Vishalakshi Gauri ( विशालाक्षी गौरी )

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Vishalakshi Gauri
विशालाक्षी गौरी

पांचवें दिन विशालाक्षी गौरी का दर्शन-पूजन होता है। देवी के इस स्वरूप का विग्रह मीरघाट क्षेत्र में धर्मकूप इलाके में अवस्थित है। शक्ति के उपासक इस दिन स्कंद माता के स्वरूप में विराजित मां बागेश्वरी देवी का पूजन अर्चन करेंगे। देवी का मंदिर जैतपुरा इलाके में स्थित है।

काशी खंड अध्याय १०० के अनुसार काशी में चैत्र नवरात्र पर नौ गौरी के दर्शन और पूजन का विधान है। काशी में जहां नौ दुर्गा विराजती हैं, वहीं नौ गौरी के मंदिर भी भक्तों की आस्था से प्रतिध्वनित होते रहे हैं। चैत्र नवरात्र में नौ गौरी के दर्शन का विधान है।

स्कन्दपुराण खण्डः १ माहेश्वरखण्ड / अरुणाचलमाहात्म्यौत्तरार्धम् /अध्यायः २

उक्तं वाराणसीक्षेत्रं क्रोशपंचकपावनम् ।। देवस्तत्राविमुक्ताख्यो विशालाक्ष्या समर्चितः ।। २० ।।
वाराणसी के पवित्र स्थान का पहले ही उल्लेख किया जा चुका है। यह बहुत पवित्र है और इसका विस्तार पांच क्रोश तक है। वहां विशालाक्षी द्वारा अविमुक्त नामक भगवान की पूजा की जाती है।

स्कन्दपुराण खण्डः ४ (काशीखण्ड)

विश्वेश्वरो विशालाक्षी द्युनदीकालभैरवः ।। श्रीमान्ढुंढिर्दंडपाणिः षडंगो योग एष वै ।। ४१.७२ ।।
एतत्षडंगयो योगं नित्यं काश्यां निषेवते ।। संप्राप्य योगनिद्रां स दीर्घाममृतमश्नुते ।। ४१.७३ ।।
विश्वेश्वर, विशालाक्षी, दिव्य नदी, कालभैरव, ढुंढी और दंडपाणि - ये छह अंगों के योग का निर्माण करते हैं। यदि कोई काशी में लगातार छह अंग के इस योग का अभ्यास करता है, तो उसे लंबी योग निद्रा प्राप्त होती है और वह अमृत का पान करता है।

श्वेतमाधवसंज्ञोहं विशालाक्ष्याः समीपतः ।। श्वेतद्वीपेश्वरं रूपं कुर्यां भक्त्या समर्चितः ।। ६१.२८ ।।
विशालाक्षी के निकट नारायण का नाम श्वेतमाधव है। भक्ति से विभूषित वो भक्त को श्वेतद्वीपेश्वर के स्वरूप का बना देते हैं।

मत्प्रासादैंद्रदिग्भागे ज्ञानमंडपमस्ति यत् ।। ज्ञानं दिशामि सततं तत्र मां ध्यायतां सताम् ।। ७९.७५ ।। 
भवानि राजसदने ममास्ति हि महानसम् ।। यत्तत्रोपहृतं पुण्यं निर्विशामि मुदैव तत् ।। ७९.७६ ।। 
विशालाक्ष्या महासौधे मम विश्रामभूमिका ।। तत्र संसृतिखिन्नानां विश्रामं श्राणयाम्यहम् ।। ७९.७७ ।।
भगवान विश्वनाथ कहते हैं -  मेरे महल के पूर्वी भाग में ज्ञान मंडप है। वहाँ जो सज्जन मेरा ध्यान करते हैं, उन्हें मैं (आध्यात्मिक) ज्ञान प्रदान करता हूँ। भवानी के राजमहल में मेरा पाक (भोजन) कक्ष है, जिसमें मैं प्रसन्नता पूर्वक प्रवेश करता हूं ताकि वहां जो कुछ भी चढ़ाया जाता है उसे स्वीकार कर सकूं, जिससे (दाता को) पुण्य मिलता है। मेरा विश्राम स्थल विशालाक्षी का विशाल भवन है। वहां मैं उन लोगों को परम विश्राम (मुक्ति) प्रदान करता हूं जो सांसारिक अस्तित्व के कारण व्यथित हैं।

यत्र साक्षाद्विशालाक्षी सुविस्तारफलप्रदा ।। न तत्र पुरि सर्वस्यां नरो वै निर्धनः क्वचित् ।। ९६.१०१ ।।
उस संपूर्ण नगर (काशी) में कहीं भी कोई दरिद्र नहीं है, जहां स्वयं विशालाक्षी व्यापक लाभ प्रदान करती है।

