पुस्तक जिसमे यह करुणेश्वर पौराणिक मंदिर "(सी.के.३४/१०) आवासीय ढांचा हटाए जाने के पश्चात सर्वदर्शन के लिए सुलभ कर दिया गया है।" इसके कुछ महीनों पश्चात ही ये नराधम कैसे विश्वनाथजी की महिमा को संरक्षित कर रहें है...निचे के चित्रों में....

कॉरिडोर निर्माण के समय करुणेश्वर शिवलिंग पर चढ़कर उसको उखाड़ते अधर्मी...

अदृश्यान्यपि दृश्यानि दुरवस्थान्यपि प्रिये ॥ भग्नान्यपि च कालेन तानि पूज्यानि सुन्दरि ॥

स्कन्द पुराण का काशी खण्ड स्पष्ट कहता है कि दुरवस्था में पड़े और समय के फेर से टूट फूट गये शिवलिंग भी सर्वथा पूजनीय हैं। [काशीखण्ड (73/24-25)]

भूदारोपि न भूदारं तथा कुर्याद्ययान्यतः ॥  सर्वा लिंगमयी काशी यतस्तद्वीतियन्त्रितः॥

काशी के सुअर भी स्वभाव के विपरीत भूमि नहीं खोदते थे कि कहीं कोई शिवलिंग अपने स्थान चलित न हो जाये। दुःख की बात है कि उसी काशी में आज मन्दिर तोड़े जा रहे और शिवलिंग मलबे में फेके जा रहे उसको धर्मद्रोही काशी विद्वत परिषद् के विद्वान शास्त्रोक्त बता रहे हैं। इनको क्या कहा जाए। [काशीखण्ड-3/36]

दुःस्थितं सुस्थितं वापि शिवलिंगं न चालयेत् ॥ चालनाद रौरवं याति न स्वर्ग न च स्वर्गभाक् ॥

दुष्ट रीति से प्रतिष्ठित या सुन्दर प्रकार से प्रतिष्ठित शिवलिंग के स्थान को चलित नहीं करना चाहिए। चलित करने वाले को रौरव नर्क का भोग करना होगा। न तो वह स्वर्ग पाता है, न ही स्वर्ग का भागी बनता है। [स्कन्द पुराण, नागर खण्ड - 164/17]

स्कन्दपुराणम्/खण्डः ६ (नागरखण्डः)/अध्यायः १०४

॥ दूत उवाच ॥
यानि तत्र च लिंगानि राक्षसैर्निर्मितानि च ॥ तानि गत्वा स्वयं शीघ्रं त्वमुत्पाटय राक्षस ॥ ७२ ॥
एतदेव परं कृत्यं सर्वलोकसुखावहम् ॥ स्थापितानि च यान्येव मंत्रै राक्षससंभवैः ॥ ७३ ॥
संपूजितानि रक्षोभिश्चतुर्वक्त्राणि राक्षस॥ अजानन्मानवः कश्चिद्यदि पूजां समाचरेत् ॥७४॥
तत्क्षणान्नाशमायाति एतद्दृष्टं मया स्वयम्॥
एतस्मात्कारणाद्वच्मि त्वामहं राक्षसाधिप ॥ तैः स्थितैर्भूतले लिंगैः स्थिताः सर्वे निशाचराः ॥७५॥
दूत ने कहा: हे राक्षसराज! तुम जल्दी से वहां जाओ और राक्षसों द्वारा स्थापित उन सभी लिंगों को उखाड़ फेंको। यही सबसे बड़ा कार्य है। यह सभी लोगों की प्रसन्नता के लिए अनुकूल होगा। चार मुखों वाले ये लिंग विशेष रूप से राक्षसों से संबंधित मंत्रों के साथ स्थापित किए गए थे और उन राक्षसों द्वारा पूजा की जाती थी। यदि कोई व्यक्ति (राक्षस पूजा पद्धति से अनभिज्ञ होने के कारण) अनजाने में उनकी पूजा करता है, तो वह तुरंत मृत होकर गिर पड़ता है। इसीलिए, हे राक्षसराज! मैं आपसे यह अनुरोध करता हूं। पृथ्वी (मानव संसार) पर उन लिंगों की उपस्थिति उतनी ही अच्छी है जितनी कि सभी निशाचरों की निरंतर उपस्थिति।
॥ विभीषण उवाच ॥
मया पूर्वं प्रतिज्ञातं रामस्य पुरतः किल ॥ रामेश्वरमतिक्रम्य न गतव्यं धरातले ॥ ७६ ॥
अन्यच्च कारणं दूत प्रोक्तमत्र मनीषिभिः ॥ दुःस्थितं सुस्थितं वापि शिवलिंगं न चालयेत् ॥ ७७ ॥
तत्कथं तत्र गत्वाऽथ लिंगभेदं करोम्यहम् ॥ स्वयं माहेश्वरो भूत्वा प्रतिज्ञाय च वै स्वयम् ॥ ७८ ॥
विभीषण ने कहा : इससे पूर्व, श्रीराम की उपस्थिति में यह प्रतिज्ञा की गयी थी कि कोई भी लंका वासी (राक्षस) रामेश्वर से आगे मुख्य भूमि पर नहीं जाएगा। हे दूत! इसका एक अन्य कारण भी है, जैसा कि मनीषियों ने कहा है:  किसी को भी विधिवत या विधिरहित (येन केन प्रकारेण) रूप से स्थापित किए गए शिवलिंग को चलित (विस्थापित) नहीं करना चाहिए। महेश्वर का भक्त होने और प्रतिज्ञा करने के बाद, मैं स्वयं वहां जाकर लिंग भेद कैसे कर सकता हूँ? (अर्थात भगवान श्रीराम के द्वारा स्थापित शिवलिंग तथा सामान्य राक्षसों के द्वारा स्थापित शिवलिंग को भी विभीषण जी सम भाव से देखते थे। पुराणों एवं शास्त्रों में यही शिव भक्त का लक्षण है।) 

