Vyas Hanuman
व्यास हनुमान
मंगलमूर्ति मारुती नंदन। सकल अमंगल मूल निंकंदन॥
पवनतनय संतन हितकारी। ह्रदय बिराजत अवध बिहारी॥
मातु पिता गुरु गणपति सारद। सिवासमेत संभु सुक नारद॥
चरण बंदि बिनवौ सब काहू। देहि रामपदनेहनिबाहू॥
बंदौ रामलखनबैदेही। जे तुलसीके परम सनेही॥
॥ गोस्वामी तुलसीदास द्वारा काशी में स्थापित एकादश रुद्र हनुमान स्वरूप॥
रावण का अंत करने के लिए भगवान विष्णु ने राम का अवतार लिया था। इस समय सभी देवताओं ने अलग-अलग रूप में भगवान राम की सेवा करने के लिए अवतार लिए थे। भगवान शंकर को विष्णु भगवान से दास्य वरदान प्राप्त था। भगवान शंकर ने श्रीराम की सेवा करने के लिए अपना रूद्र अवतार लिया हनुमान जी भगवान शिव के ग्यारवें रुद्र अवतार हैं। हनुमान जी के जैसा आज तक कोई भक्त नहीं हुआ। इनको देवी देवताओं से अनेक वरदान प्राप्त हुए। श्रीराम भगवान से हनुमानजी को चिरंजीवी होने का वरदान मिला।
गोस्वामी तुलसीदास जी प्रतिदिन प्रातः काल जब शौच के लिये गंगापार जाते थे तो वापसी के समय लोटे में बचे हुये पानी को एक पेड़ के जड़ में डाल दिया करते थे। उस पेड़ में एक प्रेत का निवास था। रोज पानी मिलने की वजह से उसे संतुष्टि मिली वह तुलसीदास जी पर प्रसन्न हो गया और उनके सामने प्रकट होकर उसने वर मांगने के लिया कहा। तुलसीदास जी ने भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन की अभिलाषा व्यक्त की। इस पर प्रेत ने कहा कि मैं भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन तो नहीं करवा सकता पर इतना अवश्य बता सकता हूँ कि कर्णघण्टा में नित्य सायंकाल में भगवान श्रीरामचंद्र की कथा होती है और वहाँ कथा सुनने के लिये हनुमान जी कोढ़ी के वेश में आते हैं। कथा सुनने के लिये सबसे पहले वे ही आते हैं और सबके चले जाने के बाद अंत में ही वे जाते हैं। वे ही आपको भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन करा सकते हैं अतः वहाँ जाकर उन्हीं से प्रार्थना कीजिये। जब कथा समाप्त हो गई तो कोढ़ी के रूप में बैठे हनुमान जी को तुलसी दास जी ने पहचान लिया और उनका पीछा किया। हनुमान जी तेजी के साथ कर्णघंटा के व्यास पीठ से दक्षिण दिशा (वन) की ओर बढे और असि नदी पार करके वन में उन्होंने हनुमान जी के चरण पकड़ लिए यहीं उनका संकट मोचन स्वरुप काशी में स्थापित है। हनुमान जी ने कहा कि चित्रकूट चले जाओ वहीं तुम्हे भगवान श्रीरामचंद्र के दर्शन होंगे।
कर्णघंटा तीर्थ पर भगवान वेदव्यास द्वारा शिवलिंग तथा व्यास कूप स्थापित होने से यह स्थान काशी का व्यासपीठ भी कहलाता है।अतः यहां भगवान की कथा का होना स्वाभाविक था। काशी के इस व्यासपीठ पर बाद में तुलसीदास जी द्वारा हनुमान जी का विग्रह स्थापित किया गया जिसे स्थान के नाम पर ही व्यास हनुमान के नाम से जाना जाता है। हनुमान जी भगवान शिव के 11वें रुद्र अवतार थे। अतः गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा काशी (वाराणसी सीमा) में हनुमान जी के एकादश रूद्र हनुमान विग्रह स्थापित किए गए तथा एक विग्रह काशी के बाहर जहां पर हनुमान जी से उनकी भेंट वन (वर्तमान संकट मोचन) में हुई थी उसको लेकर १२ हनुमान मंदिर तुलसीदास जी द्वारा काशी पंचक्रोशी में स्थापित एवं प्राण प्रतिष्ठित किए गए।
व्यास हनुमान कर्णघंटा, व्यास कूप, K.60/67 में स्थित है।
Vyas Hanuman is located at Karnaghanta, Vyas Koop, K.60/67 .
For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