Vishweshwar Ling (काशी का विश्वतीर्थ एवं अधिष्ठाता देवता विश्वबाहुका गौरी एवं विश्वेश्वर या विश्वनाथ लिङ्ग)

4 minute read
0

काशी का विश्वतीर्थ एवं अधिष्ठाता देवता विश्वबाहुका गौरी एवं विश्वेश्वर या विश्वनाथ लिङ्ग

भगवान विश्वनाथजी अपनी प्रिय सती, महायोगिनी, महादेवी, त्रैलोक्यवंदिता, भुजविंशतिशालिनी, महाविघ्न विनाशिनी विश्वभुजा गौरी पौराणिक वर्णन यहाँ देखें

स्कन्दपुराण में भगवान शिव ने जिन विभिन्न तीर्थों का उल्लेख किया है, वे सभी काशी में भी प्रतिष्ठित हैं। काशी, जिसे 'विश्व तीर्थ' भी कहा जाता है। इसमें भगवान शिव के सभी प्रमुख रूपों और तीर्थों का वास है। यहाँ काशी में भगवान शिव के विभिन्न रूपों के दर्शन होते हैं - 

  1. महादेव (वाराणसी) - काशी में भगवान शिव 'महादेव' के रूप में निवास करते हैं, जो सम्पूर्ण सृष्टि के पालनहार हैं।
  2. महेश्वर (प्रयाग) - काशी में भगवान शिव 'महेश्वर' के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के शासक हैं।
  3. देवदेव (नैमिषारण्य) - काशी में भगवान शिव 'देवदेव' के रूप में हैं, जो देवताओं के देवता माने जाते हैं।
  4. प्रपितामह (गया) - काशी में भगवान शिव 'प्रपितामह' रूप में अवस्थित हैं, जो पितरों के रक्षक हैं।
  5. स्थाणु (कुरुक्षेत्र) - काशी में भगवान शिव 'स्थाणु' के रूप में विराजमान हैं, जो सृष्टि के निर्माता और ब्रह्मांड के संजीवक हैं।
  6. शशिशेखर (प्रभास) - काशी में भगवान शिव 'शशिशेखर' के रूप में उपस्थित हैं, जिनके सिर पर चंद्रमा विराजते हैं।
  7. अजगंधी (पुष्कर) - काशी में भगवान शिव 'अजगंधी' रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो सम्पूर्ण सृष्टि को शुद्ध करने वाले हैं।
  8. विश्वेश्वर (विश्व तीर्थ) - काशी में भगवान शिव 'विश्वेश्वर' के रूप में प्रतिष्ठित हैं, जो सम्पूर्ण ब्रह्मांड के ईश्वर और संप्रभु हैं।


शिवपुराणम्/संहिता_७_(वायवीयसंहिता)/उत्तर_भागः/अध्यायः_०४
शिवयोर्वै वशे विश्वं न विश्वस्य वशे शिवौ ॥ ईशितव्यमिदं यस्मात्तस्माद्विश्वेश्वरौ शिवौ ॥८॥
यथा शिवस्तथा देवी यथा देवी तथा शिवः ॥ नानयोरंतरं विद्याच्चंद्रचन्द्रिकयोरिव ॥९॥
शिवा और शिवके ही वश में यह विश्व है। विश्वके वश में शिवा और शिव नहीं हैं। यह जगत् शिव और शिवा के शासन में है, इसलिये वे दोनों इसके ईश्वर या विश्वेश्वर कहे गये हैं।  जैसे शिव हैं वैसी शिवादेवी हैं, तथा जैसी शिवा देवी हैं, वैसे ही शिव हैं। जिस तरह चन्द्रमा और उनकी चाँदनी में कोई अन्तर नहीं है, उसी प्रकार शिव और शिवा में कोई अन्तर न समझे।

स्वच्छन्दपद्धतिः
सा योगिनी महामाया स्थातु श्रीर्मस्तके मम । या विश्वबाहुका देवी विश्वनाथप्रिया सती ॥ ५३ ॥
वह योगिनी महामाया मेरे मस्तक पर सदा प्रतिष्ठित रहें, जो विश्वबाहुका देवी (संपूर्ण ब्रह्मांड को धारण करने वाली) तथा विश्वनाथ की प्रिय सती हैं।
 
