Mukh Nirmalika Gauri
मुख निर्मालिका गौरी
सर्वप्रथम, देवीभागवतपुराण के स्कन्ध 7 के 38 अध्याय में भगवती ने भगवान शिव के साथ मिलकर भारतवर्ष के विविध देवी तीर्थों का उल्लेख किया है। तत्पश्चात् भगवती ने यह वचन भी दिया, "ये समस्त तीर्थ स्थल काशी में भी विद्यमान हैं। अतः जो व्यक्ति काशी में निवास करता है, वह सभी देवी तीर्थों का पुण्यफल प्राप्त करता है।"
इस वचन का अर्थ यह है कि काशी, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र मानी जाती है, उन सभी तीर्थ स्थलों का पुण्य और आशीर्वाद समेटे हुए है, जो भारतवर्ष के अन्य देवी तीर्थों में प्राप्त होते हैं। काशी में निवास करने वाला व्यक्ति इन समस्त देवी तीर्थों की महिमा का अनुभव करता है और उन्हें श्रद्धा पूर्वक पूजने का लाभ प्राप्त करता है। काशी में देवी स्वयं अपने दिव्य और शाश्वत रूपों में स्थित हैं, और यहां के तीर्थों का पुण्यफल समग्र रूप से प्राप्त होता है।
देवी मुखनिर्मालिका गौरी का मंदिर गाय घाट पर स्थित है। मान्यता के अनुसार, महादेव के काशीवास के साथ माता भी यहां पर आईं थीं, ताकि वह लोगों को सुंदर रूप और महिलाओं को सौभाग्य प्रदान करें। तभी से यह परंपरा है कि नवरात्रि के पहले दिन देवी मुखनिर्मालिका का दर्शन करना अति पुण्यकारी माना जाता है। इस दिन विशेष रूप से महिलाएं देवी की पूजा के साथ-साथ मंदिर परिसर में स्थित बरगद के वृक्ष की भी पूजा करती हैं, ताकि अपने सुहाग की रक्षा एवं वृद्धि की कामना कर सकें। देवी को पीले फूल और लाल अड़हुल के फूल अत्यंत प्रिय माने जाते हैं। वहीं, शक्ति के उपासक पहले दिन शैलपुत्री देवी का पूजन एवं अर्चन भी करते हैं। शैलपुत्री का मंदिर अलईपुर क्षेत्र में स्थित है।
देवीभागवतपुराणम्/स्कन्धः_०७/अध्यायः_३८
भगवती के द्वारा भगवान शिव के साथ भारतवर्ष में स्थित विभिन्न देवी तीर्थों का वर्णन तत्पश्चात भगवती का यह कहना कि - उक्त सभी तीर्थस्थान काशी में भी स्थित हैं। अतः जो व्यक्ति काशी में निवास करता है, वह समस्त देवी तीर्थों का पुण्यफल प्राप्त करता है।
॥ श्रीदेव्युवाच ॥
प्रोक्तानीमानि स्थानानि देव्याः प्रियतमानि च । तत्तत्क्षेत्रस्य माहात्म्यं श्रुत्वा पूर्वं नगोत्तम ॥ ३१ ॥
तदुक्तेन विधानेन पश्चाद्देवीं प्रपूजयेत् । अथवा सर्वक्षेत्राणि काश्यां सन्ति नगोत्तम ॥ ३२ ॥
अतस्तत्र वसेन्नित्यं देवीभक्तिपरायणः । तानि स्थानानि सम्पश्यञ्जपन्देवीं निरन्तरम् ॥ ३३ ॥
बताये गये ये स्थान देवीके लिये अत्यन्त प्रिय हैं। हे पर्वतराज ! पहले उन क्षेत्रोंका माहात्म्यसुनकर तत्पश्चात् शास्त्रोक्त विधिसे भगवतीकी पूजा करनी चाहिये अथवा हे नगश्रेष्ठ! ये सभी क्षेत्र काशी में भी स्थित हैं, इसलिये देवीकी भक्तिमें तत्पर रहनेवाले मनुष्यको निरन्तर वहाँ रहना चाहिये। वहाँ रहकर उन स्थानोंका दर्शन, भगवतीके मन्त्रोंका निरन्तर जप और उनके चरणकमलका नित्य ध्यान करनेवाला मनुष्य भवबन्धनसे मुक्त हो जाता है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_१००
॥ सूत उवाच ॥
