How Hindu Calendar Months Name Was Given हिंदू कैलेंडर महीनों का नाम कैसे दिया गया था

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जैसा कि हम सभी जानते हैं कि जिस तरह अंग्रेज़ी में साल के बारह महीने होते हैं, उसी तरह हिंदू कैलेंडर के अनुसार भी बारह महीने होते हैं।

भारत में प्राचीन समय से समय मापने के लिए हिन्दू कैलेंडर का इस्तेमाल होता आ रहा है।

महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। यह 12 राशियाँ बारह सौर महीने हैं। जिस दिन सूर्य जिस राशि में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है।

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। 

इसमें अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार लीप इयर को भी जोड़ा गया, जिसे अधिक मास कहते है, जिन्हें हम इन नामों और इनकी राशि से इस प्रकार जानते हैं।

  1. चैत्र - (मेष राशि )
  2. वैशाख - ( वृषभ राशि )
  3. ज्येष्ठ - ( मिथुन राशि )
  4. आषाढ़ - ( कर्क राशि)
  5. श्रावन - ( सिंह राशि )
  6. भाद्रपद - ( कन्या राशि )
  7. अश्विन - ( तुला राशि)
  8. कार्तिक - ( वृश्चिक राशि )
  9. मार्गशीर्ष या अगहन - ( धनु राशि )
  10. पौष या पूस - ( मकर राशि )
  11. माघ - ( कुंभ राशि )
  12. फाल्गुन - ( मीन राशि )

पुरुषोत्तम माह - ( अधिक मास )

अब हम यह देखेंगे कि हिंदू कैलेंडर के महीने के नाम किस आधार पर रखे गए हैं‌ और‌ उनका क्या महत्व है।

हिन्दू कैलेंडर के महीनों के नाम व उनका महत्व

ज्यादातर उत्तर भारत में पूर्ण चंद्रमा जिस दिन निकलता है, उसे महीने का पहला दिन मानते है, जबकि दक्षिण भारत में अमावस्या के दिन को महीने का पहला दिन मानते है।

महीनों के नाम राशियों के हिसाब से रखे गए है। हर महीने का अपना एक महत्व है, और सभी महीने के अपने त्यौहार और पर्व हैं।


1 चैत्र मास – यह महीना हिंदू कैलेंडर का पहला महीना होता है।

  • हिंदू वर्ष का पहला मास होने के कारण चैत्र की बहुत ही अधिक महता होती है। अनेक पावन पर्व इस मास में मनाये जाते हैं। चैत्र मास की पूर्णिमा चित्रा नक्षत्र में होती है इसी कारण इसका महीने का नाम चैत्र पड़ा।
  • मान्यता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने चैत्र मास की शुक्ल पक्ष से ही सृष्टि की रचना आरंभ की थी। वहीं सतयुगकी शुरुआत भी चैत्र माह से मानी जाती है।

  • चैत्र महीने के पहले दिन महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा का त्यौहार, तमिलनाडु में चैत्री विशु और कर्नाटका एवं आंध्रप्रदेश में उगडी का त्यौहार मनाया जाता है।
  • उत्तरी भारत, मध्य भारत में चैत्र के पहले दिन से चैत्र नवरात्री की शुरुवात होती है, इसके नौवे दिन भगवान राम का जन्मदिन ‘रामनवमी’ के रूप में मनाते है।

2 वैशाख मास- हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र के बाद वैशाख का महीना आता है।

  • वैशाख मास की पूर्णिमा विशाखा नक्षत्र में होने के कारण इस मास का नाम वैशाख पड़ा।
  • पंजाब में किसान लोग कटाई का पर्व ‘बैसाखी’ इसी महीने मनाते है, साथ ही ये उनका नया साल भी होता है। बैसाख की पूर्णिमा को ‘बुद्ध पूर्णिमा’ के रूप में मनाते है, इस दिन गौतम बुद्ध का जन्म उत्सव मनाया जाता है। ये ज्यादातर मई में पड़ने वाली पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है।
  • वैशाख मास का सबसे महत्वपूर्ण पर्व अक्षय तृतीया का ही माना जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण ने अवतार लिया था।

3 ज्‍येष्‍ठ माह - हिंदू पंचाग के अनुसार ज्येष्ठ या फिर जेठ का महीना चंद्र मास का तीसरा माह होता है।

  • जेठ का महीना ज्‍येष्‍ठा नक्षत्र के नाम पर आधारित है। जब ज्येष्ठ का आरंभ होता है तो गर्मी अपने शिखर पर पहुंच जाती है।
  • ज्येष्ठ में जल का महत्व बहुत अधिक माना है और जल से जुड़े व्रत और त्यौहार इसी महीने में मनाये जाते हैं।
  • जयेष्ट माह की दशमी के दिन गंगा दशहरा मनाते है, कहते है इस दिन गंगा जी धरती में अवतरित हुई थी।
  • जगन्नाथ पूरी में स्नान यात्रा त्यौहार जयेष्ट पूर्णिमा के दिन मनाते है। इस दिन जगन्नाथ मंदिर से बालभद्र, सुभद्रा, जगन्नाथ को मंदिर से बाहर ले जाकर स्नान बेदी में स्नान कराया जाता है।

