Durgabadi (दुर्गाबाड़ी वाराणसी)

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दुर्गाबाड़ी, वाराणसी

स्थापना : १७६७ मुखोपाध्‍याय परिवार के मुखिया द्वारा

बांस के ढांचे में माटी-पुआल से बनी महिषासुर मर्दिनी की प्रतिमा मुखर्जी परिवार के मुखिया ने 1767 में  में स्थापित की थी। तब से प्रतिमा उसी वेदिका पर यथावत है जिसपर प्राण प्रतिष्‍ठा की गई थी। तैलीय रंगो से गढ़ी दुर्गा प्रतिमा के साथ गणेश, लक्ष्‍मी, सरस्‍वती, कार्तिकेय और महिषासुर भी है। चार दिवस पूजा पाठ के बाद जब इनको दशहरे पर विसर्जित करने की तैयारी की गयी तो माता की प्रतिमा उठी ही नहीं। मुखोपाध्‍याय परिवार की नौवीं पीढ़ी के वर्तमान प्रतिनिधि प्रशांत मुखर्जी ने बताया कि विसर्जन का दिन आने पर देवी ने उनके पूर्वजों को काशीवास की इच्‍छा से विसर्जन का निषेध किया था। स्वप्नादेश में माता ने कहा कि मैं इसी स्थान मे रहकर काशी वास करुँगी, मुझे यहां से हटाने का प्रयास मत करो यथाशक्ति तथा भक्ति के आधार पर गुड़-चना में ही संतुष्ट रहने का आदेश दिया इसके बाद किसी ने कभी प्रतिमा विसर्जन के लिए सोचा ही नहीं। नियमित पूजन के साथ नवरात्र में प्रतिमा के शस्‍त्र-वस्‍त्र बदले जाते हैं।

 

क्षरण रोकने के लिए न रासायनिक लेपन और न कोई अन्‍य प्रबंध फिर भी माता की पांच फुट की दिव्य प्रतिमा जैसे पहले थी वैसी ही आज भी है। यहां तक कि मिट्टी भी नहीं झड़ी है। प्रति वर्ष रंग रोगन व नए परिधान के साथ नवरात्रि के पहले दिन से पूजन शुरू हो जाता है।

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पुरानी दुर्गाबाड़ी डी.31/३६ सदनपुरा में स्थित है।
Old Durgabari is situated at D.31/36 Sadanpura.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय


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