Veermadhav (वीरमाधव)

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Veermadhav
वीरमाधव

शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए एवं भूदेवी श्रीदेवी के साथ भगवान श्री हरि विष्णु का काशी खण्डोक्त विग्रह आत्मा वीरेश्वर मंदिर के दक्षिणी द्वार के पास पुनर्स्थापित किया गया है। भगवान का विग्रह अति प्राचीन है अतः क्षरण होना भी स्वाभाविक है  
भ्रांतियां : वर्तमान में आसपास के लोगों ने भगवान के इस विग्रह को राहु केतु कहना प्रारंभ कर दिया है। जिसका न तो सिर है न हीं पैर क्योंकि अगर हम विग्रह को ध्यान से देखें चतुर्भुज रूप में श्रीमन नारायण शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए हुए तथा दोनों करों के नीचे श्रीदेवी एवं भूदेवी उपस्थित है अतः विग्रह श्री हरि विष्णु का ही है काशी खंड में वीर माधव की स्थिति वीरेश्वर के पश्चिम में बताई गई है। यह बात हम सभी लोगों को जान लेने अति आवश्यक है की काशी के मूल विग्रह (आत्मा) ही है जो अनादि काल से चले आ रहे हैं वरन मंदिर (शरीर) समय-समय पर बदलते रहते हैं जिस प्रकार आत्मा एक ही रहती है परंतु वह समय हो जाने पर शरीर परिवर्तन करती रहती है ठीक ऐसा ही वीरेश्वर मंदिर में भी घटित हुआ मंदिर की पश्चिमी दीवाल तोड़कर नयी दीवाल बनी। पश्चिम की और संकठा जी का मंदिर होने से और सिमित जगह होने के कारण पश्चिम के सभी विग्रह या तो मंदिर के भीतर रख दिए गए या बाहरी दीवालों में स्थापित कर दिए गए। दक्षिणी द्वार के ठीक सामने भगवान श्री हरि का एक और स्वरुप जिनका मूल नाम वेणी माधव है अब चलते हैं उस कालखंड में जहां से विग्रह के नाम का लोप हो गया इस चित्र में जो आप भगवान विष्णु का स्वरूप देख रहे हैं वह अति प्राचीन (काशी खण्डोक्त) है जो किसी समय इस मंदिर के पश्चिमी दीवाल का हिस्सा था और काशी खंड के यात्राओं का सांगोपांग करने वाले ब्राह्मण हर विग्रह और उसकी स्तिथि के विषय में भली भांति जानते थे परन्तु जब सांगोपांग यात्रा करने वाले ब्राह्मणों का अकाल हो गया और अर्थ का वर्चस्व हो गया तो विग्रहों में सबकी रूचि काम होती चली गई यहां ध्यान देने वाली यह बात भी है कि उस समय तक काशी खंड की यात्रा करने वाले बाहरी तीर्थ यात्रियों की प्रचुरता नहीं थी परंतु जितने भी करते थे सांगोपांग करते थे और उसका अनुसरण उनके शिष्य भी करते थे जिससे की यह ज्ञान और रहस्य दूसरों को भी दिया जा सके और इसका लोप न हो (जैसा की वेदों का लोप न हो इसके लिए भगवत इच्छा से महर्षि वेदव्यास ने वेदों को गणेश जी के माध्यम से लेखनबद्ध किया)। यदि वहां के ब्राह्मणों भी विग्रह नहीं पहचान पा रहे हैं तो यह कली काल का प्रभाव तथा ऋषि गौतम के ब्राह्मणों को दिया हुआ श्राप का प्रभाव प्रतीत होता जान पड़ रहा है वह अनजाने में ही भगवान श्रीमन्नारायण को राहु केतु बतला कर पाप कर रहे हैं उन्हें इस विषय का आभास तक नहीं दक्षिण से आने वाले तीर्थ यात्रियों की संख्या इतनी अधिक नहीं थी जितना की आज वर्तमान में है। अतः भगवान वीर माधव को प्रणाम करने के पश्चात उनके ठीक सामने वेणी माधव को प्रणाम करें। 
यह सारी बातें भगवत कृपा से चैत्र कृष्ण एकादशी २०८० नल, विक्रम सम्वत (२०२३) की संध्या को मैंने (सुधांशु कुमार पांडेय ) दर्शन करते हुए एवं वहां के कुछ विग्रहों को जानने वालों के सहायता से जानी परम कृपालु काशी के पालनहार श्री बिंदु माधव के प्रेरणा से काशी के इस वैष्णव विग्रह की जानकारी इस तुक्ष को विदित हुईं 

काशीखण्डः अध्यायः ६१

वीरमाधवसंज्ञोहं वीरेशात्पश्चिमे मुने ।। तत्र व्रती समभ्यर्च्य न यामीं यातनां लभेत् ।। १८५ ।।
हे ऋषि! वीरेश (आत्मा वीरेश्वर) के पश्चिम में मेरा नाम वीरमाधव है। यदि व्रत का पालन करने वाला वहाँ मेरी पूजा करता है, तो उसे यम की यातना का सामना नहीं करना पड़ता है।

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वीर माधव का स्थान C.K.7/158 पर आत्मा वीरेश्वर के दक्षिण द्वार के समीप है।
Veer Madhav's place is at C.K.7/158 near the south gate of Atma Veereshwar.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 

Kamakhya, Kashi 8840422767 

Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय

कामाख्याकाशी 8840422767

ईमेल : sudhanshu.pandey159@gmail.com


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