ब्रह्मेशस्तत्पुरस्ताच्च पर्जन्येशस्तदीशगः ।। तत्प्राच्यां नहुषेशश्च विशालाक्षी च तत्पुरः ।। ९७.३९ ।।
विशालाक्षीश्वरं लिंगं तत्रैव क्षेत्रवस्तिदम् ।। जरासंधेश्वरं लिंगं तद्याम्यां ज्वरनाशनम् ।। ९७.२४० ।।
ब्रह्मेश इनके सामने है। पर्जन्येश पूर्वोत्तर दिशा में है। इनके पूर्व में नहुशेष है। उसके सामने विशालाक्षी है। विशालाक्षीश्वर लिंग वहीं है और काशी में निवास प्रदान करते है। इनके दक्षिण में जरासंधेश्वर लिंग है और यह ज्वर को नष्ट करते है।

अतः परं प्रवक्ष्यामि गौरीं यात्रामनुत्तमाम्।। शुक्लपक्षे तृतीयायां या यात्रा विष्वगृद्धिदा ।। १००.६७ ।।
गोप्रेक्षतीर्थे सुस्नाय मुखनिर्मालिकां व्रजेत् ।। ज्येष्ठावाप्यां नरः स्नात्वा ज्येष्ठागौरीं समर्चयेत् ।। १००.६८।।
सौभाग्यगौरी संपूज्या ज्ञानवाप्यां कृतोदकैः।। ततः शृंगारगौरीं च तत्रैव च कृतोदकः ।। १००.६९ ।।
स्नात्वा विशालगंगायां विशालाक्षीं ततो व्रजेत् ।। सुस्नातो ललितातीर्थे ललितामर्चयेत्ततः ।। १००.७०।।
स्नात्वा भवानीतीर्थेथ भवानीं परिपूजयेत् ।। मंगला च ततोभ्यर्च्या बिंदुतीर्थकृतोदकैः ।। १००.७१ ।।
ततो गच्छेन्महालक्ष्मीं स्थिरलक्ष्मीसमृद्धये ।। इमां यात्रां नरः कृत्वा क्षेत्रेस्मिन्मुक्तिजन्मनि ।। १००.७२ ।।
न दुःखैरभिभूयेत इहामुत्रापि कुत्रचित् ।। कुर्यात्प्रतिचतुर्थीह यात्रां विघ्नेशितुः सदा ।। १००.७३ ।।
इसके बाद मैं शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को की जाने वाली उत्तम गौरी यात्रा का वर्णन करूँगा। यह सभी ऐश्वर्य प्रदान करता है। गोप्रेक्ष में पूरी तरह से स्नान करने के बाद एक भक्त मुखनिर्मलिका को जाना चाहिए। ज्येष्ठावापी  में स्नान करने के बाद पुरुष को ज्येष्ठागौरी की पूजा करनी चाहिए। सौभाग्यगौरी की पूजा उन लोगों द्वारा की जानी चाहिए जिन्होंने ज्ञानवापी वापी में जलीय संस्कार किए हैं। फिर वहीं पर वही कर्म करने के बाद उन्हें श्रृंगारगौरी की पूजा करनी चाहिए। विशालगंगा में स्नान करने के बाद उन्हें विशालाक्षी की ओर प्रस्थान करना चाहिए। ललिता तीर्थ में विधिनुसार स्नान करने के बाद भक्त को ललिता की पूजा करनी चाहिए। भवानी तीर्थ में स्नान करने के बाद भवानी की पूजा करनी चाहिए। तब मंगला की पूजा उन भक्तों द्वारा की जानी चाहिए जिन्होंने बिंदु तीर्थ के जल से जल संस्कार किया है। तत्पश्चात् ऐश्वर्य में निरन्तर वृद्धि के उद्देश्य से उसे महालक्ष्मी के पास जाना चाहिए। इस पवित्र स्थान पर तीर्थयात्रा करने से जो मोक्ष का कारण बनता है, किसी भी व्यक्ति को न तो यहाँ और न ही भविष्य में दुखों का सामना करना पड़ेगा।

GPS LOCATION OF THIS TEMPLE CLICK HERE

विशालाक्षी गौरी का विग्रह मीरघाट क्षेत्र में धर्मकूप इलाके में अवस्थित है।
The Deity of Vishalakshi Gauri is located in Dharamkup area in Meerghat area.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 

Kamakhya, Kashi 8840422767 

Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                                        

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय                                    कामाख्याकाशी 8840422767                                ईमेल : sudhanshu.pandey159@gmail.com


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