Karkotkeshwar (कर्कोटकेश्वर - पँच प्रमुख नाग अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगल द्वारा काशी में लिङ्ग स्थापना)

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Karkotkeshwar
कर्कोटकेश्वर

दर्शन महात्म्य : श्रावण, शुक्ल पंचमी (नाग पंचमी)

कर्कोटकेश्वर, काशी : सभी नाग भगवान शिव के गण हैं उनमें भी पंच प्रमुख नागराजों ने तथा अन्य नागों ने काशी में आकर कुंड/कूप का निर्माण कराया एवं शिवलिंग की स्थापना की नागराजों में से एक है कर्कोटक नाग, उन्होंने काशी में कर्कोटक वापी का निर्माण कराया जिसका रास्ता सीधे नागलोक तक जाता है वापी के मुख पर उन्होंने शिवलिंग स्थापित किया जिन्हें कर्कोटकेश्वर महादेव के नाम से वर्णित है। जन्मेजय द्वारा नाग भस्म यज्ञ से बचने हेतु ब्रह्मा जी की प्रेरणा द्वारा इन्होंने उज्जैन में शिवलिंग स्थापित किया जिस शिवलिंग के सामने तपस्या किया उसी में भगवान शिव की कृपा से विलीन हो गए और इनकी रक्षा हो पाई। तब से वह शिवलिंग कर्कोटकेश्वर महादेव के नाम से जाना जाने लगा। भस्म यज्ञ से बचने के बाद काशी में शिवलिंग स्थापना की महत्ता जान इन्होंने काशी में आकर विधि विधान से शिवलिंग की स्थापना की तथा एक वापी का निर्माण भी कराया
कद्रू और विनता दक्ष प्रजापति की पुत्रियाँ थीं और दोनों कश्यप ऋषि को ब्याही थीं। एक बार कश्यप मुनि ने प्रसन्न होकर अपनी दोनों पत्नियों से वरदान माँगने को कहा। कद्रू ने एक सहस्र पराक्रमी सर्पों की माँ बनने की प्रार्थना की और विनता ने केवल दो पुत्रों की किन्तु दोनों पुत्र कद्रू के पुत्रों से अधिक शक्तिशाली पराक्रमी और सुन्दर हों। कद्रू ने 1000 अंडे दिए और विनता ने दो। समय आने पर कद्रू के अंडों से 1000 सर्पों का जन्म हुआ। पुराणों में कई नागो खासकर वासुकी, शेष, पद्म, कंबल, कर्कोटक, नागेश्वर, धृतराष्ट्र, शंखपाल, कालाख्य, तक्षक, पिंगल, महानाग आदि का विपुल वर्णन मिलता है।

पँच प्रमुख नाग : अनंत, वासुकी, तक्षक, कर्कोटक और पिंगल
नाग-पंचमी पर मुख्यत: पांच पौराणिक नागों की पूजा होती है-अनंत, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक व पिंगल। नाग के कई नाम हैं जैसे शेष यानी अनंत, बासुकि, शंख, पद्म, कंबल, कर्कोटक, अश्वतर, घृतराष्ट, शंखपाल, कालिया, तक्षक व पिंगल इन बारह नागों की बारह महीनों में पूजा करने का विधान है। नागजाति का वैदिक युग में बहुत लंबा इतिहास रहा है, जो भारत से लेकर चीन तक फैला है।
कर्कोटक नाग
कर्कोटक शिव के एक गण हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार सर्पों की मां कद्रू ने जब नागों को सर्प यज्ञ में भस्म होने का श्राप दिया तब भयभीत होकर कंबल नाग ब्रह्माजी के लोक में, शंखचूड़ मणिपुर राज्य में, कालिया नाग यमुना में, धृतराष्ट्र नाग प्रयाग में, एलापत्र ब्रह्मलोक में और अन्य कुरुक्षेत्र में तप करने चले गए। ब्रह्माजी के कहने पर कर्कोटक नाग ने महाकाल वन में महामाया के सामने स्थित लिंग की स्तुति की। (कर्कोटेश्वर संज्ञं च दशमं विद्धि पार्वती। यस्य दर्शन मात्रेण विषैर्नैवाभिभूयते॥) शिव ने प्रसन्न होकर कहा कि- जो नाग धर्म का आचरण करते हैं, उनका विनाश नहीं होगा। इसके उपरांत कर्कोटक नाग उसी शिवलिंग में प्रविष्ट हो गया। तब से उस लिंग को कर्कोटेश्वर कहते हैं। मान्यता है कि जो लोग पंचमी, चतुर्दशी और रविवार के दिन कर्कोटेश्वर शिवलिंग की पूजा करते हैं उन्हें सर्प पीड़ा नहीं होती।

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०६६
कर्कोटनामा नागोस्ति गन्धर्वेश्वरपूर्वतः ॥ तत्र कर्कोटवापी च लिंगं कर्कोटकेश्वरम् ॥ २३॥
तस्यां वाप्यां नरः स्नात्वा कर्कोटेशं समर्च्य च ॥ कर्कोटनागमाराध्य नागलोके महीयते ॥ २४॥
कर्कोट नागो यैर्दृष्टस्तद्वाप्यां विहितोदकैः ॥ क्रमते न विषं तेषां देहे स्थावरजंगमम् ॥ २५॥
कर्कोटेशात्प्रतीच्यां तु धुंधुमारीश्वराभिधम् ॥ तल्लिंगाभ्यर्चनात्पुंसां न भवेद्वैरिजं भयम् ॥ २६॥
पुरूरवेश्वरं लिंगं तदुदीच्यां व्यवस्थितम् ॥ द्रष्टव्यं तत्प्रयत्नेन चतुर्वर्गफलप्रदम् ॥ २७॥
गन्धर्वेश्वर के पूर्वभाग में अर्थात पहले कर्कोटक नाग, कर्कोटक वापी तथा कर्कोटकेश्वर नामक शिवलिङ्ग है। जो व्यक्ति इस वापी में स्नान करके कर्कोटेश्वर तथा कर्कोटकनाग की अर्चना करता है, वह परम सुखपूर्वक नागलोक में निवास करता है। जो कर्कोटक वापी में उदक कार्य (तर्पणादि) सम्पन्न करके कर्कोटक नाग का दर्शन करते हैं, उनके शरीर में स्थावर अथवा जंगम विष का संचार ही नहीं होता। कर्कोटकेश्वर के पश्चिम में धुन्धुमारीश्वर नामक लिङ्ग स्थित है। धुन्धुमारीश्वर लिङ्ग की पूजा से मनुष्यों का शत्रु भय दूर हो जाता है। उसके उत्तर में पुरुरवा द्वारा स्थापित पुरूरवेश्वर लिङ्ग है। यत्नतः इनका दर्शन करें। पुरूरवेश्वर लिङ्ग के दर्शन से चतुर्वर्ग (धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष) का फल प्राप्त होता है।

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०९७
इंद्रेशाद्दक्षिणेभागे शुभा कर्कोटवापिका ॥ तत्र वापीजले स्नात्वा दृष्ट्वा कर्कोटकेश्वरम् ॥१७॥
नागानामाधिपत्यं तु जायते नात्र संशयः ॥ तत्पश्चाद्दृमिचंडेशो ब्रह्महत्याहरो हरः ॥१८॥
इन्द्रेश से दक्षिण दिशा में भव्य कर्कोटवापिका (कर्कोट के नाम पर रखा गया कूप) है। एक भक्त को कूप के जल में स्नान करना चाहिए और कर्कोटकेश्वर के दर्शन करना चाहिए। यह निस्संदेह है कि वह नागों (सर्पों) का अधिपत्य प्राप्त करेगा। इसके पीछे भगवान हर (शिव) दृमिचंडेश्वर (नागकूप के दक्षिण में, मल्लू हलवाई मंदिर के रूप में, J.11/148) हैं जो ब्राह्मण हत्या के पाप को दूर करते हैं।

काशी में नाग यात्रा
प्रतिवर्ष श्रावण शुक्ल पंचमी के दिन इन पांच प्रमुख नागों के द्वारा काशी में स्थापित शिवलिंग की दर्शन पूजन यात्रा करनी चाहिए

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EXACT ORIGINAL GPS LOCATION : 25.32952028825969, 83.01046698282128

कर्कोटकेश्वर जे-26/206, नाग कुआं में स्थित है।
Karkotkeshwar is located at J-26/206, Nag Kuan.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥


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