॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
॥ बिंदुमाधव उवाच ॥
उदग्दशाश्वमेधान्मां प्रयागाख्यं च माधवम् ॥ प्रयागतीर्थे सुस्नातो दृष्ट्वा पापैः प्रमुच्यते ॥ २९ ॥
प्रयागगमने पुंसां यत्फलं तपसि श्रुतम् ॥तत्फलं स्याद्दशगुणमत्र स्नात्वा ममाग्रतः ॥ ३० ॥
गंगायमुनयोः संगे यत्पुण्यं स्नानकारिणाम् ॥ काश्यां मत्सन्निधावत्र तत्पुण्यं स्याद्दशोत्तरम् ॥ ३१ ॥
दानानि राहुग्रस्तेर्के ददतां यत्फलं भवेत् ॥ कुरुक्षेत्रे हि तत्काश्यामत्रैव स्याद्दशाधिकम् ॥ ३२ ॥
गंगोत्तरवहा यत्र यमुना पूर्ववाहिनी ॥ तत्संभेदं नरः प्राप्य मुच्यते ब्रह्महत्यया ॥ ३३ ॥
वपनं तत्र कर्तव्यं पिंडदानं च भावतः ॥ देयानि तत्र दानानि महाफलमभीप्सुना ॥ ३४ ॥
गुणाः प्रजापतिक्षेत्रे ये सर्वे समुदीरिताः ॥ अविमुक्ते महाक्षेत्रेऽसंख्याताश्च भवंति हि ॥ ३५ ॥
प्रयागेशं महालिंगं तत्र तिष्ठति कामदम् ॥ तत्सान्निध्याच्च तत्तीर्थं कामदं परिकीर्तितम् ॥ ३६ ॥
काश्यां माघः प्रयागे यैर्न स्नातो मकरार्कगः ॥ अरुणोदयमासाद्य तेषां निःश्रेयसं कुतः ॥ ३७ ॥
काश्युद्भवे प्रयागे ये तपसि स्नांति संयताः ॥ दशाश्वमेधजनितं फलं तेषां भवेद्ध्रुवम् ॥३८॥
प्रयागमाधवं भक्त्या प्रयागेशं च कामदम् ॥ प्रयागे तपसि स्नात्वा येर्चयंत्यन्वहं सदा॥३९॥
धनधान्यसुतर्द्धीस्ते लब्ध्वा भोगान्मनोरमान् ॥ भुक्त्वेह परमानंदं परं मोक्षमवाप्नुयुः ॥ ४० ॥
माघे सर्वाणि तीर्थानि प्रयागमवियांति हि ॥ प्राच्युदीची प्रतीचीतो दक्षिणाधस्तथोर्ध्वतः ॥ ४१ ॥
काशीस्थितानि तीर्थानि मुने यांति न कुत्रचित् ॥ यदि यांति तदा यांति तीर्थत्रयमनुत्तमम् ॥ ४२ ॥
॥ काशी स्थित प्रयाग तीर्थ महात्म्य ॥
भगवान बिंदु माधव अग्नि बिंदु ऋषि से कहते हैं—
माघ मास में प्रयागराज जाकर जो पुण्य प्राप्त होता है, उससे दस गुना अधिक पुण्य काशीधाम में, मेरे समक्ष स्थित प्रयाग तीर्थ में स्नान करने से मिलता है। गंगा-यमुना संगम में स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है, उससे भी उच्चतर पुण्य लाभ वाराणसी स्थित इस पवित्र प्रयाग तीर्थ में स्नान करने से होता है।
सूर्य ग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, वही पुण्य काशी में उसी प्रकार का दान करने से दस गुना बढ़ जाता है। जहाँ यमुना पूर्ववाहिनी और गंगा उत्तरवाहिनी प्रवाहित होती हैं, उस संगम स्थल में स्नान करने से मनुष्य के ब्रह्म हत्या सहित समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
जो मनुष्य महान पुण्य की इच्छा रखता है, उसे काशी स्थित प्रयाग तीर्थ में केश मुंडन कराकर श्रद्धापूर्वक पिंडदान करना चाहिए तथा दानादि कर पुण्य अर्जित करना चाहिए। जो दिव्य गुण प्रजापति क्षेत्र में विद्यमान हैं, वे सभी काशी के इस महातीर्थ में अनंत गुणा बढ़कर प्रभावी होते हैं। इस तीर्थ में स्थित भक्तों की इच्छापूर्ति करने वाले प्रयागेश्वर महालिंग के कारण इसे 'कामप्रद' भी कहा गया है।
जो माघ मास में काशी या प्रयाग में मकर संक्रांति के दिन स्नान नहीं करते, वे अपने जीवन के परम कल्याण को कैसे प्राप्त कर सकते हैं? किंतु जो संयमपूर्वक इस पवित्र तीर्थ में स्नान करता है, वह निःसंदेह दश अश्वमेध यज्ञ के पुण्य का भागी होता है।
जो भक्त माघ मास में प्रयाग तीर्थ में स्नान कर नित्य श्रद्धापूर्वक प्रयाग माधव और अभीष्ट प्रद प्रयागेश्वर महालिंग की पूजा-अर्चना करता है, वह इस पृथ्वी पर धन, धान्य, संतान और समस्त इच्छित भोगों को प्राप्त कर जीवन का पूर्ण आनंद प्राप्त करता है और अंत में मोक्ष का अधिकारी बन जाता है।
माघ मास में पूर्व, दक्षिण, उत्तर, पश्चिम तथा ऊर्ध्व दिशाओं में स्थित समस्त तीर्थ इसी काशी स्थित प्रयाग तीर्थ में आकर विलीन हो जाते हैं। हे मुनिवर! परंतु वाराणसी के तीर्थ कभी भी कहीं और नहीं जाते। यदि जाते भी हैं, तो उसी क्षण वापस लौट आते हैं।
॥ इस प्रकार काशी स्थित प्रयाग तीर्थ महात्म्य का दिव्य रहस्य प्रकट हुआ ॥
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