स्कन्दपुराणम्/खण्डः ६ (नागरखण्डः)/अध्यायः १०९
॥ श्रीदेव्युवाच ॥
येषु तीर्थेषु यन्नाम कीर्तनीयं तव प्रभो ॥ तत्कार्त्स्येन मम ब्रूहि यच्चहं तव वल्लभा ॥ ४ ॥
श्रीदेवी (पार्वती) ने कहा: हे प्रभु! वह कौन से नाम है जिसके द्वारा आपको एक विशिष्ट पवित्र स्थान पर महिमामंडित किया जाना चहिये? (अर्थात उन प्रमुख स्थानों में मुख्य लिंग कौन-कौन से हैं) यदि मैं आपकी प्रिय हूँ, तो हे प्रभु, यह पवित्र वर्णन करें..
॥ ईश्वर उवाच ॥
वाराणस्यां महादेवं प्रयागे च महेश्वरम् ॥ नैमिषे देवदेवं च गयायां प्रपितामहम् ॥ ५ ॥
कुरुक्षेत्रे विदुः स्थाणुं प्रभासे शशिशेखरम् ॥ पुष्करे तु ह्यजागन्धिं विश्वं विश्वेश्वरे तथा ॥ ६ ॥
ईश्वर (शिव) ने कहा: वाराणसी में महादेव हूँ, प्रयाग में महेश्वर, नैमिषारण्य में देवदेव, गया में प्रपितामह (प्रपितामहेश्वर), कुरूक्षेत्र में स्थाणु, प्रभास में शशिशेखर, पुष्कर में अजगंधी, और विश्व तीर्थ में विश्वेश्वर नाम से अवस्थित हूँ।

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_१००
आदौ स्वर्गतरंगिण्यास्ततो विश्वेशितुर्ध्रुवम् ॥ यस्य वंध्यं दिनं यातं काश्यां निवसतः सतः ॥ २॥
निराशाः पितरस्तस्य तस्मिन्नेव दिनेऽभवन् ॥ स दष्टः कालसर्पेण स दृष्टो मृत्युना स्फुटम् ॥ ३ ॥
स मुष्टस्तत्र दिवसे विश्वेशो यत्र नेक्षितः ॥
सर्वतीर्थेषु सस्नौ स सर्वयात्रां व्यधात्स च ॥ मणिकर्ण्यां तु यः स्नातो यो विश्वेशं निरैक्षत ॥४॥
सत्यं सत्यं पुनः सत्यं सत्यं सत्यं पुनःपुनः ॥ दृश्यो विश्वेश्वरो नित्यं स्नातव्या मणिकर्णिका॥५॥
प्रारम्भ में गंगा नदी की महिमा है, तत्पश्चात् विश्वेश्वर महादेव का नित्य अचल स्वरूप वंदनीय है। जो पुरुष काशी में निवास करता है, किन्तु जिसका एक भी दिन व्यर्थ जाता है (अर्थात जो भगवान विश्वेश्वर का दर्शन एवं पूजन नहीं करता), उसका वह दिन निष्फल होता है। जिस दिन उसने ऐसा किया, उसी दिन उसके पितर निराश हो जाते हैं। उसी दिन वह कालसर्प के दंशन से पीड़ित होता है और मृत्यु के मुख में पड़ता है। जिस दिन उसने विश्वेश्वर के दर्शन नहीं किए, उसी दिन वह मृत्यु के अधीन हो जाता है। यद्यपि वह समस्त तीर्थों में स्नान कर ले, सम्पूर्ण पुण्ययात्राएँ कर ले, किन्तु यदि उसने मणिकर्णिका में स्नान नहीं किया और विश्वेश्वर का दर्शन नहीं किया, तो वह सब निष्फल ही है। यह सत्य है, पुनः सत्य है, बारम्बार सत्य है—जो व्यक्ति नित्य विश्वेश्वर के दर्शन करता है और मणिकर्णिका में स्नान करता है, वही वास्तविक पुण्य को प्राप्त करता है।

GPS LOCATION OF THIS TEMPLE CLICK HERE

EXACT GPS : 25.310257796930166, 83.011593887318


भगवान विश्वनाथजी अपनी प्रिय सती, महायोगिनी, महादेवी, त्रैलोक्यवंदिता, भुजविंशतिशालिनी, महाविघ्न विनाशिनी विश्वभुजा गौरी के साथ काञ्चन साख महावट के पास विशालाक्षी देवी मंदिर के समीप में धर्मेश्वर कूप के समक्ष स्थित है।
Lord Vishwanathji along with his beloved Sati, Vishvabhuja Gauri is situated in front of Dharmeshwar well, near the Vishalakshi Devi temple near Kanchan Sakkha Mahavat.


For the benefit of Kashi residents and devotees : -
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi

काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)