यात्रा परिक्रमं ब्रूहि जनानां हितकाम्यया ।। यथावत्सिद्धिकामानां सत्यवत्याः सुतोत्तम ॥३५॥
जो लोग जनकल्याण की भावना से प्रेरित होकर यात्रा करते हैं, उनके लिए यात्रा और परिक्रमा का सही मार्ग बतलाइए, जैसे सत्य और सिद्धि को प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को उनके उद्देश्य के लिए सही रास्ता बताया जाता है।
॥ व्यास उवाच ॥
निशामय महाप्राज्ञ लोमहर्षण वच्मि ते ।। यथा प्रथमतो यात्रा कर्तव्या यात्रिकैर्मुदा ॥३६॥
महाप्राज्ञ लोमहर्षण (सूत जी), आप जो पूछ रहे हैं, कृपया ध्यान से सुनिए। जैसा कि यात्रा का प्रारम्भ प्रथमतः श्रद्धा और उल्लास से की जाती है, वैसे ही हर यात्री को इस यात्रा को प्रसन्नता और श्रद्धा के साथ करनी चाहिए।
अतः परं प्रवक्ष्यामि गौरीं यात्रामनुत्तमाम्। शुक्लपक्षे तृतीयायां या यात्रा विष्वगृद्धिदा ॥६७॥
गोप्रेक्षतीर्थे सुस्नाय मुखनिर्मालिकां व्रजेत् । ज्येष्ठावाप्यां नरः स्नात्वा ज्येष्ठागौरीं समर्चयेत् ॥६८॥
सौभाग्यगौरी संपूज्या ज्ञानवाप्यां कृतोदकैः। ततः शृंगारगौरीं च तत्रैव च कृतोदकः ॥६९॥
स्नात्वा विशालगंगायां विशालाक्षीं ततो व्रजेत् । सुस्नातो ललितातीर्थे ललितामर्चयेत्ततः ॥७०॥
स्नात्वा भवानीतीर्थेथ भवानीं परिपूजयेत् । मंगला च ततोभ्यर्च्या बिंदुतीर्थकृतोदकैः ॥७१॥
ततो गच्छेन्महालक्ष्मीं स्थिरलक्ष्मीसमृद्धये । इमां यात्रां नरः कृत्वा क्षेत्रेस्मिन्मुक्तिजन्मनि ॥७२॥
न दुःखैरभिभूयेत इहामुत्रापि कुत्रचित् । कुर्यात्प्रतिचतुर्थीह यात्रां विघ्नेशितुः सदा ॥७३॥
इसके बाद मैं शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को की जाने वाली उत्तम गौरी यात्रा का वर्णन करूँगा। यह सभी ऐश्वर्य प्रदान करता है। गोप्रेक्ष में पूरी तरह से स्नान करने के बाद एक भक्त मुखनिर्मलिका को जाना चाहिए। ज्येष्ठावापी में स्नान करने के बाद पुरुष को ज्येष्ठागौरी की पूजा करनी चाहिए। सौभाग्यगौरी की पूजा उन लोगों द्वारा की जानी चाहिए जिन्होंने ज्ञानवापी वापी में जलीय संस्कार किए हैं। फिर वहीं पर वही कर्म करने के बाद उन्हें श्रृंगारगौरी की पूजा करनी चाहिए। विशालगंगा में स्नान करने के बाद उन्हें विशालाक्षी की ओर प्रस्थान करना चाहिए। ललिता तीर्थ में विधिनुसार स्नान करने के बाद भक्त को ललिता की पूजा करनी चाहिए। भवानी तीर्थ में स्नान करने के बाद भवानी की पूजा करनी चाहिए। तब मंगला की पूजा उन भक्तों द्वारा की जानी चाहिए जिन्होंने बिंदु तीर्थ के जल से जल संस्कार किया है। तत्पश्चात् ऐश्वर्य में निरन्तर वृद्धि के उद्देश्य से उसे महालक्ष्मी के पास जाना चाहिए। इस पवित्र स्थान पर तीर्थयात्रा करने से जो मोक्ष का कारण बनता है, किसी भी व्यक्ति को न तो यहाँ और न ही भविष्य में दुखों का सामना करना पड़ेगा।
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मुखनिर्मालिका गौरी का मंदिर गाय घाट पर स्थित है।
The temple of Mukha Nirmalika Gauri is situated at Gai Ghat.
For the benefit of Kashi residents and devotees : -
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