Shri Kashi Khand

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Gabhastishwar - गभस्तीश्वर - काशी में गंगा के आगमन से पूर्व भगवान्‌ सूर्य द्वारा पञ्चनद तीर्थ (काशीस्थ पंचगंगा) में गभस्तीश्वर नामक शिवलिङ्ग तथा मंगलागौरी नामक सर्वाभीष्ठप्रदा सर्वमंगलप्रदा दुर्गामूर्त्ति प्रतिष्ठित कर देवमान से एक लाख (दिव्य वर्ष) तक उग्रतप करना तदन्तर तपस्याकाल में अत्यधिक श्रम होने के कारण उनकी किरणों से प्रबल स्वेद निकल वहीं पुण्य नदी रूपेण परिणत हो किरणा नाम से सुविख्यात होना। विश्व स्थित समस्त प्राणीगण का यह आक्षेप कि - वेदों ने सूर्य को जगदात्मा कहा है, वे आत्मा ही यदि देह को तापित करें, तब और कौन उसकी रक्षा कर सकेगा? यह सुनकर विश्वरूप भगवान विश्वनाथ का सूर्य को वर देने आना.....

Vrisheshwar (वृषेश्वर - भगवान शिव के वृषभ या वृष अर्थात नंदी द्वारा स्थापित वृषेश्वर महालिङ्ग ६८ आयतन अंतर्गत तत्पश्चात कलिकाल में तीर्थ के नाम पर काशीस्थ क्षेत्र का नाम वृषेश्वरगंज प्रचलित होना)

Gandharveshwar - काशी में गंधर्वों द्वारा स्थापित गंधर्वेश्वर लिङ्ग और गन्धर्व कुंड तत्पश्चात पौराणिक नाम का लोप एवं गन्धर्व तीर्थ पर कलिकाल में स्कन्दमाता की मूर्ति स्थापना

Mahabaleshwar (काशी का गोकर्णतीर्थ एवं इसका विस्तार तथा तीर्थ देवता महाबलेश्वर ६८ आयतन अंतर्गत एवं गोकर्णेश्वर शिव कर्ण स्वरुप)