Aishwaryeshwar (ऐश्वर्येश्वर - काशी में पंचवक्त्र शिव का वामदेव मुख)

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Aishwaryeshwar

ऐश्वर्येश्वर - काशी में पंचवक्त्र शिव का वामदेव मुख

काशी में देव विग्रहों एवं तीर्थों को नष्ट कर विकास : भगवान विश्वनाथ के उत्तर मुख तथा ऐश्वर्य मंडप के अधिष्ठातृ देवता भगवान ऐश्वर्येश्वर दुर्मुख विनायक के सम्मुख विराजते थे। यह लिंग पौराणिक काल से ही अपने मूल स्थान पर था। श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के निर्माण में इस पौराणिक मंदिर को परिसर के भीतर ही जीर्णोद्धार करके जन सामान्य के लिए खोलने का प्रस्ताव था परंतु विकास की आंधी में धूर्त न्यासिओं एवं धूर्त सत्ता चाटुकार अधिकारियों ने इस मंदिर को भी नहीं छोड़ा, भगवान विश्वनाथ के उत्तर मुख ऐश्वर्येश्वर को भी उखाड़ दिया। दुर्मुख विनायक का स्थान परिवर्तित कर दिया गया तथा भगवान विश्वनाथ के उत्तर मुख ऐश्वर्येश्वर महादेव का अभी तक कोई अता-पता वर्त्तमान (11 नवम्बर 2023, शनिवार) तक नहीं चला है। वर्तमान तथाकथित ज्ञानवापी मॉडल में ऐश्वर्य मंडप दिखाने वाले तथाकथित विद्वानों से भी प्रश्न है कि - जब ऐश्वर्येश्वर लिंग ही नहीं तो ऐश्वर्य मंडप की परिकल्पना कैसे की जा सकती है? जबकि पुराणों में स्थान की प्रधानता को कहा गया है।

पंच यानी पांच और आनन (वक्त्र) यानी मुख। इसका अर्थ है पांच मुख वाले भगवान शिव। भगवान शिव के पांच मुख में अघोर, सद्योजात, तत्पुरुष, वामदेव और ईशान हैं। इसलिए उन्हें पंचानन या पंचवक्त्र कहा जाता है। शिवजी के इन सभी मुख में तीन नेत्र भी हैं। स्कंदपुराण काशी खंड के अनुसार भगवान सदाशिव के पंचमुखों का प्रतिनिधित्व करने वाले पांच प्रमुख लिंग काशी में धर्मेश्वर के सापेक्ष में स्थित है। काशी में ऐश्वर्येश्वर लिंग भगवान के उत्तर (वामदेव) मुख का प्रतिनिधित्व करते हैं

पंचभूतों (पंचतत्वों) के अधिपति होने के कारण ये 'भूतनाथ' कहलाते है। शिव-जगत में पांच का और भी महत्व है। रुद्राक्ष सामान्यत: पांच मुख वाला ही होता है। शिव- परिवार में भी पांच सदस्य है- शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय और नंदी। नंदी को हमारे आचार्यचरणों ने साक्षात् धर्म के रूप में जाना है।  शिवजी की उपासना पंचाक्षर मंत्र- 'नम: शिवाय' द्वारा की जाती है। शिव काल (समय) के प्रवर्तक और नियंत्रक होने के कारण 'महाकाल' भी कहलाते है। काल की गणना 'पंचांग' के द्वारा होती है। काल के पांच अंग- तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण शिव के ही अवयव है।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

ज्ञानेश्वरं तथैशान्यां ज्ञानदं सर्वदेहिनाम् । ऐश्वर्येशमुदीच्यां च लिंगाद्धर्मेश्वराच्छुभात् ।।
धर्मेश के उत्तर-पूर्व में ज्ञानेश्वर लिंग सभी सन्निहित प्राणियों पर ज्ञान का प्रदाता है। भव्य धर्मेश्वर लिंग के उत्तर में ऐश्वर्येश्वर हैं। इसके दर्शन करने से मनुष्य मानसिक रूप से वांछित ऐश्वर्य (जैसा) प्राप्त करेगा। - [स्कंदपुराण काशीखंड (अध्याय : ८१)]

