Muktinath Kshetra Yatra (शालिग्राम भगवान की प्राप्ति हेतु आषाढ़ मास में मुक्ति नारायण क्षेत्र की यात्रा एवं गण्डकी नदी का महात्म्य)

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गण्डकी नदी के जल में बहने वाली शालग्राम शिलाएँ, जो भगवान विष्णु के विविध रूपों की रूपरेखा में प्रकट होती हैं, अत्यन्त पवित्र और पुण्यमयी मानी जाती हैं। इन शिलाओं के दर्शन से भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति और भगवान विष्णु की भक्ति की प्राप्ति होती है। गण्डकी नदी, जो कि एक अत्यन्त पवित्र और पुण्यदायिनी नदी मानी जाती है, वहाँ शालग्राम शिलाएँ अनगिनत रूपों में प्रकट होती हैं। इन शिलाओं में भगवान विष्णु के विविध रूपों की मूर्तियाँ स्थापित हैं, जो भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति कराती हैं।

गण्डकी नदी में शालग्राम शिला के रूप में जो मूर्तियाँ प्रकट होती हैं, उनमें से प्रमुख रूप हैं:

  • मत्स्य रूप – इस रूप में भगवान विष्णु मछली के रूप में प्रकट होते हैं, जो समुद्र मंथन से उत्पन्न हुईं।
  • कच्छप रूप – भगवान विष्णु कच्छप के रूप में प्रकट होते हैं, जिन्होंने मंदर पर्वत को अपनी पीठ पर धारण किया था।
  • वाराह रूप – भगवान विष्णु वराह के रूप में प्रकट होते हैं, जिन्होंने पृथ्वी को राक्षसों से बचाने के लिए राक्षसों से युद्ध किया।
  • वामन रूप – भगवान विष्णु वामन के रूप में प्रकट होते हैं, जिन्होंने महाबली बलि से तीन पग भूमि के लिए विनती की और पृथ्वी को तीन पगों में नाप लिया।
  • श्रीराम रूप – भगवान विष्णु श्रीराम के रूप में प्रकट होते हैं, जो राक्षसों के विनाशक और धर्म के पालनकर्ता माने जाते हैं।
  • परशुराम रूप – भगवान विष्णु परशुराम के रूप में प्रकट होते हैं, जिन्होंने ब्राह्मणों के संरक्षण के लिए शस्त्रों का प्रयोग किया और अधर्मियों का नाश किया।
  • श्रीकृष्ण रूप – भगवान विष्णु श्रीकृष्ण के रूप में प्रकट होते हैं, जो गोकुलवासियों के साथ लीला करते हुए दुष्टों का संहार करते हैं और भक्तों की रक्षा करते हैं।
  • बुद्ध रूप – भगवान विष्णु के रूप में बुद्ध भी गण्डकी नदी के शालग्राम शिलाओं में प्रकट होते हैं, जो ज्ञान और सत्य के प्रतीक माने जाते हैं।
  • कल्कि रूप – भगवान विष्णु कल्कि के रूप में प्रकट होंगे, जो इस कलियुग के अंत में अधर्म और अराजकता का नाश करेंगे।


इन सभी रूपों के दर्शन मात्र से भक्तगण पुण्य के भागी बनते हैं और उनके जीवन के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं। शालग्राम शिलाओं में यह विविध रूप भगवान विष्णु के अद्वितीय स्वरूपों का प्रतीक हैं, जो प्रत्येक रूप में भक्तों को अलग-अलग प्रकार से मोक्ष और शांति प्रदान करते हैं। गण्डकी नदी के जल में स्नान करने से, जो शालग्राम शिलाओं के दर्शन के साथ होता है, भक्तगण ब्रह्महत्या, गोहत्या, भ्रूणहत्या आदि समस्त पापों से मुक्त हो जाते हैं। यह स्थान अत्यन्त पुण्यमयी और पवित्र है, जहाँ भगवान विष्णु के विविध रूपों के दर्शन से व्यक्ति के जीवन का उद्धार होता है और वह परमगति को प्राप्त करता है।

