Trishuli Linga - त्रिशूली लिङ्ग (जालेश्वर नामक पवित्र स्थान से भगवान त्रिशूली लिङ्ग रूपेण काशी आकर कूटदन्त विनायक के सम्मुख विराजित हैं - काशीस्थ ६८ आयतन लिङ्ग अंतर्गत)

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Trishuli Linga

त्रिशूली लिंग (त्रिशूलेश्वर)

स्कंदपुराण, शिवपुराण, लिंगपुराण एवं अन्य पुराणों में भगवान शिव के ६८ दिव्य लिंग एवं अतिपुण्य पवित्र क्षेत्र वर्णित है। यह अतिपुण्य पवित्र क्षेत्र भारतवर्ष के चारो ओर फैले हैं। जिनमे से कुछ सुलभ, कुछ दुर्लभ, कुछ गुप्त एवं कुछ अत्यंत गुह्य है। इन सब का सम्पूर्ण दर्शन अत्यंत दुष्कर है। परम विद्वान् एवं नित्य तीर्थाटन करने वाले भक्तों को भी ये ६८ आयतन दर्शन दुर्लभ हैं। परन्तु धन्य है काशी जहाँ इन ६८ आयतन लिंगों ने स्वयं को वाराणसी में प्रकट कर काशी वासियों के लिये सर्वथा सुलभ कर दिया है। कूटदन्त विनायक के सम्मुख जागेश्वर (जालेश्वर) पुण्य पवित्र क्षेत्र से भगवान त्रिशूली (त्रिशूलेश्वर) महादेव स्वयं अपने मूल स्थान से आकर वाराणसी में प्रकट हैं।

स्कन्दपुराणम्/खण्डः ६ (नागरखण्डः)/अध्यायः १०९
यमलिंगं च दुष्कर्णे कपाली करवीरके ॥ जागेश्वरे त्रिशूली च श्रीशैले त्रिपुरांतकम् ॥ १६ ॥
दुष्कर्ण में यमलिंग; करवीर में कपाली; जागेश्वर में त्रिशूली; और श्रीशैल में त्रिपुरान्तक प्रमुख लिंग हैं।

त्रिशूली लिंग के पौराणिक नाम का लोप (काशी के ६८ आयतन लिंग) : स्कंदपुराण काशीखंड अध्याय ६९ में वर्णित है कि कूटदन्त विनायक के सम्मुख जागेश्वर (जालेश्वर) पुण्य पवित्र क्षेत्र से भगवान त्रिशूली (त्रिशूलेश्वर) महादेव स्वयं अपने मूल स्थान से आकर स्थित है। पौराणिक नाम का लोप होने के कारण तथा स्कन्दपुराण काशीखण्ड के गहन अध्यन की उदासीनता ने नवीन मंदिर सेवकों द्वारा नामकरण (सिद्धेश्वर) कर दिया गया तो भगवान सिद्धेश्वर महादेव के नाम से जाने जाने लगे। स्कंदपुराण काशीखंड का अध्ययन करने से यह पता चलता है कि कूटदन्त विनायक के सम्मुख त्रिशूली लिंग की स्थिति है। अतः यह भगवान त्रिशूली (त्रिशूलेश्वर) महादेव ही है। जिन्हें पौराणिक नाम का लोप हो जाने के कारण मंदिर सेवकों द्वारा तथा क्षेत्रवासियों ने (सिद्धेश्वर) रख दिया। ऊपर दिए गए जीपीएस निरूपण को देखें।

विशेष ध्यान देने योग्य बात : शूलेश्वर तथा त्रिशूली (त्रिशूलेश्वर) भिन्न-भिन्न लिंग है शूलेश्वर यहाँ देखें

