Vitthal Temple (Kashi) - विठ्ठल मंदिर (काशी)

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Vitthal Temple (Kashi) 

विठ्ठल/पांडुरंग मंदिर (काशी)

काशी में भगवान विठ्ठल का सपत्नीक वास (सुधांशु कुमार पाण्डेय द्वारा देव इच्छा से वर्णित) : स्कंद पुराण काशी खंड के अध्याय 61 में भगवान श्री हरि विष्णु काशी में स्थित वैष्णव तीर्थों का वर्णन करते हैं। जिनमें भगवान के समस्त अवतारों का वर्णन है। वह जितने भी अवतार लेंगे वह काशी में भी देव इच्छा से प्रतिष्ठित होंगे। जिसका भान भगवान स्वयं समय-समय पर काशी में कराते रहते हैं। काशी में भगवान विठ्ठल का एक बार दर्शन मूल पंढरपुर में स्थित भगवान विठ्ठल जी के पांच बार दर्शन के समतुल्य हो जाता है। काशी की महत्ता के अनुसार...

मंदिर अन्न क्षेत्र : मंदिर में विश्वमांगल्य सभा एवं विट्ठल मंदिर ट्रस्ट द्वारा संचालित श्रीनाथजी की रसोई है। प्रतिदिन यहां सुबह ११ बजे से २ बजे तक, १०० से सवा सौ भक्तों को भंडारा कराया जाता है


श्री विठ्ठल भगवान कथा

अपने भक्त द्वारा अपने माता-पिता की सेवा-भक्ति देख प्रकट हुए श्री विठ्ठल भगवान यानि भगवान श्री कृष्ण ।
करीब 6वीं सदी की बात है उस समय संत पुंडलिक जो भगवान श्री कृष्ण जी की सपत्नी पूजा किया करते थे। वे नारायण के परम भक्त थे और अपने माता-पिता के भी परम भक्त थे।एक दिन वे अपने बृद्ध माता-पिता के पैर दबा रहे थे कि श्रीकृष्ण भगवान रूकमणी जी के साथ वहां प्रकट हो गए।

वे पैर दबाने में इतने लीन थे कि अपने इष्टदेव की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया।तब प्रभु श्री कृष्ण जी ने उन्हें स्नेह से पुकार कर कहा, ‘पुत्र पुंडलिक, हम तुम्हारा आतिथ्य ग्रहण करने सपत्नी आ गये हैं।’ पुंडलिक ने जब उस तरफ देखा, तो भगवान के दर्शन हुए। उन्होंने कहा कि प्रभु जरा धीरे बोलिए! मेरे माता-पिताजी शयन कर रहे हैं कहीं उनकी नींद न टूट जाये,वो बीमार हैं बड़ी मुश्किल से उन्हें नींद आयी है ।

इसलिए आप इस ईंट पर खड़े होकर थोड़ी सी प्रतीक्षा कीजिए और वे पुन: पैर दबाने में लीन हो गए।भक्त पुंडलिक की अपने माता-पिता की सेवा और शुद्ध, मासूम, निस्वार्थ भाव देखकर भगवान श्री कृष्ण जी बहुत प्रसन्न हो गए और कमर पर दोनों हाथ रखकर और पैरों को जोड़कर उसी ईंट पर चुपचाप खड़े हो गए। कुछ देर बाद पुंडलिक ने भगवान से कह दिया कि आप इसी मुद्रा में थोड़ी देर और इंतजार करें प्रभु। भगवान अपने भक्त की अपने माता-पिता के प्रति सेवा-भक्ति को बाधित नहीं करना चाहते थे और वह, रूकमणी जी के साथ एकरूप होकर कमर पर हाथ रखे, उसी मुद्रा में विग्रह यानि मूर्ति रूप में वहीं विराजमान हो गये जिसे उनके भक्त पुंडलिक ने विठ्ठल कहते हुए हृदय से लगा लिया।

भगवान श्री कृष्ण जी ने यह विठ्ठल अवतार इसलिए लिया कि धरती के प्रत्येक प्राणी अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा पूरे मनोभाव से करें क्योंकि यही नारायण श्री कृष्ण की ही सेवा है। जो भक्त अपने माता-पिता से अन्नय प्रेम करते हैं, भगवान उनसे लाख गुना ज्यादा प्रेम करते हैं।

यही स्थान पुंडलिकपुर या अपभ्रंश रूप में पंढरपुर कहलाया।


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श्रीविठ्ठल जी का मंदिर पंचगंगा घाट के निकट दुर्गा घाट के ठीक ऊपर स्थित है।
Shrivitthal ji's temple is located just above Durga Ghat near Panchganga Ghat.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 

Kamakhya, Kashi 8840422767 

Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय

कामाख्याकाशी 8840422767

ईमेल : sudhanshu.pandey159@gmail.com


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