4 अषाढ़ मास - ज्योतिष के अनुसार, आषाढ़ के महीने में चंद्रमा पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में मौजूद होता है, इसलिए इस महीने का नाम आषाढ़ रखा गया है।

  • कहा जाता है कि यह मास भगवान श्री हरि यानी कि विष्णु को बहुत प्रिय है। इसके अलावा यह माह गुरू की पूजा के लिए भी अत्यंत लाभदायक होता है।
  • अषाढ़ महीने की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा मनाते है।

5 श्रावण मास - सावन का महिना हिन्दू कैलेंडर के अनुसार सबसे पवित्र माना जाता है।

  • भगवान शिव को सावन का महीना यानी श्रावण मास अत्यंत प्रिय है। सावन के महीने में महादेव की अराधना करने का बड़ा महत्व होता है। सावन में भक्त अपनी मनोकामनाओं के लिए महादेव की उपासना करते हैं, क्योंकि सावन में भगवान शिव की कृपा जल्दी प्राप्त हो जाती है।
  • श्रावण मास शुरू होने के पीछे एक पौराणिक कथा है, जो इस प्रकार है-"पौराणिक कथा के अनुसार जब देवता और दानवों ने मिलकर समुंद्र मंथन किया तो हलाहल विष निकला था। विष के प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि में हलचल मच गई थी। ऐसे में सृष्टि की रक्षा के लिए महादेव ने विष का पान कर लिया और शिव जी ने विष को अपने कंठ में धारण कर लिया था। विष के प्रभाव से भगवान भोले का कंठ नीला पड़ गया और उनका एक नाम नीलकंठ पड़ गया।
  • विष का ताप शिव जी के ऊपर बढ़ने लगा तो तब विष का प्रभाव कम करने के लिए पूरे महीने घनघोर वर्षा हुई और विष का प्रभाव कुछ कम हुआ। लेकिन अत्यधिक वर्षा से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने अपने मस्तक पर चन्द्र धारण किया क्योंकि चन्द्रमा शीतलता का प्रतीक है और भगवान शिव को इससे शीतलता मिली।
  • ये घटना सावन मास में घटी थी, इसीलिए इस महीने का इतना महत्व है और इसीलिए इस पौराणिक कथा के अनुसार तब से हर वर्ष सावन में भगवान शिव को जल चढ़ाने की परम्परा की शुरुआत हुई थी।
  • इसी महीने हरियाली तीज, हरियाली अमावस्या भी मनाई जाती है।

6 भाद्रपद मास -दरसल इस माह के नाम के पीछे ऐसी मान्यता हैं कि भादो महीने के पूर्णिमा पर आकाश में उत्तरा अथवा पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र का योग बनता हैं जिसके कारण इस महीने का नाम भाद्रपद पड़ा।

  • भादों/भाद्रपद अगस्त-सितम्बर महीने में आता है। इस महीने की शुरुवात में ही हरितालिका तीज, गणेश चतुर्थी, ऋषि पंचमी आती है।
  • भाद्र का अर्थ है- कल्याण करने वाला। भाद्रपद का अर्थ है - भद्र परिणाम देने वाले व्रतों का महीना। यह महीना लोगों को व्रत, उपवास, नियम तथा निष्ठा का पालन करवाता है।

7 अश्विन मास -हिन्दू पंचांग के अनुसार यह वर्ष का सातवां महीना है।

  • इस महीने को देव और पितृ, दोनों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। इस महीने से सूर्य धीरे धीरे और भी कमजोर होने लगते हैं।
  • इस महीने के कृष्णपक्ष को पितृपक्ष और शुक्लपक्ष को देवपक्ष कहते हैं ।
  • ये नवरात्री, दुर्गापूजा, कोजागिरी पूर्णिमा, विजयादशमी/दशहरा, दिवाली, धनतेरस, काली पूजा इसी महीने में आते है।
  • इसी महीने में अधिकमास भी आता है। अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।
  • इसे लेकर एक कथा भी प्रचलित है। मान्यता के मुताबिक, भारतीय मुनियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। चूंकि, अधिकमास सूर्य और चंद्र मास के बीच संतुलन बनाने के लिए प्रकट हुआ तो इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मास पुरुषोत्तम मास बन गया।
  • अश्विन माह के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृ पक्ष होता है। इसमें पितरों तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
  • अश्विन मास की शुक्ल पक्ष से लेकर नवमी तिथि तक शारदीय नवरात्रि के पर्व में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है। 

