देवी अंबिका एवं अष्टमातृकाओं का युद्ध संयोजन
(देवी महात्म्य/मार्कण्डेय पुराण के अनुसार)
"नारसिंही च वाराही ब्राह्मणी चैन्द्रिणी तथा। कौमारी वैष्णवी चैव माहेश्वरी च योगिनः॥"
(देवी महात्म्य 8.12)
युद्ध संरचनाशीर्ष पंक्ति (बाएँ से दाएँ):- नारसिंही: विष्णु के नृसिंह अवतार की शक्ति, सिंहवाहिनी, नखदंश से आक्रमण
- वैष्णवी: विष्णु की शक्ति, गरुड़वाहिनी, सुदर्शन चक्र धारिणी
- कौमारी: कार्तिकेय की शक्ति, मयूरवाहिनी, शक्ति (भाला) धारिणी
- माहेश्वरी: शिव की शक्ति, वृषभवाहिनी, डमरू और त्रिशूल धारिणी
निचली पंक्ति (बाएँ से दाएँ):- वाराही: विष्णु के वराह अवतार की शक्ति, वराहवाहिनी, गदाधारिणी
- ऐन्द्री: इन्द्र की शक्ति, ऐरावतवाहिनी, वज्रधारिणी
- चामुण्डा: शिव की उग्र शक्ति, प्रेतवाहिनी, त्रिशूल और खप्पर धारिणी
- ब्राह्मणी: ब्रह्मा की शक्ति, हंसवाहिनी, कमण्डलु और अक्षमाला धारिणी
रक्तबीज के विरुद्ध युद्ध रणनीति- नेतृत्व: देवी अंबिका (दुर्गा/चंडी) ने सम्पूर्ण आक्रमण का संचालन किया।
- प्रमुख भूमिका: चामुण्डा ने रक्तबीज के रक्त का पान किया (रक्त की प्रत्येक बूंद से नए राक्षस उत्पन्न होने से रोका)। नारसिंही एवं वाराही ने भीषण मुख्य आक्रमण किया। ऐन्द्री ने वज्र से आघात किया। ब्राह्मणी ने मंत्र शक्ति से राक्षस को निष्प्रभावी किया।
- अंतिम वध: देवी काली (चामुण्डा का उग्र रूप) ने रक्तबीज का सिर धड़ से अलग किया।
देवी महात्म्य से प्रमुख संदर्भ- स्रोत: मार्कण्डेय पुराण, दुर्गा सप्तशती (अध्याय 7-8)।
- विशेष तथ्य: प्रत्येक मातृका सम्बंधित देवता की "शक्ति-स्वरूपा" हैं। यह युद्ध "शक्ति के समन्वय" का प्रतीक है। देवी अंबिका ने इन आठों को युद्ध के लिए प्रेरित किया, परन्तु अंतिम प्रहार स्वयं किया।
Astamatrika's of Kashi
देवी अंबिका एवं अष्टमातृकाओं का युद्ध संयोजन
(देवी महात्म्य/मार्कण्डेय पुराण के अनुसार)
"नारसिंही च वाराही ब्राह्मणी चैन्द्रिणी तथा। कौमारी वैष्णवी चैव माहेश्वरी च योगिनः॥"
(देवी महात्म्य 8.12)
युद्ध संरचना
शीर्ष पंक्ति (बाएँ से दाएँ):
- नारसिंही: विष्णु के नृसिंह अवतार की शक्ति, सिंहवाहिनी, नखदंश से आक्रमण
- वैष्णवी: विष्णु की शक्ति, गरुड़वाहिनी, सुदर्शन चक्र धारिणी
- कौमारी: कार्तिकेय की शक्ति, मयूरवाहिनी, शक्ति (भाला) धारिणी
- माहेश्वरी: शिव की शक्ति, वृषभवाहिनी, डमरू और त्रिशूल धारिणी
निचली पंक्ति (बाएँ से दाएँ):
- वाराही: विष्णु के वराह अवतार की शक्ति, वराहवाहिनी, गदाधारिणी
- ऐन्द्री: इन्द्र की शक्ति, ऐरावतवाहिनी, वज्रधारिणी
- चामुण्डा: शिव की उग्र शक्ति, प्रेतवाहिनी, त्रिशूल और खप्पर धारिणी
- ब्राह्मणी: ब्रह्मा की शक्ति, हंसवाहिनी, कमण्डलु और अक्षमाला धारिणी
रक्तबीज के विरुद्ध युद्ध रणनीति
- नेतृत्व: देवी अंबिका (दुर्गा/चंडी) ने सम्पूर्ण आक्रमण का संचालन किया।
