Bhooteshwar
भूतीश्वर / भूतेश्वर
काशीखण्डः अध्यायः ९७
तदग्रे च कणादेशस्तत्र पुण्योदकः प्रहिः ।। स्नात्वा काणादकूपे यः कणादेशं समर्चयेत् ।। १७५।।
इसके सामने कणादेश है। दिव्य जल का कुआँ है। कणादकूप में स्नान करने के बाद, एक भक्त को कणादेश की पूजा करनी चाहिए।
न धनेन न धान्येन त्यज्यते स कदाचन ।। तस्य दक्षिणतो दृश्यो भूतीशो भूतिकृत्सताम् ।। १७६।।
वह धन या अन्न से कभी नहीं छूटता। इसके दक्षिण में भूतीश (भूतीश्वर / भूतेश्वर) जो अच्छे लोगों की समृद्धि का कारण बनता है, उसे देखना चाहिए।
भूतनाथ भूतपति, या भूतेश्वर भगवान शिव
‘भूत’ शब्द का अर्थ है पंचभूत अर्थात् पृथिवी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। इसका दूसरा अर्थ है प्राणिसमूह अर्थात् समस्त सजीव सृष्टि। ‘भूतनाथ’ का अर्थ है कि भगवान शिव पंचभूत से लेकर चींटीपर्यन्त समस्त जीवों, चाहें वह लूले-लंगड़े हों अथवा सर्वसमर्थ--सभी के स्वामी हैं। जो भी प्राणी उनकी भक्ति करते हैं, वह उन्हें अपना लेते हैं।
तामस से तामस असुर, दैत्य, यक्ष, भूत, प्रेत, पिशाच, बेताल, डाकिनी, शाकिनी, सर्प, सिंह--सभी जिसे पूजें, वही शिव ‘परमेश्वर’ और ‘भूतेश्वर’ हैं। भगवान शिव का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रूद्र, रुद्राणियां, चौंसठ योगिनियां, मातृकाएं तथा भैरवादि इनके सहचर तथा सहचरी हैं।
गरीब-से-गरीब के लिए गुंजाइश है वहां--क्योंकि नंगे, लूले, लंगड़े, सर्वहारा, ऐंड़े-बेंड़े-टेढ़े सभी उनके गण बनकर उनकी बारात में शामिल हुए। जिनका कोई ठिकाना नहीं, उन सबके लिए भोलेबाबा का दरबार खुला है। शिवजी की बारात में उनकी बहिन चण्डीदेवी सांपों के आभूषणों से सजी प्रेत पर सवार हो, शत्रुओं को भयभीत करती हुई चल रहीं थीं। उनके गण कितने निराले हैं--भूत, प्रेत, बेताल, डाकिनी-शाकिनी, पिशाच, ब्रह्मराक्षस, क्षेत्रपाल, भैरव आदि--जिन्होंने उनके विवाह में बराती बनकर तहलका ही मचा दिया--
भगवान शंकर तो प्रेम और शान्ति के अथाह समुद्र और सच्चे योगी ठहरे। उनके मंगलमय शासन में सभी प्राणी अपना वैर-भाव भुलाकर पूर्ण शान्तिमय जीवन व्यतीत करते हैं। वे इतने अहिंसक हैं कि सर्प, बिच्छू भी उनके आभूषण बने हुए हैं। उनके चारों ओर आनन्द के ही परमाणु फैले रहते हैं इसीलिए ‘शिव’ (कल्याणरूप) एवं ‘शंकर’ (आनन्ददाता) कहलाते हैं।
योग योग योगेश्वराय भूत भूत भूतेश्वराय काल काल कालेश्वराय
शिव शिव सर्वेश्वराय शंभो शंभो महादेवाय
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