Charchika Devi
(चर्चिका देवी)
स्कन्दपुराण (काशीखण्ड)
लिंगे त्वष्ट्रीशवृत्तेशौ मुखप्रेक्षोत्तरे शुभे । सहेमभूमिदानस्य फलं दर्शनतस्तयोः ।।९७.१८९।।
तदुत्तरे चर्चिकाया देव्याः संदर्शनं शुभम् । रेवतेश्वर लिंगं च चर्चिकाग्रेण शांतिकृत् ।।९७.१९०।।
महाशुभायतस्याग्रे लिंगं पंचनदेश्वरम् । मंगलोदो महाकूपो मंगला पश्चिमे शुभः ।।९७.१९१।।
मुखप्रेक्षा के उत्तर में त्वष्ट्रीश्वर (12 आदित्यों में 11 का नाम त्वष्टा है) और वृत्तेश्वर नाम के दो शुभ लिंग हैं। वे कहते हैं कि उन दोनों देवताओं के दर्शन करने का वही पुण्य है जो सोने के साथ भूमि के एक टुकड़े के दान का है। इसके उत्तर में देवी चर्चिका हैं, जिनके दर्शन करना शुभ है। चरचिका के सामने रेवतेश्वर लिंग है जो शांति का कारण है। इसके सामने पञ्चनदेश्वर लिंग है जो महान शुभता के अनुकूल है। मंगला के पश्चिम में मंगलोदा ('शुभ जल का एक कुआँ') है।
लिङ्गपुराण (उत्तरभाग)
मंगला चर्चिका चैव योगेशा हरदायिका। भासुरा सुरमाता च सुंदरी मातृकाष्टमी।। २७.११८ ।।
वामनपुराण
त्वां पूजयिष्यन्ति सुरा ऋषयः पितरोरगाः। यक्षविद्याधराश्चैव मानवाश्च शुभंकरि।।७०.४५।।
त्वां स्तोष्यन्ति सदा देवि बलिपुष्पोत्करैः करैः। चर्च्चिकेति शुभं नाम यस्माद् रुधिरचर्चिता।।७०.४६।।
इत्येवमुक्ता वरदेन चर्चिका भूतानुजाता हरिचर्मवासिनी।
महीं समन्ताद् विचचार सुन्दरी स्थानं गता हैङ्गुलताद्रिमुत्तमम्।।७०.४७।।
तस्यां गतायां वरदः कुजस्य प्रादाद् वरं सर्ववरोत्तमं यत्।
ग्रहाधिपत्यं जगतां शुभाशुभं भविष्यति त्वद्वशगं महात्मन्।।७०.४८।।
हरोऽन्धकं वर्षसहस्रमात्रं दिव्यं स्वनेत्रार्कहुताशनेन।
चकार संशुष्कतनुं त्वशोणितं त्वगस्थिशेषं भगवान् स भैरवः।।७०.४९।।
तत्राग्निना नेत्रभवेन शुद्धः स मुक्तपापोऽसुरराड् बभूव।
ततः प्रजानां बहुरूपमीशं नाथं हि सर्वस्य चराचरस्य।।७०.५०।।
ज्ञात्वा स सर्वेश्वरमीशमव्ययं त्रैलोक्यनाथं वरदं वरेण्यम्।
सर्वैः सुराद्यैर्नतमीड्यमाद्यं ततोऽन्धकः स्तोत्रमिदं चकार।।७०.५०।।
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