Ganga Aaditya
(गंगा आदित्य, गंगादित्य)
स्कन्दपुराण : काशीखण्ड
।। स्कंद उवाच ।।
गंगादित्योस्ति तत्रान्यो विश्वेशाद्दक्षिणेन वै ।। तस्य दर्शनमात्रेण नरः शुद्धिमियादिह ।।५१.१०१।।
यदा गंगा समायाता भगीरथपुरस्कृता ।। तदा गंगां परिष्टोतुं रविस्तत्रैव संस्थितः ।।५१.१०२।।
अद्याप्यहर्निशं गंगां संमुखीकृत्य भास्करः ।। परिष्टौति प्रसन्नात्मा गंगाभक्तवरप्रदः ।।५१.१०३।।
गंगादित्यं समाराध्य वाराणस्यां नरोत्तमः ।। दुर्गतिं जातु न क्वापि लभते न च रोगभाक् ।।५१.१०४।।
विश्वेश के दक्षिण में एक अन्य (देवता) गंगादित्य है। इसके दर्शन मात्र से मनुष्य पवित्रता को प्राप्त कर लेता है। जब गंगा भागीरथ के साथ उनका नेतृत्व कर रही थी, तो गंगा की स्तुति करने के लिए सूर्य-देवता ने स्वयं को वहाँ स्थापित किया। आज भी भास्कर दिन-रात गंगा की ओर मुख करके उनकी स्तुति करते हैं। वह अपनी आत्मा में प्रसन्न होते हैं और गंगा के भक्तों को वरदान देते हैं। जो श्रेष्ठ पुरुष वाराणसी में गंगादित्य को प्रसन्न करता है, वह कहीं भी दरिद्रता को प्राप्त नहीं होता। न ही वह बीमार पड़ता है।
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गंगादित्य, साम्राज्येश्वर पशुपतिनाथ (नेपाली मंदिर) से ललिता घाट की ओर जाने वाली सीढ़ियों की ओर स्थित है।
Gangaditya is located on the side of the stairs leading to the Lalita Ghat from Samrajeshwar Pashupatinath (Nepali Temple).
For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey
Kamakhya, Kashi 8840422767
Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय
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