Tilparneshwar (तिलपर्णेश्वर)

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Tilparneshwar

तिलपर्णेश्वर

काशी की दिव्यता देखकर शिवगणों के कुछ जत्थे वापस न लौटने पर भगवान शिव ने गणों के कुछ और जत्थे मंदराचल से काशी भेजे। इन शिवगणों ने भी काशी में बसने का निर्णय लिया और उन्होंने काशी में शिव लिंग स्थापित किये जो उनके नाम से जाने गये। तिलपर्ण नामक शिवगण ने एक शिव लिंग स्थापित किया और भगवान शिव की पूजा शुरू कर दी। इस लिंग को तिलपर्णेश्वर के नाम से जाना गया।

कुछ वर्ष पूर्व तक दुर्गा जी के मंदिर में यहां बलि दी जाती थी शास्त्र अनुसार वर्णित विधि पूर्वक बलि में कोई दोष नहीं हैवह पशु योनि से मुक्त होकर स्वर्ग का अधिकारी होता है। बलि देने वाले को भी कोई पाप नहीं लगता है स्वर्गलोक का भोग करने के पश्चात ब्राह्मण कुल में जन्म लेता है। वेद और पुराणों का वचन ही शास्त्र और शाश्वत है

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

तिलपर्णेश्वरं लिंगं तिलपर्ण प्रतिष्ठितम् । तिलप्रमाणमप्यत्र दृष्ट्वा पापं न संभवेत् ।।

शिवगण तिलपर्ण द्वारा स्थापित तिलपर्णेश्वर लिंग के दर्शन करने से चिपकने वाले बीज (तिल) के आकार का भी पाप शेष नहीं रह जाता है।


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तिलपर्णेश्वर महादेव दुर्गाकुंड में (कुष्मांडा) दुर्गा देवी मंदिर परिसर में पश्चिमी द्वार पर स्थित है।
Tilparneshwar Mahadev is situated at the western gate of the Durga Devi temple complex in Durgakund.


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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