- प्रमुख भूमिका: चामुण्डा ने रक्तबीज के रक्त का पान किया (रक्त की प्रत्येक बूंद से नए राक्षस उत्पन्न होने से रोका)। नारसिंही एवं वाराही ने भीषण मुख्य आक्रमण किया। ऐन्द्री ने वज्र से आघात किया। ब्राह्मणी ने मंत्र शक्ति से राक्षस को निष्प्रभावी किया।
- अंतिम वध: देवी काली (चामुण्डा का उग्र रूप) ने रक्तबीज का सिर धड़ से अलग किया।
देवी महात्म्य से प्रमुख संदर्भ
- स्रोत: मार्कण्डेय पुराण, दुर्गा सप्तशती (अध्याय 7-8)।
- विशेष तथ्य: प्रत्येक मातृका सम्बंधित देवता की "शक्ति-स्वरूपा" हैं। यह युद्ध "शक्ति के समन्वय" का प्रतीक है। देवी अंबिका ने इन आठों को युद्ध के लिए प्रेरित किया, परन्तु अंतिम प्रहार स्वयं किया।
Astamatrika's of Kashi
(काशी की अष्टमातृकाएँ)
अष्टमातृकाएँ (आठ दिव्य मातृशक्तियाँ) – ब्रह्माणी, वैष्णवी, माहेश्वरी, ऐन्द्री, कौमारी, वाराही, नारसिंही और चामुण्डा – ये आठ देवियाँ देवी दुर्गा की प्रमुख शक्तियाँ हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब शुंभ-निशुंभ राक्षसों से युद्ध करते समय देवी को सहायता की आवश्यकता हुई, तब सभी देवताओं ने अपनी-अपनी शक्तियाँ प्रदान कीं, जो अष्टमातृकाओं के रूप में प्रकट हुईं।
छठी पूजा और अष्टमातृकाओं का संबंध : हिंदू संस्कृति में छठी माता का पूजन (जन्म के छठे दिन) वास्तव में सप्तमातृका/अष्टमातृका पूजन का ही एक रूप है। यह मान्यता है कि नवजात शिशु की रक्षा के लिए इन आठ मातृशक्तियों का आशीर्वाद आवश्यक होता है। काशी में इन देवियों के मंदिरों में पूजा करने से संतान की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०७०
अन्यास्ति काश्यां वाराही क्रतुवाराहसन्निधौ ॥ तां प्रणम्य नरो भक्त्या विपदब्धौ न मज्जति ॥७०.२६॥
शिवदूती तु तत्रैव द्रष्टव्याऽऽपद्विनाशिनी ॥ आनंदवनरक्षार्थमुद्यच्छूलारितर्जनी ॥७०.२७॥
वज्रहस्ता तथा चैंद्री गजराज रथास्थिता ॥ इंद्रेशाद्दक्षिणेभागेऽर्चिता संपत्करी सदा ॥७०.२८॥
स्कंदेश्वर समीपे तु कौमारी बर्हियानगा ॥ प्रेक्षणीया प्रयत्नेन महाफलसमृद्धये ॥७०.२९॥
महेश्वराद्दक्षिणतो देवी माहेश्वरी नरैः ॥ वृषयानवती पूज्या महावृषसमृद्धिदा ॥७०.३०॥
निर्वाणनरसिंहस्य समीपे मोक्षकांक्षिभिः ॥ नारसिंही समर्च्या च समुद्यच्चक्र रम्यदोः ॥७०.३१॥
हंसयानवती ब्राह्मी ब्रह्मेशात्पश्चिमे स्थिता ॥ गलत्कमंडलुजल चुलका ताडिता हिता ॥७०.३२॥
ब्रह्मविद्या प्रबोधार्थं काश्यां पूज्या दिनेदिने ॥ ब्राह्मणैर्यतिभिर्नित्यं निजतत्त्वावबोधिभिः ॥७०.३३॥
शार्ङ्गचापविनिर्मुक्त महेषुभिरितस्ततः ॥ उत्सादयंतीं प्रत्यूहान्काश्यां नारायणीं श्रयेत् ॥७०.३४॥
प्रतीच्यांगोपिगोविंदाद्भ्राम्यच्चक्रोच्च तर्जनीम्॥ नारायणीं यः प्रणमेत्तस्य काश्यां महोदयः॥७०.३५॥
शिवदूती तु तत्रैव द्रष्टव्याऽऽपद्विनाशिनी ॥ आनंदवनरक्षार्थमुद्यच्छूलारितर्जनी ॥७०.२७॥
