Jamdagnishwar
जमदग्निश्वर
- वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः। विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।
- अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
स्कन्दपुराण : काशीखण्ड
जमदग्नि, संवर्त, मातंग, भरत, अन्शुमान, व्यास, कात्यायन, कुत्स, शौनक, सुश्रुत, शुक आये ...
श्री महाभारत » आदि पर्व
महातेजा महावीर्यो बाल एव गुणैर्युतः । ऋचीकस्तस्य पुत्रस्तु जमदग्निस्ततोऽभवत् ।।
वे महान् तेजस्वी और अत्यन्त शक्तिशाली थे। बचपनमें ही अनेक सद्गुण उनकी शोभा बढ़ाने लगे। और्वके पुत्र ऋचीक तथा ऋचीक के पुत्र जमदग्नि हुए।
।। जमदग्नेस्तु चत्वार आसन् पुत्रा महात्मनः ।।
रामस्तेषां जघन्योऽभूदजघन्यैर्गुणैर्युतः । सर्वशस्त्रेषु कुशलः क्षत्रियान्तकरो वशी ।।
महात्मा जमदग्नि के चार पुत्र थे, जिनमें परशुरामजी सबसे छोटे थे; किंतु उनके गुण छोटे नहीं थे। वे श्रेष्ठ सद्गुणों से विभूषित थे, सम्पूर्ण शस्त्रविद्या में कुशल, क्षत्रिय-कुलका संहार करने वाले तथा जितेन्द्रिय थे।
और्वस्यासीत् पुत्रशतं जमदग्निपुरोगमम् । तेषां पुत्रसहस्राणि बभूवुर्भुवि विस्तरः ।।
और्व मुनिके जमदग्नि आदि सौ पुत्र थे। फिर उनके भी सहस्रों पुत्र हुए। इस प्रकार इस पृथ्वीपर भृगुवंशका विस्तार हुआ।
जमदग्नि
जमदग्नि एक परम तेजस्वी ऋषि थे, जो 'भृगुवंशी' ऋचीक के पुत्र थे। इनकी गणना 'सप्तऋषियों' में होती है। इनकी पत्नी राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका थीं। भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र परशुराम थे, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
जमदग्नि भृगुवंशी ऋचीक के पुत्र थे। इनकी पत्नी का नाम रेणुका था, जो राजा प्रसेनजित की पुत्री थीं। जमदग्नि ने अपनी तपस्या एवं साधना द्वारा उच्च स्थान प्राप्त किया था, जिससे सभी उनका आदर सत्कार करते थे। जमदग्नि तपस्वी और तेजस्वी ऋषि थे। उनके और रेणुका के पाँच पुत्र थे- 'रुमणवान', 'सुषेण', 'वसु', 'विश्ववानस' और 'परशुराम'।
ऋषि जमदग्नि की पत्नि रेणुका एक पतिव्रता एवं आज्ञाकारी स्त्री थीं। वह अपने पति के प्रति पूर्ण निष्ठावान थीं, किंतु एक गलती के परिणामस्वरूप दोनों के संबंधों में अलगाव की स्थिति उत्पन्न हो गई, जिस कारण ऋषि ने उन्हें मृत्यु दण्ड दिया। कथा के अनुसार एक बार रेणुका जल लेने के लिए नदी पर गईं, जहाँ पर चित्ररथ नामक एक गंधर्व अप्सराओं के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसे देखकर रेणुका उस पर आसक्त हो गईं। जल लाने में विलंब हो जाने से यज्ञ का समय समाप्त हो गया। तब मुनि जमदग्नि ने अपनी योगशक्ति द्वारा पत्नी के मर्यादा विरोधी आचरण को देखकर अपने पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दी; परंतु पिता की इस आज्ञा को तीन पुत्रों ने मानने से इंकार कर दिया, केवल परशुराम ही इस कार्य के लिए तैयार हुए। तब जमदग्नि ने अपने इन तीन पुत्रों को पाषाण हो जाने का शाप देकर उन्हें संज्ञाहीन कर दिया। पिता की आज्ञास्वरूप परशुराम माँ का वध कर देते हैं। परशुराम की पितृभक्ति देखकर पिता जमदग्नि उन्हें वर माँगने को कहते हैं और परशुराम पिता से वरदान माँगते हैं कि- "वह उनकी माता को क्षमा कर उन्हें जीवित कर दें तथा सभी भाईयों को भी चेतना युक्त कर दें।" इस प्रकार उनके वरदानस्वरूप उनकी माता एवं भाई दोबारा जीवन प्राप्त करते हैं।
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For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी