Devi Tirth Kshetra Mahatmya (भगवती के द्वारा भगवान शिव के साथ भारतवर्ष में स्थित विभिन्न देवी तीर्थों का वर्णन तत्पश्चात भगवती का यह कहना कि - उक्त सभी तीर्थस्थान काशी में भी स्थित हैं। अतः जो व्यक्ति काशी में निवास करता है, वह समस्त देवी तीर्थों का पुण्यफल प्राप्त करता है। )

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देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः_०७/अध्यायः_३८
भगवती के द्वारा देवीतीर्थों, व्रतों तथा उत्सवोंका वर्णन
हिमालय उवाच
कति स्थानानि देवेशि द्रष्टव्यानि महीतले ।  मुख्यानि च पवित्राणि देवीप्रियतमानि च ॥ १ ॥
व्रतान्यपि तथा यानि तुष्टिदान्युत्सवा अपि । तत्सर्वं देव मे मातः कृतकृत्यो यतो नरः ॥ २ ॥
हिमालय बोले- हे देवेश्वरि! इस पृथ्वीतलपर कौन-कौनसे पवित्र, मुख्य, दर्शनीय तथा आप भगवतीके लिये अत्यन्त प्रिय स्थान हैं? हे माता! आपको सन्तुष्ट करनेवाले जो-जो व्रत तथा उत्सव हों, उन सबको भी मुझे बताइये, जिससे मुझ जैसा प्राणी कृतकृत्य हो जाय।
श्रीदेव्युवाच
सर्वं दृश्यं मम स्थानं सर्वे काला व्रतात्मकाः । उत्सवाः सर्वकालेषु यतोऽहं सर्वरूपिणी ॥ ३ ॥
तथापि भक्तवात्सल्यात्किञ्चित्किञ्चिदथोच्यते । शृणुष्वावहितो भूत्वा नगराज वचो मम ॥ ४ ॥
कोलापुरं महास्थानं यत्र लक्ष्मीः सदा स्थिता । मातुः पुरं द्वितीयं च रेणुकाधिष्ठितं परम् ॥ ५ ॥
तुलजापुरं तृतीयं स्यात्सप्तशृङ्गं तथैव च । हिङ्गुलाया महास्थानं ज्वालामुख्यास्तथैव च ॥ ६ ॥
शकम्भर्याः परं स्थानं भ्रामर्याः स्थानमुत्तमम् । श्रीरक्तदन्तिकास्थानं दुर्गास्थानं तथैव च ॥ ७ ॥
विन्ध्याचलनिवासिन्याः स्थानं सर्वोत्तमोत्तमम् । अन्नपूर्णमहास्थानं काञ्चीपुरमनुत्तमम् ॥ ८ ॥
भीमादेव्याः परं स्थानं विमलास्थानमेव च । श्रीचन्द्रलामहास्थानं कौशिकीस्थानमेव ॥ ९ ॥
नीलाम्बायाः परं स्थानं नीलपर्वतमस्तके । जाम्बूनदेश्वरीस्थानं तथा श्रीनगरं शुभम् ॥ १० ॥
देवी बोलीं- दृष्टिगोचर होनेवाले सभी स्थान मेरे अपने हैं, सभी काल व्रतयोग्य हैं तथा सभी समयोंमें मेरे उत्सव मनाये जा सकते हैं; क्योंकि मैं सर्वरूपिणी हूँ। फिर भी हे पर्वतराज ! भक्तवात्सल्यके कारण मैं कतिपय स्थानोंको बता रही हूँ, आप सावधान होकर मेरा वचन सुनिये -  कोलापुर एक अत्यन्त श्रेष्ठ स्थान है, जहाँ लक्ष्मी सदा निवास करती हैं। मातृपुर दूसरा परम स्थान है, जहाँ भगवती रेणुका विराजमान हैं। तीसरा स्थान तुलजापुर है। इसी प्रकार सप्तशृंग भी एक स्थान है। हिंगुला, ज्वालामुखी, शाकम्भरी, भ्रामरी, रक्तदन्तिका और दुर्गा-इन देवियोंके उत्तम स्थान इन्हींके नामोंसे विख्यात हैं। भगवती विन्ध्यवासिनीका स्थान [विन्ध्यपर्वत] सर्वोत्कृष्ट है। देवी अन्नपूर्णका