8 कार्तिक मास -सकंद पुराण के अनुसार, भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय ने तारकासुर का वध भी इसी माह में किया था, इसके लिए इसका नाम कार्तिक पड़ा। 

  • गुजरात में दिवाली से नया साल शुरू होता है, वहां कार्तिक पहला महिना होता है।
  • इस महीने गोबर्धन पूजा, भाई दूज, कार्तिक पूर्णिमा मनाते है। कार्तिक पूर्णिमा को दिवाली का त्योहार मनाया जाता है।
  • इस माह एकादशी को देव उठनी एकादशी मनाते है, जिसे तुलसी विवाह भी कहते है। इस दिन के बाद से शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है। इस महीने गुरु नानक जयंती भी आती है।

9 मार्गशीर्ष या अगहन मास - अगहन का महीना श्रद्धा एवं भक्ति से पूर्ण होता है।

  • ज्योतिष पंचांग के अनुसार अगहन माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है जिस कारण से इस मास को "मार्गशीर्ष मास कहा जाता है।
  • श्रीमद भागवतगीता में स्वयं श्रीकृष्ण ने अपने श्री मुख से कहा है कि महीनों में 'मैं मार्गशीर्ष माह हूँ' तथा सत युग में देवों ने मार्ग-शीर्ष यानि अगहन मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारम्भ किया था। मार्गशीर्ष (अगहन) अमावस को पवित्र नदियों में स्नान का भी विशेष महत्व बताया गया है।
  • इस महीने वैकुण्ठ एकादशी जिसे मोक्ष एकादशी भी कहते है, बड़ी धूमधाम से मनाते है।

10 पौष या पूस मास - मान्यता के अनुसार माह की पूर्णिमा के दिन चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी नक्षत्र से जोड़कर उस महीने का नाम रखा गया है। पौष माह में चंद्रमा पूर्णिमा वाले दिन पुष्य नक्षत्र में होता है, इस कारण इस महीने को पौष या पूस का महीना कहा जाता है। 

  • यह ठण्ड का समय होता है, जिसमें अत्याधिक ठण्ड पड़ती है. इस महीने लौहड़ी, पोंगल एवं मकर संक्राति जैसे कई त्यौहार मनाये जाते है।

11 माघ मास - माघ का महीना पहले माध का महीना था, जो बाद में माघ हो गया "माध" शब्द का सम्बन्ध श्री कृष्ण के एक स्वरुप "माधव" से है। इस महीने को अत्यंत पवित्र माना जाता है। माघ महीने में ढेर सारे धार्मिक पर्व आते हैं, साथ ही प्रकृति भी अनुकूल होने लगती है।

इस महीने ठंडे पानी के अंदर डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त हो कर स्वर्ग में जाते हैं।

'माघे निमग्नाः सलिले सुशीते

विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।'

पद्मपुराण में माघ मास के माहात्म्य का वर्णन करते हुए कहा गया है कि पूजा करने से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघ महीने में स्नान मात्र से होती है।


  • इस माह में संगम पर "कल्पवास" भी किया जाता है जिससे व्यक्ति शरीर और आत्मा से नया हो जाता है।
  • इस महीने विद्या एवं कला की देवी सरस्वती जी की पूजा बसंत पंचमी के दिन की जाती है; इसके साथ ही महा शिवरात्रि, रथा सप्तमी त्यौहार भी मनाये जाते है।
  • उत्तरी भारत में माघ मेला एक बड़ा उत्सव होता है.

12 फाल्गुन मास -फाल्गुन का महीना हिन्दू पंचांग का अंतिम महीना है।

इस महीने की पूर्णिमा को फाल्गुनी नक्षत्र होने के कारण इस महीने का नाम फाल्गुन है।

इस महीने को आनंद और उल्लास का महीना कहा जाता है। इस महीने से धीरे धीरे गरमी की शुरुआत होती है , और सर्दी कम होने लगती है।

  • फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान् शिव की उपासना का महापर्व शिवरात्री भी मनाई जाती है
  • फाल्गुन में ही चन्द्रमा का जन्म भी हुआ था, अतः इस महीने में चन्द्रमा की भी उपासना होती है
  • फाल्गुन में पूर्णिमा को प्रेम और आध्यात्म का पर्व होली भी मनाई जाती है।

भारत में भी फाल्गुन पूर्णिमा को होली मनाई जाती है।


पुरषोत्तम माह (अधिक मास) – भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग 1 मास के बराबर हो जाता है।

  • इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।
  • हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है।
  • पुरुषोत्तम मास नाम क्यों - अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरूषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है।
  • अधिक मास अधिकांशत: अश्विन महीने में आता है।

तो यह थे, हमारे हिंदू कैलेंडर के अनुसार कैलेंडर के नाम, उनके नाम रखे जाने की पीछे मान्यताएँ एवम् उससे जुड़े पर्व त्योहार के बारे में जानकारी।

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