स्वामी राजेन्द्रदास जी महाराज (मलूक पीठाधीश्वर) ने शालिग्राम भगवान की पूजा और संबंधित शास्त्रों के निर्देशों पर बहुत विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि शास्त्रों के अनुसार स्त्रियों को कभी शालिग्राम की पूजा नहीं करनी चाहिए। यदि कोई स्त्री, चाहे वह विधवा हो या जिसका पति जीवित हो, अज्ञानवश शालिग्राम का स्पर्श कर ले, तो भले ही वह उत्तम चरित्र और सद्गुणों से संपन्न हो, उसे अपने धार्मिक पुण्य का लाभ नहीं मिलेगा और वह शीघ्र ही नरक की ओर अग्रसर हो जाएगी। स्वामी जी ने बताया कि श्रेष्ठ ब्राह्मणों के अनुसार, स्त्रियों के हाथों से शालिग्राम पर गिरे हुए फूल इंद्र के वज्र से भी अधिक शक्तिशाली होते हैं। इसके अलावा, यदि कोई स्त्री भगवान को चंदन अर्पित करती है, तो वह विष के समान होता है, और भगवान को अर्पित किया गया फूल इंद्र के वज्र के समान हो जाता है। इसके साथ ही, स्त्री द्वारा अर्पित किया गया खाद्य पदार्थ भी घातक विष के समान होता है। इस कारण शास्त्रों में यह निर्देश दिया गया है कि स्त्रियों को शालिग्राम भगवान को छूने से बचना चाहिए, क्योंकि यदि कोई स्त्री इसे छूती है, तो वह चौदह इन्द्रों के शासन काल तक नरक में जाती है।


स्वामी जी ने शालिग्राम भगवान की पूजा में शास्त्रों की मर्यादा और विधियों का पालन करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने यह भी बताया कि शालिग्राम भगवान की पूजा में कोई भी गलती नहीं होनी चाहिए, क्योंकि शास्त्रों में शालिग्राम को खरीदना, बेचना या दुकान से लेना निषेध है। यदि कोई व्यक्ति अपने घर में शालिग्राम भगवान को स्थापित करना चाहता है, तो उसे पहले मुक्ति नारायण क्षेत्र की यात्रा करनी चाहिए और वहां से भगवान शालिग्राम का स्वरूप लेकर उसे घर में स्थापित करना चाहिए। स्वामी जी ने स्पष्ट किया कि केवल शास्त्रों के अनुसार पूजा करने से ही व्यक्ति को सच्चा लाभ और भगवान की कृपा प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि शालिग्राम भगवान की पूजा का सही रूप से पालन करने से ही उसका असली फल और आशीर्वाद प्राप्त होता है, और मनमाने तरीके से पूजा करने से कोई आध्यात्मिक लाभ नहीं मिलता।