परम स्थान श्रेष्ठ कांचीपुर है। भगवती भीमा, विमला, श्रीचन्द्रला और कौशिकीके महास्थान इन्हींके नामोंसे प्रसिद्ध है। भगवती नीलाम्बाका परम स्थान नीलपर्वतके शिखरपर है और देवी जाम्बूनदेश्वरीका पवित्र स्थान श्रीनगरमें है भगवती गुह्यकालीका महान् स्थान है, जो नेपालमें प्रतिष्ठित है और देवी मीनाक्षीका श्रेष्ठ स्थान है, जो चिदम्बरमें स्थित बताया गया है।
गुह्यकाल्या महास्थानं नेपाले यत्प्रतिष्ठितम् । मीनाक्ष्याः परमं स्थानं यच्च प्रोक्तं चिदम्बरे ॥ ११ ॥
वेदारण्यं महास्थानं सुन्दर्याः समधिष्ठितम् । एकाम्बरं महास्थानं परशक्त्या प्रतिष्ठितम् ॥ १२ ॥
महालसा परं स्थानं योगेश्वर्यास्तथैव च । तथा नीलसरस्वत्याः स्थानं चीनेषु विश्रुतम् ॥ १३ ॥
वैद्यनाथे तु बगलास्थानं सर्वोत्तमं मतम् । श्रीमच्छ्रीभुवनेश्वर्या मणिद्वीपं मम स्मृतम् ॥ १४ ॥
श्रीमत्त्रिपुरभैरव्याः कामाख्यायोनिमण्डलम् । भूमण्डले क्षेत्ररत्‍नं महामायाधिवासितम् ॥ १५ ॥
नातः परतरं स्थानं क्वचिदस्ति धरातले । प्रतिमासं भवेद्देवी यत्र साक्षाद्रजस्वला ॥ १६ ॥
तत्रत्या देवताः सर्वाः पर्वतात्मकतां गताः । पर्वतेषु वसन्त्येव महत्यो देवता अपि ॥ १७ ॥
तत्रत्या पृथिवी सर्वा देवीरूपा स्मृता बुधैः । नातः परतरं स्थानं कामाख्यायोनिमण्डलात् ॥ १८ ॥
गायत्र्याश्च परं स्थानं श्रीमत्पुष्करमीरितम् । अमरेशे चण्डिका स्यात्प्रभासे पुष्करेक्षिणी ॥ १९ ॥
नैमिषे तु महास्थाने देवी सा लिङ्गधारिणी । पुरुहूता पुष्कराक्षे आषाढौ च रतिस्तथा ॥ २० ॥
भगवती सुन्दरीका महान् स्थान वेदारम्यमें अधिष्ठित है और भगवती पराशक्तिका महास्थान एकाम्बरमें स्थित है। भगवती महालसा और इसी प्रकार देवी योगेश्वरीके महान् स्थान इन्हीं के नामोंसे विख्यात हैं। भगवती नीलसरस्वतीका स्थान चीन देशमें स्थित कहा गया है। भगवती बगलाका सर्वोत्तम स्थान वैद्यनाथधाममें स्थित माना गया है। मुझ श्रीमत् - श्रीभुवनेश्वरीका स्थान मणिद्वीप बताया गया है। श्रीमत्त्रिपुरभैरवीका महान् स्थान कामाख्यायोनिमण्डल है, यह भूमण्डलपर क्षेत्ररत्नस्वरूप है तथा महामायाद्वारा अधिवासित क्षेत्र है। धरातलपर इससे बढ़कर श्रेष्ठ स्थान कहीं नहीं है, यहाँ भगवती प्रत्येक माहमें साक्षात् रजस्वला हुआ करती हैं। उस समय वहाँक सभी देवता पर्वतस्वरूप हो जाते हैं और अन्य महान् देवता भी वहाँ पर्वतोंपर निवास करते हैं। विद्वान् पुरुषोंने वहाँकी सम्पूर्ण भूमिको देवीरूप कहा है। इस कामाख्यायोनिमण्डलसे बढ़कर श्रेष्ठ स्थान कोई नहीं है। ऐश्वर्यमय पुष्करक्षेत्र भगवती गायत्रीका उत्तम स्थान कहा गया है। अमरेशमें चण्डिका तथा प्रभासमें भगवती पुष्करेक्षिणी विराजमान है।महास्थान नैमिषारण्यमें लिंगधारिणी विराजमान हैं। पुष्कराक्षमें देवी पुरुहूता और आषाढीमें भगवती रति प्रतिष्ठित हैं।
