Parvateshwar (पर्वतेश्वर)

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Parvateshwar

पर्वतेश्वर

काशीखण्डः अध्यायः ६१

हरिश्चंद्रेश्वरं नत्वा न सत्यात्परिहीयते ।। ततः पर्वततीर्थं च पर्वतेश्वर संनिधौ ।।७८।।
अधिष्ठानं महामेरोर्महापातकनाशनम् ।। तत्र स्नात्वार्चयित्वेशं किंचिद्दत्त्वा स्वशक्तितः ।।७९।।
अध्यास्य मेरुशिखरं दिव्यान्भोगान्समश्नुते ।। कंबलाश्वतरं तीर्थं पर्वतेश्वर दक्षिणे ।।८०।।
हरिश्चंद्रेश्वर को प्रणाम करने के बाद कोई भी सत्य से कभी विचलित नहीं होगा। उससे परे, पर्वतेश्वर के आसपास के क्षेत्र में पर्वततीर्थ है जो महामेरु का आधार है और महान पापों का नाश करने वाला है। वहां पवित्र स्नान करके पर्वतेश्वर की पूजा करके, अपनी क्षमता के अनुसार कुछ दान करके पर एक भक्त को मेरु के शिखर पर आसीन होने का तथा वहां के  दिव्य सुखों का आनंद प्राप्त होता है। कंबलाश्वतर तीर्थ पर्वतेश्वर के दक्षिण में है। कंबलाश्वतरेश नाम का शुभ लिंग उस तीर्थ के पश्चिम में है।

महामेरु (सुमेरु पर्वत) : यह जंबूद्वीप के मध्यभाग में अवस्थित तथा एक लाख योजन विस्तार वाला है । यह कभी नष्ट नहीं होता । इसका मूलभाग वज्रमय है । ऊपर का भाग स्वर्ण तथा मणियों एव रत्नों से निर्मित है । सौधर्म स्वर्ग की भूमि और इस पर्वत के शिखर में केवल बाल के अग्रभाग बराबर ही अंतर रह जाता है । समतल पृथिवी से यह निन्यानवे हजार नीचे पृथिवी के भीतर है । पृथिवी पर दश हजार योजन और शिखर पर एक हजार योजन चौड़ा है । इसके मध्यभाग के नीचे भद्रशाल महावन, कटिभाग में नंदनवन, इसके ऊपर सौमनस वन और सबसे ऊपर मुकुट के समान पांडुकवन है । इस पांडुकवन में तीर्थंकरों के अभिषेक हेतु एक पांडुक शिला भी है ।  (महापुराण 13.68-71, 78, 82, पद्मपुराण 3.32-36, हरिवंशपुराण 5.1-3)

प्राचीन संस्कृत साहित्य में मेरु का अदभुत वर्णन, जो होते हुए भी भौगोलिक तथ्यों से भरा हुआ है, सिद्ध करता है कि प्राचीन भारतीय, उस समय में भी जब यातायात के साधन नगण्य थे, पृथ्वी के दूरतम प्रदेशों तक जा पहुँचे थे। मत्स्यपुराण में सुमेरु या मेरु पर देवगणों का निवास बताया गया है। कुछ लोगों का मत है कि पामीर पर्वत को ही पुराणों में सुमेरु या मेरु कहा गया है। मेरु पर्वत पर्वत जिस पर ब्रह्मा और अन्य देवताओं का धाम है। परंतु कुछ तथ्य यहा भी है की अजयमेरु जो की अजमेर राजस्थान मे स्तिथ है ओर पुष्कर धाम जो की ब्रह्मा जी का भी धाम है यही स्थित पहाडो मे से एक पर्वत मेरु पर्वत है। क्युंकि जिस समय की यह बात है तब सागर भी रहा होगा जो की राजस्थान के पश्चिम मे स्थित था जो की अब रेगिस्थान है। श्रंगवान पर्वत पर ऋषी श्रृंग की तपस्या व उनकी जन्म स्थली है उन्हों ने ही श्री राम जी की उत्पत्ति हेतू यज्ञ किया था। मेरु गिरी पर्वत की एक निशसनी महाभारत ग्रंथ मे संजय द्वारा धृतराष्ट्र को महायुद्ध से एक दिन पहले बतलाई गई है,इसमें संजय कहता है,मेरु गिरी पर्वत से दूध से सफेद जल कि धारा बहती है जसे "भागीरथी नदी" नाम से जाना जाता है- 
तस्य शेलस्य शिखरत क्षीरधार नरेश्वर। विश्वरूपापरिमिता भीमनिहर्तनी: स्वना।। 
पुण्या पूण्यतमेजुर्ष्टा गंगा भागीरथी शुभा। पालवन्तीव प्रवेगेन ह्रदे चंद्रमस: शुभे।।

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पर्वतेश्वर K-7/156, सिंधिया (मणिकर्णिका) घाट पर आत्मा वीरेश्वर की ओर जाने वाली सीढ़ियों के शीर्ष पर स्थित है।
Parvateshwar is located at K-7/156, Scindia (Manikarnika) Ghat Top Of The Steps Leading To Atma vireshwar.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 

Kamakhya, Kashi 8840422767 

Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय

कामाख्याकाशी 8840422767

ईमेल : sudhanshu.pandey159@gmail.com


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