वज्रहस्ता तथा चैंद्री गजराज रथास्थिता ॥ इंद्रेशाद्दक्षिणेभागेऽर्चिता संपत्करी सदा ॥७०.२८॥
स्कंदेश्वर समीपे तु कौमारी बर्हियानगा ॥ प्रेक्षणीया प्रयत्नेन महाफलसमृद्धये ॥७०.२९॥
महेश्वराद्दक्षिणतो देवी माहेश्वरी नरैः ॥ वृषयानवती पूज्या महावृषसमृद्धिदा ॥७०.३०॥
निर्वाणनरसिंहस्य समीपे मोक्षकांक्षिभिः ॥ नारसिंही समर्च्या च समुद्यच्चक्र रम्यदोः ॥७०.३१॥
हंसयानवती ब्राह्मी ब्रह्मेशात्पश्चिमे स्थिता ॥ गलत्कमंडलुजल चुलका ताडिता हिता ॥७०.३२॥
ब्रह्मविद्या प्रबोधार्थं काश्यां पूज्या दिनेदिने ॥ ब्राह्मणैर्यतिभिर्नित्यं निजतत्त्वावबोधिभिः ॥७०.३३॥
शार्ङ्गचापविनिर्मुक्त महेषुभिरितस्ततः ॥ उत्सादयंतीं प्रत्यूहान्काश्यां नारायणीं श्रयेत् ॥७०.३४॥
प्रतीच्यांगोपिगोविंदाद्भ्राम्यच्चक्रोच्च तर्जनीम्॥ नारायणीं यः प्रणमेत्तस्य काश्यां महोदयः॥७०.३५॥
श्री स्कन्द ने कहा: "वाराणसी में क्रतुवराह के समीप वाराही देवी विराजमान हैं, जिन्हें भक्तिपूर्वक प्रणाम करने से मनुष्य संकटों के सागर में डूबने से बच जाता है। वहीं शिवदूती देवी का दर्शन करना चाहिए, जो आनंदवन की रक्षा के लिए त्रिशूल धारण किए हुए शत्रुओं को धमकाती हैं और विपत्तियों का नाश करती हैं। इन्द्रेश्वर के दक्षिण में ऐन्द्री देवी वज्रधारिणी तथा गजवाहिनी हैं, जिनकी पूजा करने से सदैव समृद्धि मिलती है। स्कन्देश्वर के निकट कौमारी देवी मयूर पर सवार हैं, जिनके दर्शन से महान लाभ प्राप्त होता है। महेश्वर के दक्षिण में माहेश्वरी देवी वृषभारूढ़ हैं, जो गौ-सम्पत्ति प्रदान करती हैं। निर्वाण-नरसिंह के समीप नारसिंही देवी चक्रधारिणी हैं, जिनकी आराधना से मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मेश्वर के पश्चिम में ब्राह्मी देवी हंसवाहिनी हैं, जो कमण्डलु के जल से ही शत्रुओं का नाश कर देती हैं और ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों तथा साधकों को उनकी नित्य पूजा करनी चाहिए। काशी में नारायणी देवी का स्मरण करना चाहिए, जो शार्ङ्ग धनुष से बाण छोड़कर सभी विघ्नों को दूर कर देती हैं। गोपी-गोविन्द के पश्चिम में विराजमान नारायणी देवी अपनी तर्जनी अंगुली में चक्र घुमाती हैं, जिन्हें प्रणाम करने से महान समृद्धि प्राप्त होती है।"
काशी की अष्टमातृकाएँ (देवी के आठ रूप) | |
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पौराणिक महत्व:
- ये सभी देवियाँ श्री स्कन्द पुराण के काशीखण्ड में वर्णित हैं
- छठी पूजा में इन्हीं मातृकाओं की उपासना होती है
- प्रत्येक देवी सम्बंधित देवता की शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हैं
- काशी में इनके दर्शन से विशेष फल की प्राप्ति होती है
For the benefit of Kashi residents and devotees : -
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