कार्तिक पूर्णिमा के दुसरे दिन काशी में देवी रूप में होती है राक्षसी त्रिजटा की पूजा।
महादेव की नगरी में देवी-देवताओं और ग्रहों के अलावा राक्षसी का भी मंदिर है। कार्तिक पूर्णिमा के अगले दिन मां त्रिजटा की पूजा होती है। विश्वनाथ गली के साक्षी विनायक मंदिर में ही त्रिजटा का भी मंदिर है। त्रिजटा को देवी रूप में पुजा के दिन मूली और बैगन चढ़ाया जाता है।
रामायण काल से जुड़ी है ये मान्यता...
माता सीता जब रावण के हरण के बाद अशोक वाटिका में थीं, तो त्रिजटा ने ही सीता के लिए भोजन बनाने से लेकर अन्य सभी सेवा की थी। माता सीता ने ही त्रिजटा को कलियुग में एक दिन की देवी रूप में पूजा जाने का आशीर्वाद दिया था।
त्रिजटा करती थी सीता माता की सेवा और रक्षा।
अशोक वाटिका में अन्य राक्षसी जब सीता मां को परेशान करती थीं, तो त्रिजटा ही रक्षा करती थीं। कई बार जब सीता को भूखा रखा जाता था, तो त्रिजटा भोजन लेकर जाती थीं। कहा जाता है हनुमान जी को सीता के पास त्रिजटा ही ले गई थीं।
त्रिजटा को चढ़ाया जाता है मूली और बैंगन..
अशोक वाटिका में आखरी दिन जब त्रिजटा कच्ची सब्जी मूली और बैगन लेकर बनाने पहुंचीं, तो पता चला सीता मां जा रही हैं। वो दौड़कर मूली और बैगन हाथों में लिए पहुंची थी। सीतामाता ने आशीर्वाद दिया कि कलयुग में एक दिन तुम्हारी देवी के रूप में पूजा होगी, जो सब्जी तुम मुझे खिलाने वाली थीं, वही तुम्हे भक्त चढ़ाएंगे।
मुक्ति के लिये किया था काशीवास
राक्षसी योनी से मुक्ति के लिए सीतामाता के कहने त्रिजटा काशीवास करने काशी आ गई और महादेव की भक्ति कर मोक्ष पाया।