चण्डमुण्डीमहास्थाने दण्डिनी परमेश्वरी । भारभूतौ भवेद्‌भूतिर्नाकुले नकुलेश्वरी ॥ २१ ॥
चन्द्रिका तु हरिश्चन्द्रे श्रीगिरौ शाङ्करी स्मृता । जप्येश्वरे त्रिशूला स्यात्सूक्ष्मा चाम्रातकेश्वरे ॥ २२ ॥
शाङ्करी तु महाकाले शर्वाणी मध्यमाभिधे । केदाराख्ये महाक्षेत्रे देवी सा मार्गदायिनी ॥ २३ ॥
भैरवाख्ये भैरवी सा गयायां मङ्गला स्मृता । स्थाणुप्रिया कुरुक्षेत्रे स्वायम्भुव्यपि नाकुले ॥ २४ ॥
कनखले भवेदुग्रा विश्वेशा विमलेश्वरे । अट्टहासे महानन्दा महेन्द्रे तु महान्तका ॥ २५ ॥
भीमे भीमेश्वरी प्रोक्ता स्थाने वस्त्रापथे पुनः । भवानी शाङ्करी प्रोक्ता रुद्राणी त्वर्धकोटिके ॥ २६ ॥
अविमुक्ते विशालाक्षी महाभागा महालये । गोकर्णे भद्रकर्णी स्याद्‌भद्रा स्याद्‌भद्रकर्णके ॥ २७ ॥
उत्पलाक्षी सुवर्णाक्षे स्थाण्वीशा स्थाणुसञ्ज्ञके । कमलालये तु कमला प्रचण्डा छगलण्डके ॥ २८ ॥
कुरण्डले त्रिसन्ध्या स्यान्माकोटे मुकुटेश्वरी । मण्डलेशे शाण्डकी स्यात्काली कालञ्जरे पुनः ॥ २९ ॥
शङ्कुकर्णे ध्वनिः प्रोक्ता स्थूला स्यात्स्थूलकेश्वरे । ज्ञानिनां हृदयाम्भोजे हृल्लेखा परमेश्वरी ॥ ३० ॥
चण्डमुण्डी नामक महान् स्थानमें परमेश्वरी दण्डिनी और भारभूतिमें देवी भूति तथा नाकुलमें देवी नकुलेश्वरी विराजमान है। हरिश्चन्द्र नामक स्थानमें भगवती चन्द्रिका और श्रीगिरिपर शांकरी प्रतिष्ठित कही गयी हैं। जप्येश्वर स्थानमें त्रिशूला और आम्रातकेश्वरमें देवी सूक्ष्मा हैं। महाकालक्षेत्रमें शांकरी, मध्यम नामक स्थानमें शर्वाणी और केदार नामक महान् क्षेत्रमें वे भगवती मार्गदायिनी अधिष्ठित हैं। भैरव नामक स्थानमें भगवती भैरवी और गयामें भगवती मंगला प्रतिष्ठित कही गयी हैं। कुरुक्षेत्रमें देवी स्थाणु प्रिया और नाकुलमें भगवती स्वायम्भुवीका स्थान है। कनखल में भगवती उग्रा, विमलेश्वरमें विश्वेशा, अट्टहासमें महानन्दा और महेन्द्रपर्वतपर देवी महान्तका विराजमान हैं। भीमपर्वतपर भगवती भीमेश्वरी, वस्त्रापथ नामक स्थानमें भवानी शांकरी और अर्धकोटिपर्वतपर भगवती रुद्राणी प्रतिष्ठित कही गयी हैं। अविमुक्तक्षेत्र (काशी) में भगवती विशालाक्षी, महालय क्षेत्रमें महाभागा, गोकर्णमें भद्रकर्णी और भद्रकर्णकमें देवी भद्रा विराजमान हैं। सुवर्णाक्ष नामक स्थानमें भगवती उत्पलाक्षी, स्थाणुसंज्ञक स्थानमें देवी स्थाण्वीशा, कमलालयमें कमला, छगलण्डकमें प्रचण्डा, कुरण्डलमें त्रिसन्ध्या, माकोटमें मुकुटेश्वरी, मण्डलेशमें शाण्डकी और कालेजरपर्वतपर काली प्रतिष्ठित हैं। शंकुकर्णपर्वतपर भगवती ध्वनि विराजमान बतायी गयी हैं। स्थूलकेश्वरपर भगवती स्थूला है। परमेश्वरी इल्लेखा ज्ञानियोंक हृदयकमलमें विराजमान रहती हैं।
