Chausatthi Devi (चौसट्ठी देवी)

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Chausatthi Devi
चौसट्ठी देवी

काशीखण्डः अध्यायः ४५

चैत्रकृष्णप्रतिपदि तत्र यात्रा प्रयत्नतः ।। क्षेत्रविघ्नशांत्यर्थं कर्तव्या पुण्यकृज्जनैः ।। ५२ ।।
यात्रा च सांवत्सरिकीं यो न कुर्यादवज्ञया ।। तस्य विघ्नं प्रयच्छंति योगिन्यः काशिवासिनः ।। ५३ ।।
अग्रे कृत्वा स्थिताः सर्वास्ताः काश्यां मणिकर्णिकाम् ।। तन्नमस्कारमात्रेण नरो विघ्नैर्न बाध्यते ।। ५४ ।।
चैत्र के कृष्ण पक्ष में पहले दिन भक्तों द्वारा पवित्र स्थान की बाधाओं को दूर करने के उद्देश्य से एक तीर्थ यात्रा (६४ योगिनियों के निमित्त) की जानी चाहिए। यदि कोई काशी में रहकर अवमानना या उदासीनता से वार्षिक तीर्थ यात्रा नहीं करता है, तो योगिनी उसके लिए बाधाएँ खड़ी करती हैं। मणिकर्णिका में काशी में इन सबको आगे रखकर भक्त पुरुष को प्रणाम करना चाहिए। इसी के बल पर वह सभी बाधाओं को दूर कर सकता है।

६४ योगिनियों के नाम

नामधेयानि वक्ष्यामि योगिनीनां घटोद्भव।। आकर्ण्य यानि पापानि क्षयंति भविनां क्षणात्।।३३।।
गजानना सिंहमुखी गृध्रास्या काकतुंडिका।। उष्ट्रग्रीवा हयग्रीवा वाराही शरभानना ।।३४।।
उलूकिका शिवारावा मयूरी विकटानना ।। अष्टवक्त्रा कोटराक्षी कुब्जा विकटलोचना ।।३५।।
शुष्कोदरी ललज्जिह्वा श्वदंष्ट्रा वानरानना ।। ऋक्षाक्षी केकराक्षी च बृहत्तुंडा सुराप्रिया ।। ३६ ।।
कपालहस्ता रक्ताक्षी शुकी श्येनी कपोतिका ।। पाशहस्ता दंडहस्ता प्रचंडा चंडविक्रमा ।। ३७ ।।
शिशुघ्नी पापहंत्री च काली रुधिरपायिनी ।। वसाधया गर्भभक्षा शवहस्तांत्रमालिनी ।।३८।।
स्थूलकेशी बृहत्कुक्षिः सर्पास्या प्रेतवाहना ।। दंदशूककरा क्रौंची मृगशीर्षा वृषानना ।। ३९ ।।
व्यात्तास्या धूमनिःश्वासा व्योमैकचरणोर्ध्वदृक् ।। तापनी शोषणीदृष्टिः कोटरी स्थूलनासिका ।। ४० ।।
विद्युत्प्रभा बलाकास्या मार्जारी कटपूतना ।। अट्टाट्टहासा कामाक्षी मृगाक्षी मृगलोचना ।।४१।।

चूँकि कली प्रभाव से बहुत से विग्रह विलुप्त हो गए इसलिए ६४ योगिनियों ने स्वयं को चौसट्ठी देवी के रूप में अधिष्ठित कर लिया। आज भी इन ६४ योगिनियों में से कुछ के मूल विग्रह आज भी यथा स्थिति में हैं जिनकी जानकारी आपको आगे दी जाएगी

नीचे का विवरण जो मंदिर के महंत पं. चुन्नी लाल पंड्या ने दैनिक जागरण के साथ 2020 में साझा की, उपलब्ध है....

15वीं शताब्दी में हुई प्राण प्रतिष्ठा

मंदिर के महंत पं. चुन्नी लाल पंड्या के अनुसार 15वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में बंगाल, चौबीस परगना के राजा प्रतापादित्य को स्वप्नादेश हुआ कि काशी में गंगाघाट के किनारे एक अश्वत्थ वृक्ष यानी पीपल के पेड़ में चौंसठ योगिनियां विराज रही हैं उन्हें माता भद्रकाली के सानिध्य में स्थापित कर सादर वंदन अभिनंदन प्रदान किया जाए। कथा बताती है कि प्रतापादित्य भद्रकाली की रजत प्रतिमा को नौका से लेकर काशी आए और केदार खंड क्षेत्र में भद्र काली के साथ सर्वसमाहित स्वरूप में चौंसठ योगिनियों को भी देवी दुर्गा की अष्टभुजा प्रतिमा के रूप में सिद्धपीठिका प्रदान की। पुराणों और काशी खंड में भी इन चौंसठ योगिनियों की महिला कथा बखानी गई है।

लोक मान्यताओं का आभा मंडल

अष्टधातु की प्रतिमा के रूप में काल भैरव व एकदंत विनायक के साथ भद्र काली के सम्मुख विराज रही देवी चौसट्ठी ने चूंकि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को ही अपनी पीठिका ग्रहण की थी अतएव लोक मान्यताओं ने धूलिवंदन की इस विशेष तिथि को देवी के अनुरंजन तिथि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।

मूलत: तंत्र पीठ चौसट्ठी का आसन

सनातन परंपरा की बात करें तो काशी नगरी सभी मत-मतांतरों की साधना भूमि रही है। इसी क्रम में चौसट्ठी सिद्धपीठ को भी तंत्र पीठ की प्रतिष्ठा प्राप्त है। योगिराज श्यामाचरण लाहिड़ी, स्वामी भास्करानंद,  देवरहवा बाबा व नारायण दत्त श्रीमाली जैसे हठी साधकों ने यहां सिद्धि प्राप्त की और अपने चमत्कारों से लोक कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया।

कभी घुटनों तक बिछ जाती थी गुलाल की कालीन

महंत पं. चुन्नीलाल पंड्या के अनुसार पंड्या परिवार की 11वीं पीढ़ी अभी देवी की सेवइती में समर्पित है। पुरखों-पुरनियों से सुनी गई सिद्धपीठ की महिमा कथाओं के मुताबिक अभी 18वीं सदी के उत्तराद्र्ध तक पीठ का वैभव परम ऐश्वर्यशाली हुआ करता था। न सिर्फ शहर से अपितु ग्राम्यांचलों से भी धूलिवंदन के लिए होली के  दिन गाजे-बाजे के साथ श्रद्धालुओं के जत्थे चौसट्ठी यात्रा के लिए निकलते थे और देवी के दरबार में रौनकों के उत्सवी रंग भरते थे। लोकाचारी मान्यताओं के अनुसार चौसट्ठी देवी के चरणों में गुलाल चढ़ाए बगैर काशी में रंगोत्सव की पूर्णता ही नहीं मानी जाती है। ...तो आइये इस बार रंगोत्सव पर आप भी इस धरोहरी परंपरा को अपनी श्रद्धा से सजाइए। बंगाली टोला की गलियों या फिर चौसट्ठी घाट की पथरीली सीढिय़ों को अबीर-गुलाल से पाटते हुए चौसट्ठी मंदिर में देवी के श्री चरणों में एक मुट्ठी गुलाल अर्पित कर अक्षय पुण्य के भागीदार बन जाइए।


GPS LOCATION OF THIS TEMPLE CLICK HERE


चौसट्ठी देवी का मंदिर चौसट्ठी घाट पर स्थित है।
The temple of Chausatthi Devi is situated at Chausatthi Ghat..

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 

Kamakhya, Kashi 8840422767 

Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय

कामाख्याकाशी 8840422767

ईमेल : sudhanshu.pandey159@gmail.com


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