पद्म पुराण - खण्ड 5, अध्याय 179

पद्मपुराणम्/खण्डः__(उत्तरखण्डः)/अध्यायः_०७५

॥ महादेव उवाच ॥
गंडिकायास्तु माहात्म्यं वक्ष्ये देवि विधानतः । यथा गंगा तथा सा च कथिता नगनंदिनि ॥१॥
शालग्रामशिला यत्र जायते बहुधा तथा । माहात्म्यं चैव तस्याश्च कथितं मुनिसत्तमैः ॥२॥
अंडजा उद्भिजा यत्र स्वेदजाश्च जरायुजाः । यस्या दर्शनमात्रेण पुण्यरूपास्तु पार्वति ॥३॥
उत्तरे सा तु संभूता गंडिका तु महानदी । संस्मृता संस्मृता नूनं पापं हंत्यगनंदिनि ॥४॥
यत्र नारायणो देवो नित्यं तिष्ठति भूतिदः । शंखचक्रधरास्तस्य समीपे निवसंति ये ॥५॥
ते मृत्युं समनुप्राप्य दिव्यरूपाश्चतुर्भुजाः । ऋषयस्तत्र तिष्ठंति देवाश्चैवं विशेषतः ॥६॥
रुद्रा नागास्तथा यक्षा नात्र कार्या विचारणा । तस्याः समीपे ह्येकोऽयं स्थलो वै विष्णुरूपधृक् ॥७॥
स्थलेऽस्मिन्वर्तते मूर्तिर्बहुरूपातिमुक्तिदा । चतुर्विंशतिभूतानां जातयः संति तत्र वै ॥८॥
एका वै मत्स्यरूपा च कृष्णरूपातिमुक्तिदा । अन्या च या बुधैः प्रोक्ता स्थले वै विष्णुसंज्ञके ॥९॥
कल्किनाम्नी तथा पुण्या कपिला या मयोदिता । अन्यास्तु विविधाकारा दृश्यंते बहुधा अपि ॥१०॥
तिष्ठंति मूर्त्तयः सर्वा नानारूपा ह्यनेकशः । सा गंगा महती पुण्या धर्मकामार्थमुक्तिदा ॥११॥
यस्यां भूमौ हृषीकेशो नियमेन समन्वितः । वर्त्ततेऽद्यापि तत्रैव मया सह न संशयः ॥१२॥
भ्रूणहत्या बालहत्या गोहत्या च विशेषतः । यस्याः स्पर्शनमात्रेण मुच्यते सर्वकिल्बिषात् ॥१३॥
ब्राह्मणाः क्षत्रिया वैश्याः शूद्राश्चैवान्यजातयः । सर्वे ते वै विमुच्यंते दर्शनाद्गंडिकांबुनः ॥१४॥
श्रीमहादेवजी कहते हैं-देवि! अब मैं गण्डकी नदी के माहात्म्य का विधिपूर्वक वर्णन करूँगा। पार्वती! गंगा का जैसा माहात्म्य है, वैसा ही गण्डकी नदी का भी बताया गया है।  जहाँ शालग्राम शिला बहु प्रकार से उत्पन्न होती है, वहाँ गण्डकी नदी का माहात्म्य मुनियों ने विशेष रूप से वर्णित किया है। अण्डज, उद्भिज्ज, स्वेदज और जरायुज – ये सभी प्राणी केवल गण्डकी के दर्शन से ही पुण्यात्मा हो जाते हैं, पार्वती! गण्डकी उत्तर में प्रकट हुई है, यह एक महान नदी है। इस नदी का स्मरण करने से सभी पाप समाप्त हो जाते हैं, नंदिनी! जहाँ भगवान नारायण सदा निवास करते हैं, जो भूतों को कल्याण देने वाले हैं, और शंख-चक्र धारण करने वाले भगवान के समीप वहाँ ऋषि और देवता विशेष रूप से निवास करते हैं। यहाँ मृत्यु के बाद लोग दिव्य रूप में, चार भुजाओं वाले भगवान विष्णु को देखते हैं। ऋषिगण और देवगण वहाँ स्थिर रहते हैं। रुद्र, नाग और यक्ष भी यहाँ निवास करते हैं, और वहाँ भगवान विष्णु के रूप का एक विशेष स्थान है। वहां मूर्तियाँ हैं जो मुक्ति देने वाली हैं, और प्रत्येक मूर्ति में विभिन्न रूप हैं। एक मूर्ति मत्स्य रूप की है, दूसरी कच्छप रूप की है, और अन्य रूपों में वाराह, मुसिंह, वामन की मूर्तियाँ भी हैं। वहाँ श्रीराम, परशुराम और श्रीकृष्ण की भी मोक्ष देने वाली मूर्तियाँ हैं। इस स्थान पर बुद्ध, कल्कि और महर्षि कपिल की पुण्यमयी मूर्तियाँ भी हैं। वह स्थान गंगा के समान पवित्र और धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाली है। यहाँ हृषीकेश भगवान का निवास है, और मैं स्वयं वहाँ हमेशा जाता हूँ, यह कोई संदेह की बात नहीं है। जो लोग गण्डकी नदी के जल का स्पर्श करते हैं, वे भ्रूणहत्या, बालहत्या, गोहत्या और अन्य सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और अन्य जातियाँ, सभी गण्डकी के दर्शन से पापमुक्त हो जाते हैं।
इयं वेणी समा पुण्या पापिनां तु विशेषतः । मुच्यते ब्रह्महा यत्र इतरेषां तु का कथा ॥१५॥
सर्वदा सर्वकाले तु अहं गच्छामि पार्वति । तीर्थानां तीर्थराजोऽयं ब्रह्मणा भाषितः किल ॥१६॥
तत्र स्नानं च दानं च मुनिभिः परिकल्पितम् । आषाढे पुण्यकाले तु तत्र गच्छामि सुंदरि ॥१७॥
मासैकविधिना चैव स्नानं तत्र करोम्यहम् । तारकं तत्र विशदं जपामि तु निरंतरम् ॥१८॥
अतोऽहं वैष्णवो जातो विष्णुक्षेत्रे यतोगतः । विष्णुना निर्मितं पूर्वं क्षेत्रं तत्तु महत्तरम् ॥१९॥
वैष्णवानां च गतिदं पावनं परमं स्मृतम् । भवेऽस्मिन्मानुषे जन्म दुर्लभं देवि सर्वदा ॥२०॥
दुर्लभं गण्डिकातीर्थं विष्णुक्षेत्रं तु दुर्लभम् । अतो ह्याषाढमासे तु गंतव्यं द्विजसत्तमैः ॥२१॥
तत्र गत्वा विशेषेण शंखचक्रादिधारणम् । कर्त्तव्यं तु द्विजश्रेष्ठैः पवित्रं परमं स्मृतम् ॥२२॥
शंखतीर्थं तु वामे वै दक्षिणे चक्रचिह्नितम् । द्विजानां मुक्तिदं प्रोक्तं धारितव्यं प्रयत्नतः ॥२३॥
ब्राह्मणैश्च विशेषेण शंखचक्रादिधारणं । धृते सति महादेवि वैष्णवास्ते हि मानवाः ॥२४॥
न गण्डिका समं तीर्थं न व्रतं द्वादशीसमम् । न देवः केशवादन्यो भूयोभूयो वरानने ॥२५॥
गंडिकायास्तु माहात्म्यं ये शृण्वंति नरोत्तमाः । इहलोके सुखं भुक्त्वा विष्णुलोके हि यांति ते ॥२६॥
यह स्थान विशेष रूप से पापियों के लिए पुण्य से भरपूर है, और जहाँ ब्रह्महत्या का भी नाश हो जाता है, वहाँ औरों के लिए क्या कहना है? सदैव, सभी समय में, मैं वहाँ जाता हूँ, पार्वती! वह तीर्थराज है, जैसा कि ब्रह्मा ने कहा था। मुनियों ने वहाँ स्नान और दान की विधि निर्धारित की है। वह क्षेत्र भगवान विष्णु ने पूर्वकाल में बनाया है और वह अत्यन्त पवित्र और महान है। यह वैष्णवों के लिए उत्तम गति देने वाला और परम पावन माना जाता है। इस संसार में मनुष्य का जन्म बहुत दुर्लभ है, और गण्डकी नदी का तीर्थ और वहाँ का विष्णुक्षेत्र विशेष रूप से दुर्लभ है। अतः आषाढ़ मास में श्रेष्ठ द्विजों को वहाँ यात्रा करनी चाहिए। आषाढ़ मास में विशेष रूप से वहाँ जाने का महत्व है। वहाँ स्नान और दान करना और भगवान के नाम का जप करना श्रेष्ठ होता है। मैं वहाँ मासभर जप करता हूँ और पवित्र तारक मंत्र का जाप करता हूँ। इस प्रकार, मैं उस स्थान पर भगवान विष्णु के क्षेत्र में निवास करता हूँ। मैं वैष्णव हूँ, क्योंकि विष्णुक्षेत्र में निवास करने वाले लोग ही वास्तव में वैष्णव होते हैं। वह स्थान विष्णु द्वारा निर्मित और महान है। वह स्थान वैष्णवों को परम गति प्रदान करता है, और यह स्थान विशेष रूप से दुर्लभ है, देवि! गण्डकी तीर्थ और विष्णुक्षेत्र अत्यन्त दुर्लभ हैं, और इसलिए द्विजश्रेष्ठों को आषाढ़ मास में वहाँ जाना चाहिए। वहाँ जाकर शंख और चक्र को धारण करना चाहिए, क्योंकि यह पुण्य का सबसे बड़ा उपाय है। वामे शंख और दक्षिणे चक्र का चिन्ह है। द्विजों को इन चिन्हों को धारण करना चाहिए, यह मार्गदर्शन है। ब्राह्मणों को विशेष रूप से शंख और चक्र धारण करना चाहिए, क्योंकि जब ये चिन्ह धारण किए जाते हैं, तो वे भगवान विष्णु के भक्त बन जाते हैं। गण्डकी के समान कोई तीर्थ नहीं है, द्वादशी के समान कोई व्रत नहीं है, और भगवान विष्णु से भिन्न कोई देवता नहीं है, वरानने! जो व्यक्ति गण्डकी के माहात्म्य को श्रवण करते हैं, वे इस लोक में सुख भोगते हुए अंत में विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं।
इति श्रीपाद्मे महापुराणे पंचपंचाशत्साहस्र्यां संहितायामुत्तरखंडे उमापतिनारदसंवादे गंडिकातीर्थमाहात्म्यंनाम पंचसप्ततितमोऽध्यायः ॥ ७५॥


