Srishti Ganesh
सृष्टिगणेश
गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है। चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।
स्कन्दपुराण : काशीखण्ड
जय सृष्टिकृतां वंद्य जय स्थितिकृतानत । जय संहृतिकृत्स्तुत्य जयसत्कर्मसिद्धिद ॥५७.२१॥
विजयी हो, हे सृष्टि करने वालों की पूजा के योग्य (जैसे ब्रह्मा और अन्य), हे पालने वाले (विष्णु) की पूजा के योग्य, हे विनाश करने वाले (रुद्र) की पूजा के योग्य। हे! अच्छे कर्मों के निष्पादन में सफलता प्रदान करने वाले, विजयी हो।
याम्यांसृष्टिगणेशश्च सृष्टिसंहारसूचकः । नैर्ऋत्यां यक्षविघ्नेशः सर्वविघ्नहरः परः ॥५७.१०९॥
दक्षिण दिशा में सृष्टिगणेश सृजन और संहार का सूचक है। दक्षिण-पश्चिम में यक्ष विघ्नेश सभी बाधाओं का नाश करने वाले हैं।
गणेशजी का प्रिय भोग : मोदक लड्डू, प्रिय पुष्प लाल रंग के फूल, प्रिय वस्तु दुर्वा (दूब), प्रिय वृक्ष शमी-पत्र, केल, केला आदि हैं। केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा अर्पित कर कपूर जलाकर उनकी पूजा और आरती की जाती है। उनको मोदक का लड्डू अर्पित किया जाता है। उन्हें रक्तवर्ण के पुष्प विशेष प्रिय हैं।
गणेशजी का स्वरूप : जल तत्व के अधिपति, बुधवार और चतुर्थी के स्वामी और केतु एवं बुध के ग्रहाधिपति गणेश जी के प्रभु अस्त्र पाश और अंकुश है। वे मूषक वाहन पर सवार रहते हैं। वे एकदन्त और चतुर्बाहु हैं। अपने चारों हाथों में वे क्रमश: पाश, अंकुश, मोदक पात्र तथा वरमुद्रा धारण करते हैं। वे रक्तवर्ण, लम्बोदर, शूर्पकर्ण तथा पीतवस्त्रधारी हैं। वे रक्त चंदन धारण करते हैं।
चारों युगों में भगवान गणेश का रूप एवं स्वरूप : भगवान गणेशजी का सतयुग में वाहन सिंह है और उनकी भुजाएं 10 हैं तथा नाम विनायक। श्री गणेशजी का त्रेतायुग में वाहन मयूर है इसीलिए उनको मयूरेश्वर कहा गया है। उनकी भुजाएं 6 हैं और रंग श्वेत। द्वापरयुग में उनका वाहन मूषक है और उनकी भुजाएं 4 हैं। इस युग में वे गजानन नाम से प्रसिद्ध हैं और उनका वर्ण लाल है। कलियुग में उनका वाहन घोड़ा है और वर्ण धूम्रवर्ण है। इनकी 2 भुजाएं हैं और इस युग में उनका नाम धूम्रकेतु है।
सिन्दूर - सिंधु नामक दैत्य का वध श्री गणेश जी ने किया था उसके शरीर के रक्त को उन्होंने अपने शरीर पर लेप की तरह लगाया तभी से गणेश को सिन्दूर चढ़ाया जाता है।
दूर्वा अथवा दूब - अनलासुर नामक दानव को निगलने के बाद श्री गणेश के पेट में बहुत जलन होने लगी। सभी उपचारों के बाद भी वे ठीक नहीं हुए जिसके बाद कश्यप मुनि ने उन्हें २१ गाठें बनाकर दूर्वा खाने को दी उसके बाद से ही गणेश जी ने दूर्वा को अपनी प्रिय वस्तु बना लिया।
सृष्टि गणपति - गणेशजी का यह रूप प्रकृति की तमाम शक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है। उनका यह रूप ब्रह्मा के समान ही है। यहां वे एक बड़े मूषक पर सवार दिखाई देते हैं। तमिलनाडु के कुंभकोणम में अरुलमिगु स्वामीनाथन मंदिर में उनका यह रूप विराजित है।
प्रेरणा - यह रूप सही-गलत और अच्छे-बुरे में फर्क करने की प्रेरणा समझ देता है। इस रूप में गणेश निर्माण की प्रेरणा देते हैं।
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For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी