Pranav Vinayak (प्रणव विनायक)

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Pranav Vinayak

प्रणव विनायक

काश्यां हि काश्यते काशी काशी सर्वप्रकाशिका । सा काशी विदिता येन तेन प्राप्ता हि काशिका ॥
आत्मज्ञान के प्रकाश से काशी जगमगाती है, काशी सब वस्तुओं को आलोकित करती है। जो इस सत्य को जान गया वह काशी में एकरूप हो जाता है। काशी को केवल भगवान ढुंढिराज की कृपा तथा भगवान विश्वनाथ एवं भगवान बिंदुमाधव के आशीर्वाद से ही प्राप्त किया जा सकता है

काशी में भगवत प्रेमी विद्वानों का अकाल : सदियों से भगवान हिरण्यगर्भभेश्वर के मंदिर में दक्षिणी दीवाल पर स्थित विनायक को प्रणव विनायक घोषित कर पूजा की जाती रही है। लेख आधारित तथाकथित मूर्धन्य विद्वानों ने बिना सोचे समझे काशीखंड का गहनता पूर्वक अध्ययन किए बिना पुस्तकों की नकल करते हुए अपनी अपनी पुस्तकें प्रकाशित की परंतु वह यह भूल गए की  स्कंदपुराण सनातन वैदिक ग्रंथ है ना कि भौतिक विषय संबंधी कोई भौतिक पुस्तक। यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि यह तथाकथित सभी मूर्धन्य विद्वान कभी ना कभी भगवान हिरण्यगर्भभेश्वर के मंदिर में गए ही होंगे (यदि नहीं गए तो इनकी पुस्तकों का कोई अर्थ नहीं है)। बड़े घोर आश्चर्य की बात है कि प्रणव का अर्थ  जानते हुए भी इन्हें मंदिर के उत्तरी दीवाल पर प्रणवाक्षर के मध्य भगवान विनायक दिखाई ही नहीं दिए अर्थात इन्हें देव ने दर्शन देना ही उचित नहीं समझा। 

पुराणों के वचन पूर्णतः अटल है। पूर्वकाल काशी में भगवत प्रेमी ब्राह्मणों की प्रचुरता थी उस समय काशी में काशीखण्डोक्त मंदिरों का सांगोपांग विधि से दर्शन पूजन यात्रा संपन्न की जाती थी। कलिकाल का प्रभाव जैसे-जैसे बढ़ा इस विधि से यात्रा करने वाले ब्राह्मणों का अकाल हो गया वर्तमान पीढ़ियां देवताओं के प्रति उदासीन है।

काशीखण्डः अध्यायः ५७

गंगायाः पश्चिमे कूले प्रणवाख्यो गणाधिपः ।। अवाच्यां राजपुत्राच्च प्रणतः प्रणयेद्दिवम् ।।७७।।
प्रणव नाम के गणाधिप गंगा के पश्चिमी तट पर और राजपुत्र के दक्षिण में है। नतमस्तक होने पर वह (भक्त को) स्वर्ग की ओर ले जायेंगे।
याम्यां प्रणवविघ्नेशाद्गणेशो मोदकप्रियः ।। पूज्यः पिशंगिला तीर्थे देवनद्यास्तटे शुभे ।। ८७ ।।
मोदकप्रिय गणेश पिशंगिला तीर्थ में दिव्य नदी (गंगा जी) के शुभ तट पर प्रणवविघ्नेश के दक्षिण में स्थित हैं। वह आराधना के योग्य है।

प्रणवाक्षर 

सनातन धर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति देव उपासना के दौरान शास्त्रों, ग्रंथों में या भजन और कीर्तन के दौरान "ॐ" महामंत्र को कई बार पढ़ता, सुनता या बोलता है। ऋषि-मुनि कहते है ये "ॐ" की ध्वनि परमात्मा तक पहुचने का माध्यम है। धर्मशास्त्रों में यही "ॐ" प्रणव नाम से भी पुकारा गया है। असल में इस पवित्र अक्षर व नाम से गहरे अर्थ व दिव्य शक्तियां जुड़ीं हैं, जो अलग-अलग पुराणों और शास्त्रों में कई तरह से बताई गई हैं। खासतौर पर शिवपुराण में "ॐ" के प्रणव नाम से जुड़ी शक्तियों, स्वरूप व प्रभाव के गहरे रहस्य बताए हैं। 

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका, प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका।
हे मूर्खो, तुम सब ये जान लो के ब्रह्मा, विष्णु, शिव तीनो ही प्रणव अक्षर (ॐ) के मध्य एक है।

शिव पुराण के अनुसार - 
शिव पुराण में प्रणव के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ और भाव बताए गए हैं- 'प्र' यानी प्रपंच, 'ण' यानी नहीं और 'व:' यानी तुम लोगों के लिए। सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है। यही कारण है ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है।

ऋषि-मुनियों की दृष्टि से
'प्र - प्रकर्षेण,'ण - नयेत् और व: युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। इसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव है।

धार्मिक दृष्टि से परब्रह्म या महेश्वर स्वरूप भी नव या नया और पवित्र माना जाता  है। प्रणव मंत्र से उपासक नया ज्ञान और शिव स्वरूप पा लेता है। इसलिए भी यह प्रणव कहा गया है।

शिवपुराण की तरह अन्य हिन्दू धर्मशास्त्रों में भी प्रणव यानी "ॐ" ऐसा अक्षर स्वरूप साक्षात् ईश्वर माना जाता है और मंत्र भी। इसलिए यह एकाक्षर ब्रह्म भी कहलाता है। धार्मिक मान्यताओं में प्रणव मंत्र में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और शिव की सामूहिक शक्ति समाई है। यह गायत्री और वेद रूपी ज्ञान शक्ति का भी स्त्रोत माना गया है।

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प्रणव विनायक त्रिलोचन घाट की सीढ़ियों पर हिरण्यगर्भेश्वर मंदिर के भीतर उत्तरी दीवाल में स्थित है।
Pranav Vinayak is located on the northern wall inside the Hiranyagarbheshwar temple on the steps of the Trilochan Ghat.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 

Kamakhya, Kashi 8840422767 

Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय

कामाख्याकाशी 8840422767

ईमेल : sudhanshu.pandey159@gmail.com



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