भविष्यपुराणम्_/पर्व_२_(मध्यमपर्व)/भागः_१/अध्यायः_०९

सुस्थितं दुःस्थितं वापि शिवलिंगं न चालयेत् । चालनाद्रौरवं याति न स्वर्गं न च स्वर्गभाक् ॥७३॥

उच्छन्नगरग्रामे स्थानत्यागे च विप्लवे । पुनः संसारधर्मेण स्थापयेदविचारयन् ॥७४॥

बाहुदंतादिप्रतिमा विष्णोश्चान्यस्य सत्तमाः। न चालयेत्स्थापिते च विप्रवृक्षं न चालयेत् ॥७५॥

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_६_(नागरखण्डः)/अध्यायः_१६४

दुःस्थितं सुस्थितं वापि शिवलिंगं न चालयेत् ॥ इति मत्वा द्विजेन्द्रोऽसौ नैव तानि विसर्जयेत् ॥ १७ ॥

किसी को भी शिवलिंग को हटाना या उखाड़ना नहीं चाहिए, चाहे वह दृढ़ता से स्थापित हो या अस्थिर हो। इस दृष्टि से, प्रमुख ब्राह्मण ने अनुष्ठानिक विसर्जन नहीं किया। नगर या गांव के उजड़ जाने पर स्थान छोड़ देने पर या विप्लव / विपत्ति आने पर बिना विचार किये प्रतिष्ठा विधि से पुनः लिंग की प्रतिष्ठा करें।

शंकूपहता प्रतिमा प्रधानपुरुषं कुलं च घातयति। श्वभ्रोपहता रोगानुपद्रवांश्च क्षयं कुरुते ॥

यार्चा शंकूपहता सा तु प्रधानकुलनाशिनी । छिद्रेणोपहता या तु बहुदोषकरी मता ॥

कांटे से तोड़ी गयी प्रतिमा प्रमुख व्यक्ति तथा कुल का नाश करती है। छिद्र करके तोड़ी गयी प्रतिमा रोग, उपद्रव और नाश करती है। कांटे से तोड़ी गयी मूर्ति प्रधानकुल का नाश करती है। जो छिद्र करके तोड़ी गयी है, वह तो बहुत दोष करने वाली है।


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EXACT ORIGINAL GPS LOCATION : 25.310649388440407, 83.01281233175912


करुणेश्वर लिङ्ग लाहौरी टोला, ललिता घाट, फूटे गणेश सी.के.३४/१० में स्थित था। वर्तमान में यह लिङ्ग और तीर्थ, कॉरिडोर निर्माण के समय सम्पूर्ण नष्ट किया जा चुका है। 

Karuneshwar Linga was located at Lahauri Tola, Lalita Ghat, Foote Ganesh CK.34/10. At present this Linga and the shrine have been completely destroyed during the construction of the corridor.


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥


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