Someshwar
(सोमनाथ या सोमेश्वर)
द्वादश (स्वयंभू) ज्योतिर्लिंग - काशीखण्ड
स्कन्दपुराण : काशीखण्ड
सोमेश्वरस्य यल्लिङ्गमन्तकेशमुदाहृतम्। मह्याः सागरसंयोगे तल्लिङ्गमुपलिङ्गकम्।।
पृथ्वी और सागर के संयोग (सङ्गम) में अन्तकेश (अन्तकेश्वर) नाम वाला सोमेश्वर (सोमनाथ) का उपलिंग है।
काशी में स्थान : वृद्धकाल मंदिर परिसर में अंतकेश्वर, K.52/39
।। द्वादश ज्योतिर्लिंग ।।
लक्ष्मीनारायणसंहिता खण्डः १ (कृतयुगसन्तान) - अध्यायः १९६
- : श्रीनारायण उवाच : -
एवं द्वादशलिंगानि ज्योतिर्लिंगानि तानि वै । शंकरस्य महाज्योतिर्मयलिंगानि सन्ति हि ।।१०४।।
सचेतनस्वरूपाणां खण्डानां यत्र संस्थितिः । पूजनं च प्रतिष्ठानं कृतं स एव शंकरः ।।१०५।।
साक्षादस्तीति तान्येव मूर्तिमान् शंकरः स्वयम् । विराजते महद्ब्रह्म ज्योतीरूपः स सर्वदा ।।१०६।।
ज्योतिर्लिंगानि तान्येव कथयामि शृणु प्रिये । सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।।१०७ ।।
उज्जयिन्यां महाकालमोंकारे चाऽमरेश्वरम् । केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम् ।।१०८।।
वाराणस्यां च विश्वेशं त्र्यम्बकं गोमतीतटे । वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने ।।१०९।।
सेतुबन्धे च रामेशं घुश्मेशं च शिवालये । ग्राह्यमेषां तु नैवेद्यं भोजनीयं प्रयत्नतः ।।११०।।
【कोटिरुद्र संहिता】
चौदहवाँ अध्याय
"सोमनाथेश्वर की उत्पत्ति"
सूत जी बोले ;- हे ऋषियो! अब मैं आपको सोमनाथ नामक ज्योतिर्लिंग की महिमा के बारे में बताता हूं। प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्वनी रोहिणी नामक सत्ताईस पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से कर दिया। जिन्हें पाकर चंद्रमा की शोभा बढ़ गई। अपनी सभी पत्नियों में चंद्रमा रोहिणी से अधिक प्रेम करते थे। इसलिए अन्य सभी दुखी रहती थीं। एक दिन उन्होंने अपने पिता को इस विषय में बताया। तब प्रजापति दक्ष चंद्रमा को समझाने लगे।
दक्ष बोले ;- हे जामाता! मैंने अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह तुमसे किया है परंतु आप उनसे असमानता का व्यवहार क्यों करते हैं। एक पत्नी से प्रेम और अन्यों से प्रेम न करना, सही नहीं है। इसलिए आपको सभी पत्नियों को समान रूप से प्यार करना चाहिए। ऐसा समझाकर दक्ष अपने घर लौट गए परंतु चंद्रदेव ने उनकी बातों को सरलता से लिया और उनके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। तब एक दिन दक्ष पुत्रियों ने पुनः अपने पिता से चंद्रमा के व्यवहार के बारे में बात की। यह जानकर प्रजापति दक्ष को क्रोध आ गया और उन्होंने चंद्रमा को क्षीण व मलिन होने का शाप दे दिया। उनके शाप के फलीभूत होने से चंद्रमा की कांति क्षीण हो गई और वह मलिन हो गया।
चंद्रमा की ऐसी स्थिति देखकर देवराज इंद्र व अन्य सभी देवता मिलकर ब्रह्माजी के पास गए और उन्हें जाकर सब बातें बताईं तथा चंद्रमा का उद्धार करने के लिए कहा।
तब ब्रह्माजी बोले ;- हे देवताओ! यह चंद्रमा बड़ा ही दुष्ट प्रवृत्ति का है। पूर्व में भी यह देवगुरु बृहस्पति की पत्नी तारा को ले भागा था। अब यह दक्ष पुत्रियों के साथ असमानता का व्यवहार कर सभी को दुखी कर रहा है परंतु फिर भी तुम्हारी प्रार्थना पर मैं एक उपाय बताता हूं। यदि चंद्रमा प्रभास नामक पवित्र तीर्थ में जाकर भगवान शिव की आराधना करके महामृत्युंजय मंत्र का जाप कर उन्हें प्रसन्न करे, तभी उसके दुखों का निवारण हो सकता है। ब्रह्माजी को प्रणाम करके सब देवता इंद्र सहित चंद्रमा के पास आए और उन्हें सारी बातें बताईं। तब उन्हें लेकर वे प्रभास क्षेत्र पहुंचे। वहां जाकर चंद्रमा ने विधि-विधान से त्रिलोकीनाथ भगवान शिव का पूजन किया और आसन पर बैठकर महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने लगे। इस प्रकार वे दृढ़तापूर्वक मंत्र का जाप करते रहे। दस करोड़ जाप पूरे होते ही भगवान शिव प्रसन्न होकर चंद्रमा के सम्मुख प्रकट हो गए। उन्होंने चंद्रमा से मनोवांछित वस्तु मांगने के लिए कहा।
चंद्रमा ने हाथ जोड़कर आराध्य शिवजी को प्रणाम किया..
और बोले ;- हे भगवन्! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मेरे क्षय रोग को दूर कर दीजिए ।
तब भगवान शिव बोले ;- हे चंद्रमा ! मैं प्रजापति दक्ष के शाप को समाप्त नहीं कर सकता, पर उसका प्रभाव कम कर सकता हूं। माह के कृष्ण पक्ष में पंद्रह दिनों में तुम्हारी कलाएं क्षीण होंगी तथा शुक्ल पक्ष के पंद्रह दिनों में ये कलाएं बढ़ेंगी। चंद्रमा ने शिवजी से प्रार्थना करते हुए निवेदन किया कि आप देवी पार्वती सहित यहीं पर निवास करें। तब उनकी प्रार्थना को स्वीकारते हुए चंद्रमा के नाम से ही शिवजी सोमेश्वर कहलाए व संसार में सोमनाथ नाम से विख्यात हुए। वहीं पर चंद्र कुण्ड नाम से एक कुण्ड देवताओं ने बनाया। इस कुण्ड में ब्रह्माजी व शिवजी का निवास माना जाता है। इस कुण्ड में स्नान करने से सभी पाप छूट जाते हैं। छः मास तक इस पवित्र कुण्ड के जल में स्नान करने से असाध्य रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।
भगवान शिव के आशीर्वाद से चंद्रमा नीरोग हो गए और पहले की भांति अपना कार्य करने लगे। इस प्रकार मैंने सोमनाथ की उत्पत्ति के बारे में तथा 'सोमेश्वर' ज्योतिर्लिंग के बारे में बताया। इस कथा को सुनने, पढ़ने अथवा दूसरों को सुनाने से अभीष्ट फल की प्राप्त होती है और पाप से मुक्ति मिल जाती है।
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From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey
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