यह निर्देश उन भक्तों के लिए हैं, जो गोरखपुर होते हुए सोनौली बॉर्डर से नेपाल जाकर पोखरा से मुक्तिनाथ की यात्रा करना चाहते हैं। नेपाल में अधिकांश स्थानों पर मदिरा और मांस का विक्रय होता है। परंतु, जिन भक्तों को लहसुन-प्याज का सेवन नहीं करना है, उनके लिए यह सलाह दी जाती है कि वे किसी भी दुकान से भोजन न खरीदें और न ही पानी पियें। यदि पानी की आवश्यकता हो, तो केवल बोतल का पानी ही खरीदें। आपके पास झोले में दो किलोग्राम चने और सत्तू अवश्य होना चाहिए, ताकि अगर शुद्ध भोजन न मिले, तो कुछ खाया जा सके। नेपाल में कुछ ही स्थानों पर लहसुन-प्याज का भोजन निषेध है। वहाँ पर भक्तों के लिए विशेष धर्मशालाएँ हैं, जहाँ बिना लहसुन-प्याज के भोजन उपलब्ध कराया जाता है। इन धर्मशालाओं में भक्त अपनी यात्रा के दौरान रुक सकते हैं और यदि वे गृहस्थ हैं, तो कुछ पैसों के रूप में सेवा भी प्रदान कर सकते हैं। इस प्रकार, यह यात्रा निर्देश उन सभी भक्तों के लिए सहायक होंगे, जो बिना लहसुन-प्याज के अपने धार्मिक नियमों का पालन करते हुए मुक्तिनाथ की यात्रा करना चाहते हैं। इन सभी धर्मशालाओं का जीपीएस लोकेशन भी दिया जा रहा है, ताकि भक्तों को वहां पहुँचने में कोई कठिनाई न हो।