प्रोक्तानीमानि स्थानानि देव्याः प्रियतमानि च । तत्तत्क्षेत्रस्य माहात्म्यं श्रुत्वा पूर्वं नगोत्तम ॥ ३१ ॥
तदुक्तेन विधानेन पश्चाद्देवीं प्रपूजयेत् । अथवा सर्वक्षेत्राणि काश्यां सन्ति नगोत्तम ॥ ३२ ॥
अतस्तत्र वसेन्नित्यं देवीभक्तिपरायणः । तानि स्थानानि सम्पश्यञ्जपन्देवीं निरन्तरम् ॥ ३३ ॥
बताये गये ये स्थान देवीके लिये अत्यन्त प्रिय हैं। हे पर्वतराज ! पहले उन क्षेत्रोंका माहात्म्यसुनकर तत्पश्चात् शास्त्रोक्त विधिसे भगवतीकी पूजा करनी चाहिये अथवा हे नगश्रेष्ठ! ये सभी क्षेत्र काशी में भी स्थित हैं, इसलिये देवीकी भक्तिमें तत्पर रहनेवाले मनुष्यको निरन्तर वहाँ रहना चाहिये। वहाँ रहकर उन स्थानोंका दर्शन, भगवतीके मन्त्रोंका निरन्तर जप और उनके चरणकमलका नित्य ध्यान करनेवाला मनुष्य भवबन्धनसे मुक्त हो जाता है ।
ध्यायंस्तच्चरणाम्भोजं मुक्तो भवति बन्धनात् । इमानि देवीनामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ॥ ३४ ॥
भस्मीभवन्ति पापानि तत्क्षणान्नग सत्वरम् । श्राद्धकाले पठेदेतान्यमलानि द्विजाग्रतः ॥ ३५ ॥
मुक्तास्तत्पितरः सर्वे प्रयान्ति परमां गतिम् । अधुना कथयिष्यामि व्रतानि तव सुव्रत ॥ ३६ ॥
नारीभिश्च नरैश्चैव कर्तव्यानि प्रयत्‍नतः । व्रतमनन्ततृतीयाख्यं रसकल्याणिनीव्रतम् ॥ ३७ ॥
आर्द्रानन्दकरं नाम्ना तृतीयाया व्रतं च यत् । शुक्रवारव्रतं चैव तथा कृष्णचतुर्दशी ॥ ३८ ॥
भौमवारव्रतं चैव प्रदोषव्रतमेव च । यत्र देवो महादेवो देवीं संस्थाप्य विष्टरे ॥ ३९ ॥
नृत्यं करोति पुरतः सार्धं देवैर्निशामुखे । तत्रोपोष्य रजन्यादौ प्रदोषे पूजयेच्छिवाम् ॥ ४० ॥
हे नग! जो मनुष्य प्रातःकाल उठकर भगवतीके इन नामोंका पाठ करता है, उसके समस्त पाप उसी क्षण शीघ्र ही भस्म हो जाते हैं। जो व्यक्ति श्राद्धके समय ब्राह्मणोंके समक्ष इन पवित्र नामोंका पाठ करता है, उसके सभी पितर मुक्त होकर परम गतिको प्राप्त हो जाते हैं। हे सुव्रत ! अब मैं देवीके व्रतोंके विषयमें आपको बताऊँगा। सभी स्त्रियों और पुरुषोंको ये व्रत प्रयत्नपूर्वक करने चाहिये। व्रतोंमें जो तृतीयाके व्रत हैं; वे अनन्ततृतीया, रसकल्याणिनी और आर्द्रानन्दकर नामसे प्रसिद्ध हैं। शुक्रवार, कृष्णचतुर्दशी तथा भौमवारको देवीका व्रत किया जाता है। प्रदोष भी देवीव्रत है; उस दिन देवाधिदेव भगवान् शिव सायंकालके समय देवी पार्वतीको कुशासनपर विराजमान करके उनके समक्ष देवताओंके साथ नृत्य करते हैं उस दिन उपवास करके सायंकालके प्रदोषमें भगवती शिवाकी पूजा करनी चाहिये। देवीको विशेषरूपसे सन्तुष्ट करनेवाला यह प्रदोष प्रत्येक पक्षमें करना चाहिये।
प्रतिपक्षं विशेषेण तद्देवीप्रीतिकारकम् । सोमवारव्रतं चैव ममातिप्रियकृन्नग ॥ ४१ ॥
तत्रापि देवीं सम्पूज्य रात्रौ भोजनमाचरेत् । नवरात्रद्वयं चैव व्रतं प्रीतिकरं मम ॥ ४२ ॥
एवमन्यान्यपि विभो नित्यनैमित्तिकानि च । व्रतानि कुरुते यो वै मत्प्रीत्यर्थं विमत्सरः ॥ ४३ ॥
प्राप्नोति मम सायुज्यं स मे भक्तः स मे प्रियः । उत्सवानपि कुर्वीत दोलोत्सवसुखान्विभो ॥ ४४ ॥
शयनोत्सवं यथा कुर्यात्तथा जागरणोत्सवम् । रथोत्सवं च मे कुर्याद्दमनोत्सवमेव च ॥ ४५ ॥
पवित्रोत्सवमेवापि श्रावणो प्रीतिकारकम् । मम भक्तः सदा कुर्यादेवमन्यान्महोत्सवान् ॥ ४६ ॥
मद्‌भक्तान्भोजयेत्प्रीत्या तथा चैव सुवासिनीः । कुमारीर्बटुकांश्चापि मद्बुद्ध्या तद्‌गतान्तरः ॥ ४७ ॥
वित्तशाठ्येन रहितो यजेदेतान्सुमादिभिः । य एवं कुरुते भक्त्या प्रतिवर्षमतन्द्रितः ॥ ४८ ॥
स धन्यः कृतकृत्योऽसौ मत्प्रीतेः पात्रमञ्जसा ।
सर्वमुक्तं समासेन मम प्रीतिप्रदायकम् । नाशिष्याय प्रदातव्यं नाभक्ताय कदाचन ॥ ४९ ॥
हे पर्वत! सोमवारका व्रत मुझे अत्यधिक सन्तुष्ट करनेवाला है। इस व्रतमें भी [उपवास करके] भगवतीको पूजाकर रातमें भोजन करना चाहिये। इसी प्रकार चैत्र और आश्विन महीनोंके दोनों नवरात्रव्रत मेरे लिये अत्यन्त प्रियकर हैं। हे विभो इसी प्रकार और भी नित्य तथा नैमित्तिक व्रत हैं। जो मनुष्य राग-द्वेषसे रहित होकर मेरी प्रसन्नताके लिये इन व्रतोंको करता है, वह मेरासायुज्यपद प्राप्त कर लेता है। वह मेरा भक्त है और मुझे अतिप्रिय है। हे विभो! व्रतोंके अवसरपर झूला सजाकर उत्सव मनाना चाहिये। मेरा शयनोत्सव, जागरणोत्सव, रथोत्सव और दमनोत्सव आयोजित करना चाहिये श्रावण महीनेमें होनेवाला पवित्रोत्सव भी मेरे लिये प्रीतिकारक है। मेरे भक्तको चाहिये कि वह इसी तरहसे अन्य महोत्सवोंको भी सदा मनाये। उन अवसरोंपर मेरे भक्तों, सुवासिनी स्त्रियों, कुमारी कन्याओं और बटुकोंको मेरा ही स्वरूप समझकर उनमें मन स्थित करके उन्हें प्रेमपूर्वक भोजन कराना चाहिये, साथ ही धनकी कृपणतासे रहित होकर पुष्प आदिसे इनकी पूजा करनी चाहिये जो मनुष्य सावधान होकर भक्तिपूर्वक प्रत्येक वर्ष ऐसा करता है, वह धन्य तथा कृतकृत्य है और वह शीघ्र ही मेरा प्रियपात्र बन जाता है। मुझे प्रसन्नता प्रदान करनेवाला यह सब प्रसंग मैंने संक्षेपमें आपसे कह दिया। उपदेश न माननेवाले तथा मुझमें भक्ति न रखनेवाले मनुष्यके समक्ष इसे कभी भी प्रकाशित नहीं करना चाहिये
इति श्रीदेवीभागवते महापुराणेऽष्टादशसाहस्र्यां संहितायां सप्तमस्कन्धे देवीगीतायां महोत्सवव्रतस्थानवर्णनं नामाष्टत्रिंशोऽध्यायः ॥ ३८ ॥

उपरोक्त पौराणिक वर्णन के आधार पर देवी के पावन तीर्थस्थान एवं उनका आध्यात्मिक महत्त्व

  1. कोलापुर – यह स्थान देवी लक्ष्मी का स्थायी निवास माना जाता है। यहाँ धन-वैभव एवं समृद्धि की देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
  2. मातृपुर (रेणुका देवी) – यह देवी रेणुका का परम पवित्र स्थान है, जो मातृशक्ति का प्रतीक है।
  3. तुलजापुर – यहाँ भगवती भवानी का वास है, जो शत्रु नाश एवं रक्षा की अधिष्ठात्री हैं।
  4. सप्तशृंग – यह स्थान देवी दुर्गा की उपासना के लिए विख्यात है, जहाँ सप्तमातृकाओं का प्रभाव माना जाता है।
  5. हिंगुला, ज्वालामुखी, शाकम्भरी, भ्रामरी, रक्तदन्तिका, दुर्गा – ये सभी स्थान विभिन्न रूपों में भगवती के प्रभाव क्षेत्र हैं, जहाँ देवी की विशिष्ट शक्ति और स्वरूप पूजित हैं।
  6. विन्ध्यवासिनी (विन्ध्य पर्वत) – यह स्थान माँ विन्ध्यवासिनी का निवास है, जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की पालनकर्त्री मानी जाती हैं।
  7. अन्नपूर्णा (कांचीपुर) – देवी अन्नपूर्णा का यह स्थान अन्न, धान्य एवं सम्पूर्ण विश्व की पोषक शक्ति का केन्द्र है।
  8. भीमा, विमला, श्रीचन्द्रला, कौशिकी – ये सभी स्थान भगवती की विविध शक्तियों के अधिष्ठान हैं, जो भक्तों को विभिन्न प्रकार के आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
  9. नीलाम्बा (नील पर्वत) – यह स्थान तंत्र-मंत्र साधना एवं गूढ़ रहस्यों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
  10. जाम्बूनदेश्वरी (श्रीनगर) – भगवती जाम्बूनदेश्वरी का यह स्थान सम्पूर्ण हिमालय क्षेत्र के देवत्व का प्रतिनिधित्व करता है।
  11. गुह्यकाली (नेपाल) – यह स्थान तांत्रिक साधकों के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  12. मीनाक्षी (चिदम्बरम) – देवी मीनाक्षी का यह स्थान परम सिद्धपीठों में गिना जाता है।
  13. सुन्दरी (वेदारम्य), पराशक्ति (एकाम्बर) – यहाँ देवी की परम रहस्यमयी एवं शक्ति प्रधान रूपों की पूजा की जाती है।
  14. महालसा, योगेश्वरी – ये स्थान देवी के योगमाया रूप के लिए प्रसिद्ध हैं।
  15. नीलसरस्वती (चीन देश) – यहाँ देवी सरस्वती के गूढ़ और तांत्रिक स्वरूप की पूजा होती है।
  16. बगला (वैद्यनाथधाम) – यह स्थान देवी बगलामुखी का सर्वोत्तम शक्तिपीठ है।
  17. भुवनेश्वरी (मणिद्वीप) – यह स्थान भगवती भुवनेश्वरी का परम धाम है।
  18. त्रिपुरभैरवी (कामाख्या) – यह स्थान महामाया का निवास स्थान है, जहाँ देवी प्रत्येक माह में रजस्वला होती हैं और सम्पूर्ण क्षेत्र स्वयं देवीस्वरूप माना गया है।
  19. गायत्री (पुष्कर) – यहाँ भगवती गायत्री विराजमान हैं, जो वेदों की मूल चेतना हैं।
  20. चण्डिका (अमरेश), पुष्करेक्षिणी (प्रभास), लिंगधारिणी (नैमिषारण्य), पुरुहूता (पुष्कराक्ष), रति (आषाढ़ी) – ये सभी स्थान देवी के विशेष पूजास्थल हैं।
