Tarkeshwar
ज्ञानवापी पूर्वी तट रक्षक एवं ४२ मोक्षलिङ्ग अंतर्गत देवता तारकेश्वर
तारकेश्वर लिङ्ग के विषय में भ्रांतियां : कुछ लोग तारकेश्वर का स्थान मणिकर्णिका बताते हैं। जब हम स्कंदपुराण काशीखंड का अध्ययन करते हैं तब यह पता चलता है कि ज्ञानवापी तट पर यह देवता स्थित हैं। ज्ञानवापी तट का विस्तार सिमित है ना की मणिकर्णिका तक है। शुभोदक वापी अर्थात ज्ञानवापी के पूर्व की ओर तारकेश्वर, दक्षिण की ओर कालेश्वर तथा उत्तर की ओर नन्दीश्वर लिङ्ग विरजित है। नीचे दिए गए श्लोकों से यथार्थ स्पष्ट हो जाता है...
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०६९
आकाशात्तारकाल्लिगं ज्योतीरूपमिहागतम्॥ ज्ञानवाप्याः पुरोभागे तल्लिंगं तारकेश्वरम् ॥ १५३॥
तारकं ज्ञानमाप्येत तल्लिंगस्य समर्चनात् ॥ ज्ञानवाप्यां नरः स्नात्वा तारकेशं विलोक्य च ॥ १५४ ॥
कृतसंध्यादि नियमः परितर्प्य पितामहान्॥ धृतमौनव्रतो धीमान्यावल्लिंग विलोकनम् ॥ १५५ ॥
मुच्यते सर्वपापेभ्यः पुण्यं प्राप्नोति शाश्वतम् ॥ प्रांते च तारकं ज्ञानं यस्माज्ज्ञानाद्विमुच्यते ॥ १५६ ॥
आकाश से तारक नामक ज्योतिर्मय लिङ्ग ने आकर यहां ज्ञानवापी के समक्ष अवस्थान किया है। उक्त तारकेश्वर लिङ्ग की अर्चना से तारक ज्ञान की प्राप्ति होती है। मानव ज्ञानवापी में स्नान करके सन्ध्या-वन्दनादि कार्य तथा पितृतर्पण सम्पन्न करके मौनब्रत धारण करे। तदनन्तर उक्त तारकेश्वर का दर्शन करने से वह मुक्त हेकर परमपुण्य संचित करता है। अन्तकाल में जिसके प्रभाव से वह संसार से मुक्त हो जाये ऐसे तारक ज्ञान की प्राप्ति करता है।
स्कन्दपुराणम्/खण्डः_४_(काशीखण्डः)/अध्यायः_०९७
देवस्य दक्षिणे भागे तत्र वापी शुभोदका ॥ तदंबुप्राशनं नृणामपुनर्भवहेतवे ॥२२० ॥
तज्जलात्पश्चिमे भागे दंडपाणिः सदावति ॥ तत्प्राच्यवाच्युत्तरस्यां तारः कालः शिलादजः॥२२१॥
जो व्यक्ति अविमुक्तेश्वर के दक्षिण में अवस्थित शुभोदक वापी अर्थात ज्ञानवापी का जलपान करता है, उसे पुनः जन्म लेकर संसार यातना भोग नहीं करना पड़ता। उसके पश्चिम भाग में दण्डपाणिदेव काशीरक्षक होकर अवस्थित रहते हैं। उनके पूर्व की ओर तारकेश्वर, दक्षिण की ओर कालेश्वर तथा उत्तर की ओर नन्दीश्वर लिङ्ग विराजित है।
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For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी
॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीकृष्णार्पणमस्तु ॥