Mahabal
महाबल लिङ्ग या महाबलेश्वर
स्कंदपुराण, शिवपुराण, लिंगपुराण एवं अन्य पुराणों में भगवान शिव के ६८ दिव्य लिंग एवं अतिपुण्य पवित्र क्षेत्र वर्णित है। यह अतिपुण्य पवित्र क्षेत्र भारतवर्ष के चारो ओर फैले हैं। जिनमे से कुछ सुलभ, कुछ दुर्लभ, कुछ गुप्त एवं कुछ अत्यंत गुह्य है। इन सब का सम्पूर्ण दर्शन अत्यंत दुष्कर है। परम विद्वान् एवं नित्य तीर्थाटन करने वाले भक्तों को भी ये ६८ आयतन दर्शन दुर्लभ हैं। परन्तु धन्य है काशी जहाँ इन ६८ आयतन लिंगों ने स्वयं को वाराणसी में प्रकट कर काशी वासियों के लिये सर्वथा सुलभ कर दिया है।
काशी का गोकर्णतीर्थ एवं इसका विस्तार : काशी में समस्त देवी-देवता अपने मूल मे स्थित तीर्थों के साथ प्राकट्य हैं। भगवान वेदव्यास ने स्कंदपुराण काशीखंड में इसका संपूर्ण वर्णन किया है। उसी क्रम में ६८ आयतन देवता अंतर्गत गोकर्ण तीर्थ (कर्नाटक) से भगवान महाबल (महाबलेश्वर) लिङ्ग रूपेण काशी में साम्बादित्य के समीप स्वयंभू प्राकट्य है। गोकर्णेश्वर से लेकर महाबलेश्वर तक का क्षेत्र काशी का गोकर्ण तीर्थ है।
भ्रांतियां : काशी में स्वयं आये महाबल मुखलिङ्ग हैं। वर्षों से नाम अज्ञात होने के कारण और मुखलिङ्ग होने के कारण अज्ञानवश इन्हें शनि के रूप में पूजा जाने लगा और सिंदूर पोतकर क्षेत्र निवासी तेल चढ़ाने लगे। आज भी लोग उन्हें शनिदेव ही कहते हैं। काशीखंड के इस अन्वेषण कार्य की सुध प्रशासन ने सितंबर २०२४ में ले ली है। निचे चित्र के साथ....
For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