स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०६९
॥ स्कंद उवाच ॥
शृण्वगस्त्य तपोराशे काश्यां लिंगानि यानि वै ॥ सेवितानि नृणां मुक्त्यै भवेयुर्भावितात्मनाम् ॥१॥
कृत्तिप्रावरणं यत्र कृतं देवेन लीलया ॥ रुद्रावास इति ख्यातं तत्स्थानं सर्वसिद्धिदम् ॥२॥
स्थिते तत्रोमया सार्धं स्वेच्छया कृत्तिवाससि ॥ आगत्य नंदी विज्ञप्तिं चक्रे प्रणतिपूर्वकम् ॥३॥
देवदेवेश विश्वेश प्रासादाः सुमनोहराः ॥ सर्वरत्नमया रम्याः साष्टाषष्टिरभूदिह ॥४॥
भूर्भुवःस्वस्तले यानि शुभान्यायतनानि हि ॥ मुक्तिदान्यपि तानीह मयानीतानि सर्वतः ॥५॥
यतो यच्च समानीतं यत्र यच्च कृतास्पदम् ॥ कथयिष्याम्यहं नाथ क्षणं तदवधार्यताम् ॥६॥
स्कन्ददेव कहते हैं- हे अगस्त्य! तपोराशि! काशी में जो लिङ्ग सेवा किये जाने पर पवित्रात्मा मनुष्यों के लिये मुक्तिप्रद होते हैं, मैं उनका वर्णन करता हूं। सुनिये! पूर्व में महेश्वर ने जहां पर गजासुर का चर्म पहना था, वह सर्वसिद्धिप्रद स्थान रुद्रावास कहलाता है। यहां रुद्रावास में भगवान्‌ कृत्तिवास स्वेच्छा से उमा के साथ रहने लगे। तभी किसी समय नंदी ने आकर प्रणाम करके उनसे कहा- हे देवेश! हे विश्वेश। यहां इस समय सर्वरत्नमय सुरम्य, सुमहान्‌ ६८ प्रासाद विराजित हैं तथा भूलोक, भुवर्लोक तथा स्वर्लोकस्थ मुक्तिदायक शुभ शिवलिङ्गों को मैं यहां लाया हूं। हे नाथ! मैं जिस स्थान से जिस लिङ्ग को लाया हूं, उसे एकाग्रता पूर्वक सुनिये-
जालेश्वरात्त्रिशूली च स्वयमीशः समागतः । कूटदंताद्गणपतेः पुरस्तात्सर्वसिद्धिदः ७७
जालेश्वर नामक पवित्र स्थान से भगवान त्रिशूली स्वयं काशी आये हैं और कूटदंत विनायक के सामने स्वयं को स्थापित किया है। वह समस्त सिद्धियाँ प्रदान करते हैं।

स्कन्दपुराणम् (अवन्तीखण्डः रेवा खण्ड) - अध्यायः ४८
॥ अन्धक उवाच ॥
यदि तुष्टोऽसि देवेश यदि देयो वरो मम । तदात्मसदृशोऽहं ते कर्तव्यो नापरो वरः ॥
भस्मी जटी त्रिनेत्री च त्रिशूली च चतुर्भुजः । व्याघ्रचर्मोत्तरीयश्च नागयज्ञोपवीतकः ॥
॥ एतदिच्छाम्यहं सर्वं यदि तुष्टो महेश्वर ॥

अन्धक ने कहा: हे देवाधिदेव महादेव! यदि आप प्रसन्न हों तो मुझे वर दें जो मुझे आपके ही समकक्ष बना दें, कोई अन्य वरदान नहीं। मैं भस्मी (चिता भस्म से सना हुआ), जटी (जटाओं वाला), त्रिनेत्री (तीन नेत्रों वाला), त्रिशूली (त्रिशूल धारण करने वाला), चतुर्भुज (चार भुजाओं वाला), ऊपरी वस्त्र के रूप में बाघ की खाल (व्याघ्र चर्माम्बर धारण करने वाला), यगोपवीत के लिए सर्प धारण करने वाला हो जाऊं। हे महेश्वर, यदि आप प्रसन्न हैं तो मैं इनकी इच्छा करूँगा।

मंदिर परिसर


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EXACT GPS LOCATION : 25.296828281806334, 83.00318397988005

त्रिशूली (त्रिशूलेश्वर) महादेव भेलूपुर स्थित क्रीं कुंड (बाबा कीनाराम) के उत्तरी भाग में स्थित है।
Trishuli Mahadev is situated in the northern part of Krim Kund (Baba Keenaram) located in Bhelupur.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥


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