पंचवक्त्र शिव का वामदेव (उत्तर) मुख - ऐश्वर्येश्वर

  • शिवपुराण में भगवान शिव कहते हैं- सृष्टि, पालन, संहार, तिरोभाव और अनुग्रह-मेरे ये पांच कृत्य (कार्य) मेरे पांचों मुखों द्वारा धारित हैं।
  • भगवान शिव के पांच मुख-सद्योजात, वामदेव, तत्पुरुष, अघोर और ईशान हुए और प्रत्येक मुख में तीन-तीन नेत्र बन गए। तभी से वे 'पंचानन' या 'पंचवक्त्र' कहलाने लगे। सृष्टि, स्‍थिति, लय, अनुग्रह एवं निग्रह- इन 5 कार्यों की निर्मात्री 5 शक्तियों के संकेत शिव के 5 मुख हैं। पूर्व मुख सृष्टि, दक्षिण मुख स्थिति, पश्चिम मुख प्रलय, उत्तर मुख अनुग्रह (कृपा) एवं ऊर्ध्व मुख निग्रह (ज्ञान) का सूचक है।
  • भगवान शंकर के पांच मुखों में ऊर्ध्व मुख ईशान दुग्ध जैसे रंग का, पूर्व मुख तत्पुरुष पीत वर्ण का, दक्षिण मुख अघोर नील वर्ण का, पश्चिम मुख सद्योजात श्वेत वर्ण का और उत्तर मुख वामदेव कृष्ण वर्ण का है। 
  • शिव के पांच मुख चारों दिशाओं में और पांचवा मध्य में है। भगवान शिव के पश्चिम दिशा का मुख सद्योजात बालक के समान स्वच्छ, शुद्ध व निर्विकार हैं। उत्तर दिशा का मुख वामदेव अर्थात् विकारों का नाश करने वाला। दक्षिण मुख अघोर अर्थात निन्दित कर्म करने वाला। निन्दित कर्म करने वाला भी शिव की कृपा से निन्दित कर्म को शुद्ध बना लेता हैं। शिव के पूर्व मुख का नाम तत्पुरुष अर्थात अपने आत्मा में स्थित रहना। ऊर्ध्व मुख का नाम ईशान अर्थात जगत का स्वामी।

ॐ सद्यो जातं प्रपद्यामि सद्यो जाताय वै नमो नमः। भवे भवेनाति भवेभवस्व मां भवोद्भवाय नमः ॥ १॥

वामदेवाय नमोज्येष्ठाय नमः श्रेष्ठाय नमो रुद्राय नमः। कालाय नमः कलविकरणाय नमो बलविकरणाय नमः ॥ २॥

बलाय नमो बलप्रमथनाय नमः सर्वभूतदमनाय नमो मनोन्मनाय नमः ॥ ३॥

अघोरेभ्योऽथ घोरेभ्यो घोरघोरतरेभ्यः। सर्वेभ्यः शर्वसर्वेभ्यो नमस्ते अस्तु रुद्ररूपेभ्यः ॥ ४॥

तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि । तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् ॥ ५॥

ईशानः सर्वविद्यानामीश्वरः सर्वभूतानाम्। ब्रह्माधिपतिर्ब्रह्मणोऽधिपतिर्ब्रह्मा शिवो मे अस्तु सदाशिवोम् ॥ ६॥

बुद्धिमान पुरुष के ज्ञान उत्पन्न करनेवाले महादेव के पंचमुखों के मध्य में पश्चिम मुख के प्रतिपादक मन्त्र का अर्थ कहते हैं- मैं तो सद्योजात नामक पश्चिम मुख की शरण को प्राप्त होता हूँ, उस सद्योजात मुख को प्रणाम है। पृथ्वी में जन्म लेने के लिए आप मुझको प्रेरणा मत कीजिये । बल्कि जन्म के लंघनरूपी तत्त्वज्ञान की प्रेरणा कीजिए । संसार से उद्धार करनेवाले सद्योजात के निमित्त प्रणाम है ॥ १॥ अब उत्तर मुख प्रतिपादक मन्त्रार्थ कहते हैं - उत्तर मुख वामदेव, ज्येष्ठ, श्रेष्ठ, रुद्ररूप के निमित्त नमस्कार है । काल, कलविकरण और बलविकरण के निमित्त नमस्कार है ॥ २॥ बल, बलप्रमथन, सर्वभूतदमन, मनोन्मन के निमित्त नमस्कार है, जो महादेव सब के स्वामी हैं, उन के निमित्त नमस्कार है ॥ ३॥ अब दक्षिण वक्त्र के प्रतिपादक मन्त्र का अर्थ कहते हैं - अघोर नामक दक्षिण वक्त्ररूप जो देव हैं, उनके विग्रह अघोर हैं । सात्त्विक होने से पहला विग्रह शान्त है, दूसरा विग्रह घोर अर्थात् राजस होने से उग्र है, तीसरा विग्रह तामस होने से घोरतर है, हे शर्व !  हे परमेश्वर!! आपके यह तीन प्रकार के विग्रह और सब रुद्ररूपों को सब देश काल में नमस्कार है ॥ ४॥ उत्तर मुखवाला तत्पुरुष नामक देव है, उस तत्पुरुष नाम देव को गुरु तथा शास्त्र मुख से जानते हैं और जानकर उन महादेव का ध्यान करते हैं, वह रुद्रदेव हमको ज्ञान-ध्यान के अर्थ में प्रेरणा करें ॥ ५॥ ईशान नामक जो ऊर्ध्वमुख देव हैं, वे वेदशास्त्रादि चौंसठ कला और विद्याओं के नियामक हैं तथा सब प्राणियों के ईश्वर हैं । वेद के पालक हिरण्यगर्भ के अधिपति ब्रह्म परमात्मा हमारे ऊपर अनुग्रह करने के निमित्त शान्त और सदा शिवरूप हों ॥ ६॥


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इस मंदिर का जीपीएस स्थान यहां क्लिक करें (पौराणिक स्थान का निकट क्षेत्र)


ऐश्वर्येश्वर महादेव, सरस्वती फाटक (स्टेट बैंक निकट), के.34/60 में दुर्मुख विनायक के सम्मुख स्थित थे।
Aishwaryeshwar Mahadev was located at Saraswati Phatak, Near State Bank, K.34/60, facing Durmukh Vinayak.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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