Bhadreshwar (भद्रेश्वर)

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Bhadreshwar

भद्रेश्वर

भगवान शिव की आराधना (बद्रीनारायण क्षेत्र में) कर श्री कृष्ण ने सांब की प्राप्ति की थी। भगवान श्रीकृष्ण ने ही सांब को कोढ़ी होने का श्राप दिया, जिसका प्रायश्चित श्री कृष्ण ने भगवान विश्वनाथ की पापाहर्ता नगरी काशी को ही सर्वसमर्थ बताया। सांब ने काशी में आकर कुंड का निर्माण करवाया तथा सूर्य मूर्ति (सांब आदित्य) की स्थापना की। सूर्य आराधना के फल स्वरुप सांब रोग मुक्त हो गए तत्पश्चात भगवान श्री कृष्ण अपनी अन्य पत्नियों के साथ काशी आए। उन पत्नियों ने भगवान श्री कृष्ण से काशी में लिंग स्थापना का महत्व जान श्री कृष्ण के द्वारा स्थापित लिंग के निकट ही अन्य लिंगों की स्थापना अपने-अपने नामों से की। उनमें से प्रमुख जांबवतीश्वर तथा भद्रेश्वर का वर्णन स्कंदपुराण काशीखंड मे मिलता है। भगवान के सन्निकट ही अन्य लिंग भी है जो स्थिति के आधार पर उनकी पत्नियों के द्वारा स्थापित बोले जाते हैं। मध्यमेश्वर में 1 वर्ष पर्यंत उन्होंने तपस्या की थी।

इनका दर्शन भाद्रपद मास में (पूर्णिमा को) भी करना चाहिए तथा पौराणिक निर्देशानुसार पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र युक्त पूर्णिमा में इनका दर्शन करने का विधान है। भाद्रपद सनातन वैदिक पंचांग के अनुसार साल के छठे महीने को  कहा जाता है। ये श्रावण के बाद और आश्विन से पहले आता है। अश्विन मास में उपशांतेश्वर के दक्षिण भाग में स्थित देव वैद्य अश्विनीकुमार के द्वारा स्थापित दोनों शिवलिंग का दर्शन करना चाहिए।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

तदुत्तरे भद्रह्रदो गवां क्षीरेण पूरितः । कपिलानां सहस्रेण सम्यग्दत्तेन यत्फलम् ।।

तत्फलं लभते मर्त्यः स्नातो भद्रह्रदे ध्रुवम् । पूर्वाभाद्रपदा युक्ता पौर्णमासी यदा भवेत् ।।

तदा पुण्यतमः कालो वाजिमेधफलप्रदः । ह्रद पश्चिम तीरे तु भद्रेश्वर विलोकनात् ।।

गोलोकं प्राप्नुयात्तस्मात्पुण्यान्नैवात्र संशयः । भद्रेश्वराद्यातुधान्यामुपशांत शिवो मुने ।।

इसके उत्तर में गायों के दूध से भरा भद्रह्रद है। जो व्यक्ति भद्रह्रद में पवित्र स्नान करता है, उसे निश्चित रूप से वह पुण्य प्राप्त होता है जो एक हजार कपिला गायों को विधिवत दान करने से प्राप्त होता है। जब पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र पूर्णिमा के दिन पड़ता है, तो वह अवधि अश्व-बलि का पुण्य प्रदान करने वाली अत्यंत शुभ होती है। हृद के पश्चिमी तट पर स्थित भद्रेश्वर का दर्शन-पूजन करके, एक भक्त को उसके पुण्य के कारण गोलोक प्राप्त होगा। इसमें कोई संदेह नहीं है। हे मुनिवर, उपशांतशिव भद्रेश्वर के दक्षिण-पश्चिम में है।


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भद्रेश्वर, उपशांतिश्वर मंदिर परिसर के अंदर CK.2/4 पर स्थित है।
Bhadreshwar Located at Ck.2/4 Inside Upashantishvara Temple Premises.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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