  21. चण्डमुण्डी (दण्डिनी), भारभूति (भूति), नाकुल (नकुलेश्वरी), हरिश्चन्द्र (चन्द्रिका), श्रीगिरि (शांकरी) – यहाँ देवी के विविध स्वरूप पूज्य हैं।
  22. त्रिशूला (जप्येश्वर), सूक्ष्मा (आम्रातकेश्वर), शांकरी (महाकालक्षेत्र), शर्वाणी (मध्यम), मार्गदायिनी (केदार) – ये स्थान देवी की साधना के लिए विशेष रूप से पूजित माने गए हैं।
  23. भैरवी (भैरव), मंगला (गया), स्थाणुप्रिया (कुरुक्षेत्र), स्वायम्भुवी (नाकुल) – यहाँ देवी के रूप में विशेष आशीर्वाद प्राप्त होते हैं।
  24. विशालाक्षी (काशी), महाभागा (महालय), भद्रकर्णी (गोकर्ण), भद्रा (भद्रकर्णक) – ये सभी स्थान देवी की दिव्य शक्ति के लिए प्रसिद्ध हैं।
  25. उत्पलाक्षी (सुवर्णाक्ष), स्थाण्वीशा (स्थाणुसंज्ञक), कमला (कमलालय), प्रचण्डा (छगलण्डक), त्रिसन्ध्या (कुरण्डल) – यहाँ देवी के विविध स्वरूपों की महिमा स्थापित है।
  26. मुकुटेश्वरी (माकोट), शाण्डकी (मण्डलेश), काली (कालेजरपर्वत), ध्वनि (शंकुकर्णपर्वत), स्थूला (स्थूलकेश्वर) – इन स्थानों पर देवी की विशेष कृपा मानी जाती है।
  27. इल्लेखा (ज्ञानियों के हृदयकमल में) – यह स्थान दर्शाता है कि सच्चे साधकों के हृदय में ही देवी का वास्तविक वास होता है।

काशी (वाराणसी) – समस्त तीर्थों का समावेश

देवी ने अंत में कहा कि उक्त सभी तीर्थस्थान काशी में भी स्थित हैं। अतः जो व्यक्ति काशी में निवास करता है, वह समस्त देवी तीर्थों का पुण्यफल प्राप्त करता है।

  • काशी में विशालाक्षी देवी का निवास है, जो देवी पार्वती का साक्षात स्वरूप हैं।
  • यहाँ अन्नपूर्णा देवी स्वयं भगवान शिव को अन्नदान करती हैं।
  • काशी की समस्त भूमि स्वयं मुक्तिदायिनी भगवती का स्वरूप मानी जाती है।
  • यहाँ देवाधिदेव महादेव स्वयं महाकाल रूप में साक्षात निवास करते हैं, और भगवती का पूजन यहाँ अक्षय पुण्यफलदायक होता है।

अतः वाराणसी को समस्त शक्तिपीठों का समावेश एवं संपूर्ण देवी साधना का केन्द्र कहा गया है। यहाँ रहकर भगवती के नाम-स्मरण, पूजा, व्रत एवं साधना करने से समस्त देवी तीर्थों का फल प्राप्त होता है और साधक मोक्षपथ का अधिकारी बनता है।


निष्कर्ष : देवी के इन समस्त तीर्थस्थलों का वर्णन हमें यह सिखाता है कि भगवती की कृपा प्राप्त करने के लिए इन स्थलों की यात्रा, पूजा एवं ध्यान परम आवश्यक हैं। किन्तु सर्वोत्तम उपाय यह है कि काशी में निवास कर, देवी के इन समस्त रूपों का नित्य स्मरण किया जाए, जिससे जीवन का परम लक्ष्य - मोक्ष सुलभ हो जाता है।

For the benefit of Kashi residents and devotees : -
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi

काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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