II Kashi Panchkroshi II
(Halt No: 5)
Kapildhara Tirth & Temple
(Vrishabhdhwajeshwar Mahadev Mandir), Kapildhara, Varanasi
कपिलधारा तीर्थ महात्म्य एवं सोमवती अमावस्या पर तीर्थ
की महत्ता (संक्षिप्त देवनागरी अनुवाद - काशीखंड)
यह कपिल तीर्थ सतयुग में दुग्धमय, त्रेता में मधुमय, द्वापर में घृतमय और कलयुग में जलमय होता है।
शैव संप्रदाय में नंदी ध्वज प्रमुख है।
वैष्णवों में गरूड़ ध्वज ध्वज प्रमुख है।
शक्तों में सिंह ध्वज और चंद्र ध्वज प्रमुख है।
भगवान शिव के आगमन पर ब्रह्मदेव, नारायण, आदित्य, 64 योगिनी, समस्त देवी देवता महर्षि, ऋषि, गण आदि कपिल धारा तीर्थ पर एकत्र होते हैं और भगवान शिव से अपनी विवशता का वर्णन करते हैं कि किस प्रकार राजा देवदास में उन्होंने अंश मात्र भी त्रुटि नहीं निकाल पाये और उन्हें काशी के सिंहासन पद से पदच्युत नहीं कर पाए।
भगवान शिव सबकी असमर्थता सुन ही रहे थे कि इसी समय सुनंदा, सुमना, सुरभि, सुशीला तथा कपिला नाम की गायें गोलोकधाम से वहां पर वहां आ गई। भगवान शंकर की स्नेहमय दृष्टि से उनके स्तनभार से निरंतर इस प्रकार से स्थूल धारा द्वारा दुग्धक्षरण आरंभ हो गया जिससे की वहां दूध का एक हृद बन गया।
उस समय महेश्वर के पार्षदगण इस विस्तृत हृद को द्वितीय छीरसागर मानने लगे। इसके पश्चात वह हृद देवाधिदेव महादेव के अधिष्ठान रूप एक विशुद्ध तीर्थ रूप से गण्य हो गया। तदनंतर भगवान शंकर द्वारा वहां उस हृद का नाम कपिलतीर्थ रखा गया। उनके आदेशानुसार समस्त देव गणों ने उसमें स्नान भी किया।
तदनंतर इस कपिल तीर्थ के अभ्यंतर से दिव्य पितामहगण आविर्भूत हो गए। यह देख कर अमरगण ने परमानंदपूर्वक उनके उद्देश्य से जलांजलि दान करना प्रारंभ कर दिया। तत्पश्चात अग्निष्वात, सोमप, आज्यप, बहिर्षद आदि पितृगण परम तृप्त होकर शंकर से कहने लगे - हे भक्तों को अभय देने वाले! हे जगतपति! हे देवदेव! आपके सानिध्य में इस तीर्थ में हमने चिर संतोष लाभ किया। हे कारण रूप शंभू! अब आप प्रफुल्लित चित्त से हमें अभीष्ट वर प्रदान करें तब भगवान शंकर ने दिव्य पितृगण से यह सुनकर देवगण से परम तृप्तिपूर्ण तथा संतोषपूर्ण वाक्य कहा : -
महादेव कहते हैं - हे विष्णु, महाबाहु! हे पितामह! आप सब सुनिए जो इस कपिल तीर्थ में श्रद्धा पूर्वक यथाविधान पिंड दान करेंगे, मेरे आदेश से उनके पितर अक्षयरूपेण तृप्त हो जाएंगे। मैं पितरों को संतोष देने वाले एक अन्य विषय को कहता हूं। आप सब एकाग्रता पूर्वक श्रवण करिए। सोमवार युक्त अमावस्या के दिन इस तीर्थ में श्राद्ध करने का अक्षय फल होगा। प्रलयकाल में सागरजल भी सूख जाता है किंतु इस कपिल तीर्थ में अनुष्ठित श्राद्ध फल कभी नष्ट नहीं होता। यदि सोमवती अमावस्या के दिन इस तीर्थ में श्राद्ध कार्य संपादित किए जाये, तब पुष्कर एवं गया क्षेत्र में श्राद्ध के अनुष्ठान की आवश्यकता ही नहीं है।
गदाधरभवान्यत्र
यत्रत्वं च पितामह। वृषध्वजोऽस्म्यहं यत्र फल्गुस्तत्र न संशयः॥
दिव्यान्तरिक्षभौमानि
यानि तीर्थानि सर्वतः। तान्यत्र निवसिष्यन्ति दर्शे सोमदिनान्विते॥
कुरुक्षेत्र
नैमिषे च गङ्गासागरसङ्गमे। ग्रहणे श्राद्धतोयत्स्यात्तत्तीर्थे वार्षभध्वजे॥
अस्य
तीर्थस्य नामानि यानि दिव्यपितामहाः। तान्यहं कथयिष्यामि भवतां तृप्तिदान्यलम्॥
हे गदाधर विष्णु! हे पितामह ब्रह्मा! यहां आपका साक्षात अधिष्ठान है तथा यहां मैं भी अपनी मूर्ति (वृषभध्वजेश्वर) के रूप में विराजमान हूं यहां तो फल्गु नदी भी आविर्भूत होगी इसमें क्या संदेह? अधिक क्या कहा जाए, स्वर्ग, अंतरिक्ष, भूतल में चतुर्दिक जितने भी तीर्थों की स्थिति है, सोमवती अमावस्या के दिन यहां वे सब आधिष्ठित हो जाते हैं! सूर्य ग्रहण काल में गंगा सागर संगम में, कुरुक्षेत्र में तथा नैमिषारण्य में श्राद्ध अनुष्ठान का जो फल लाभ होता है, यहां श्राद्ध करने से भी वही फल लाभ होता है। हे दिव्य पितामहगण! इस तीर्थ का नाम सभी वर्णन करते हैं। यह सब नाम कीर्तित होने के कारण आप सब अतिशय परितृप्त रहेंगे।
कपिलधारा
तीर्थ के दस नाम : मधुस्रवा,
कृतकृत्या , क्षीरनीरधि , वृषध्वजतीर्थ, पैतामहतीर्थ, गदाघरतीर्थ,
पितृतीर्थ , कपिलधारा, सुधाखनि
एवं शिवगया।
हे
पितामहगण! श्राद्ध और जलदान आदि न करने पर भी यह 10 नाम कीर्तित करने से ही
पितृगण परम तृप्त हो जाते हैं। जो व्यक्ति पितरों के संतोषार्थ अमावस्या के दिन
यहां श्राद्ध करके ब्राह्मण भोजन कराता है, उसे
श्राद्ध का असीम फल लाभ होता है। जो लोग पितृश्राद्ध कार्य में यहां कल्याणमयी
कपिला गौ दान करते हैं, उनके पितृगण इस दानफल के कारण असंख्य
काल तक क्षीरसागर के तट पर निवास करने में सक्षम होते हैं।
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From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey
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