Vishwabhuja Gauri
(विश्वभुजा या विश्वबाहुका गौरी)
काशीखण्डः अध्यायः ७०
मुने विश्वभुजा गौरी विशालाक्षी पुरः स्थिता । संहरंती महाविघ्नं क्षेत्रभक्तिजुषां सदा ।। २२ ।।
शारदं नवरात्रं च कार्या यात्रा प्रयत्नतः । देव्या विश्वभुजाया वै सर्वकामसमृद्धये ।।२३।।
यो न विश्वभुजां देवीं वाराणस्यां नमेन्नरः । कुतो महोपसर्गेभ्यस्तस्य शांतिर्दुरात्मनः ।। २४ ।।
यैस्तु विश्वभुजा देवी वाराणस्यां स्तुतार्चिता । न हि तान्विघ्नसंघातो बाधते सुकृतात्मनः ।। २५ ।।
हे ऋषि, देवी विश्वभुजा, गौरी का एक स्वरुप विशालाक्षी के सामने स्थित है, जो हमेशा पवित्र स्थान की भक्ति करने वालों की बड़ी बाधाओं को नष्ट कर देता है। सभी वांछित वस्तुओं की वृद्धि के लिए देवी विश्वभुजा का धार्मिक उत्सव शरद ऋतु (नवरात्र) के नौ दिनों (अश्विन के शुक्ल पक्ष में पहले से नौवें दिन) के दौरान परिश्रमपूर्वक मनाया जाना चाहिए। यदि कोई मनुष्य वाराणसी में देवी विश्वभुजा को प्रणाम नहीं करता है, तो उस दुष्टात्मा को बड़ी विपत्तियों से मानसिक शांति कैसे मिल सकती है। वाराणसी में जिनके द्वारा देवी विश्वभुजा की स्तुति और पूजा की जाती है, वे कभी भी बाधाओं के समूह से परेशान नहीं होते हैं। वे दिव्य आत्माएं हैं।
स्वच्छन्दपद्धतिः
सा योगिनी महामाया स्थातु श्रीर्मस्तके मम । या विश्वबाहुका देवी विश्वनाथप्रिया सती ॥ ५३ ॥
काशीखण्डः अध्यायः ३३
एषा विश्वभुजा देवी विश्वैकजननी परा । असौ बंदी महादेवी नित्यं त्रैलोक्यवंदिता ।। ७७ ।।
लक्ष्मीनारायणसंहिता खण्डः १ (कृतयुगसन्तानः) अध्यायः ४७३
कुरु व्रतं मनोरथतृतीयायाः शुभे शुचि । तेन व्रतेन चीर्णेन महासौभाग्यदेन तु ।।६३।।
अवश्यं भविता चेष्टस्तव चैवं मनोरथः । पूज्या विश्वभुजा गौरी भुजविंशतिशालिनी ।।६४।।
वरदोऽभवहस्तश्च साक्षसूत्रः समोदकः । देव्याः पुरस्ताद् व्रतिन्या पूज्य आशाविनायकः ।।६५।।
चैत्रशुक्लद्वितीयायां गृह्णीयान्नियमं शुभम् । ब्रह्मचर्यं भूशयनं प्रातरुत्थाय वै शुचि ।।६६।।
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