  1. वाराणसी से गोरखपुर तक यात्रा: सबसे पहले, आपको वाराणसी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड से गोरखपुर तक का टिकट लेना होगा और गोरखपुर पहुँचना होगा।
  2. गोरखपुर में दर्शन और स्नान: गोरखपुर पहुँचने के बाद, यहाँ स्नान और ध्यान करें। फिर भगवान गोरक्षनाथ का दर्शन करें और उनसे नेपाल जाने की आज्ञा प्राप्त करें। गोरखपुर में गीता भवन भी है, जहाँ हनुमान प्रसाद पोदार जी और राधा बाबा की समाधियाँ स्थित हैं। इन स्थानों का दर्शन करना न भूलें।
  3. गोरखपुर से सोनौली बॉर्डर तक यात्रा: गोरखपुर में दर्शन करने के बाद, गोरखपुर रोडवेज या अन्य किसी परिवहन साधन से सोनौली बॉर्डर के लिए टिकट करें और वहाँ पहुँचें।
  4. सोनौली बॉर्डर पर चेकिंग और नेपाल प्रवेश: सोनौली बॉर्डर पहुँचने पर वहाँ थोड़ी चेकिंग होती है, फिर आप नेपाल के प्रदेश में प्रवेश कर जाते हैं। बॉर्डर के पास ही एक नेपाली सिम कार्ड भी खरीद सकते हैं, जो एक हफ्ते के लिए मान्य होता है।
  5. भैरवा बस स्टैंड की ओर यात्रा: बॉर्डर पार करने के बाद, आपको भैरवा बस स्टैंड पहुँचना होगा। नेपाल में परिवहन का मुख्य साधन बस और टैम्पो होते हैं, क्योंकि यहाँ ट्रेन सेवा नहीं है। भैरवा में पहुँचने के बाद, आपको पोखरा के लिए एक बस पकड़नी होगी।
  6. पोखरा तक की यात्रा: भैरवा से पोखरा तक की यात्रा लगभग 12 से 16 घंटे की होती है, इसलिए इस यात्रा के लिए तैयार रहें।
  7. पोखरा में ठहराव और दर्शनीय स्थल: पोखरा पहुँचने के बाद, आप श्रीराम मंदिर (GPS LOCATION) में रुक सकते हैं, जो स्वामी नारायण संस्था द्वारा संचालित होता है। मंदिर का प्रबंधन बहुत ही अच्छे तरीके से किया जाता है। यहाँ रुकने के बाद आप तालबाराही देवी के दर्शन भी कर सकते हैं। पोखरा में ही नेपाली पर्यटक केंद्र है, जहाँ से आप मुक्तिनाथ क्षेत्र (अर्थात् अन्नपूर्णा रेंज) का टिकट प्राप्त कर सकते हैं। MUKTINATH TICKET COUNTER - GPS LOCATION

For the benefit of Kashi residents and devotees : -
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi

काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥

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