Khandoba
खंडोबा (शिव) और म्हालसा (पार्वती) मंदिर, काशी
अन्य नाम : मार्तण्ड
भैरव , खंडेराव , मल्हारी , खड्गधर , शूलपाणी , खंडेराया
आदि।
अस्त्र/शस्त्र : त्रिशूल,
खड्ग जीवनसाथी : म्हालसा (पार्वती) देवी एवं देवी बाणाई
बहन : मां लक्ष्मी देवी
सवारी : अश्व
त्यौहार : चम्पा
षष्ठी निवासस्थान : जेजुरी महाराष्ट्र
काशी में भगवान शिव (खंडोबा) और माता
पार्वती (म्हालसा) स्वरूप में : इस मंदिर में
विराजमान देवता को भगवान खंडोबा कहा जाता है। उन्हें मार्तण्ड भैरव और मल्हारी
जैसे अन्य नामों से भी जाना जाता है, जो भगवान शिव का ही
दूसरा रूप है। भगवान खंडोबा की मूर्ति घोड़े की सवारी करते एक योद्धा के रूप में
है। उनके हाथ में राक्षसों को मारने के लिए कि एक बड़ी सी तलवार (खड्ग) है। इनके चार आयुधों में खड्ग (खाँडे) का विशेष महत्व है और इसी 'खाँडे' के कारण इनका खंडोबा नाम पड़ा है। इनकी पत्नी म्हालसा
(पार्वती) हैं। गंगा जी के तट पर होने के कारण वर्षा ऋतु में मंदिर जलमग्न रहता है।
काशी में भगवान खण्डोबा एवं माता म्हालसा का वास : स्कंद पुराण काशी खंड के अध्याय ६१ में भगवान श्री हरि विष्णु काशी में स्थित वैष्णव तीर्थों का वर्णन करते हैं। जिनमें भगवान के समस्त अवतारों का वर्णन है। वह जितने भी अवतार लेंगे वह काशी में भी देव इच्छा से प्रतिष्ठित होंगे। उसी प्रकार भगवान हर (शिव) भी जब-जब अवतार लेंगे उनके स्वरुप भी हरिहर इच्छा से काशी में प्रतिष्ठित होंगे। जिसका भान भगवान हरिहर स्वयं समय-समय पर काशी में कराते रहते हैं। काशी में भगवान खण्डोबा एवं माता म्हालसा का एक बार दर्शन मूल जेजुरी महाराष्ट्र में स्थित भगवान खण्डोबा एवं माता म्हालसा के पांच बार दर्शन के समान हो जाता है। काशी की महत्ता के अनुसार...
म्हालसादेवी की पूजा दो अलग-अलग रूपों में की जाती
है। एक रूप में एक स्वतंत्र देवी के रूप में, उन्हें मोहिनी (भगवान
विष्णु का महिला अवतार) का एक रूप माना जाता है और म्हालसा नारायणी कहा जाता है।
दूसरे रूप में म्हालसादेवी को खंडोबा की पत्नी के रूप में पूजा जाता है। इस परंपरा
में वह भगवान शिव की पत्नी पार्वती के साथ-साथ मोहिनी से भी जुड़ी हैं।
म्हालसादेवी को अहीर सुवर्णकर (सुनार), लेवा
पाटिल, गौड़ सारस्वत ब्राह्मण, करहड़े
ब्राह्मण, दैवज्ञ ब्राह्मण, भंडारी,
शिम्पी, वैष्णव, माली,
महाजन और कई अन्य समुदायों, जातियों और कुलों
द्वारा म्हासादेवी की कुलस्वामिनी के रूप में पूजा जाता है।
महाराष्ट्र में म्हालसादेवी के कई मंदिर हैं।
महाराष्ट्र के बाहर गोवा, कर्नाटक, केरल, कश्मीर जैसी कई जगहों पर म्हालसादेवी के मंदिर हैं।
मूल मंदिर (जेजुरी महाराष्ट्र) में श्री मार्तंड भैरवनाथ महाराज (श्री शिव शंकर जी) और श्री म्हालसा देवी (श्री पार्वती माता जी) स्वयं-भू मातृ लिंग (श्री म्हालसा देवी) , पितृ लिंग (श्री मार्तंड भैरवनाथ जी) बनकर जोडी लिंग के स्वरूप में विराजमान हैं।
कथानुसार : - नेवासे, महाराष्ट्र में तिम्मा शेठ और मायानंदा नामक पती-पत्नी
श्री शिव शंकर भगवान जी कि अनन्य भक्ती करते थे, ( वे
लिंगायत समाज के थे ) तिम्मा शेठ नेवासे के बहुत बडे व्यापारी थे, मायानंदा गृहस्थ महिला थी। वे नित्य निरंतर शिव नाम स्मरण करते थे। उनकी
एक कन्या थी, उनका नाम म्हालसा देवी था। उस घर में श्री
पार्वती माता म्हालसा देवी के नाम से जन्म लिया था। कारण - तिम्मा शेठ और मायानंदा
शिव भक्त थे। उनके पिछले जन्म में भी शिव जी के ही भक्त थे। वे मोह मुक्त थे,
पती-पत्नी ने एक दिन श्री शिव और गौरी (पार्वती) जी का घोर तप किया,
ऊस तप से प्रसन्न होकर माता आदिशक्ती स्वरूपीनी गौरी (पार्वती) जी ने
प्रकट होकर पूछा कि आप दोनों को क्या चाहिये। उन दम्पति से संतान प्राप्ति का वर
मांगा। तब माता जी ने कहा कि द्वापर युग में हम आपकी पुत्री के रूप में जन्म लेंगे।
इस बात ते पती-पत्नी अति प्रसन्न थे। माता पार्वती ने द्वापर युग में श्री म्हालसा
(म्हालसा) देवी के रूप में जन्म लिया।
श्री म्हालसा देवी जी का सौन्दर्य, तेज, ऊर्जा असीमित था। कारण अमृत मंथन के समय जब देव - दानव में अमृत प्राप्ती के लिये एक दुसरे से लड रहे थे। तब श्री हरी नारायण जी मोहिनी स्वरूप धारण किया था, ऊस स्वरूप को देख कर देव-दानव मोहित हो गये। बड़ी चालाकी से अमृत मोहिनी उन दानवों को न देते सिर्फ देवों को हि दे दिया। तब श्री शिव शंकर जी ऊस मोहिनी स्वरूप को देख कर मोहित हो गये, श्री पार्वती देवी जी उन को वचन दिया था की द्वापर युग में श्री मार्तंड भैरवनाथ अवतार में इसी मोहिनी स्वरूप में श्री म्हालसा देवी बन कर जन्म लूंगी। उसी तरह माता जी ने जन्म भी लिया।
!! जय मल्हार !!
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For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी