Gautameshwar (गौतमेश्वर)

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Gautameshwar

(गौतमेश्वर)

मन्वंतर (वर्तमान) : वैवस्वत  सप्तर्षि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज

पुराणों में सप्त ऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती है। विष्णु पुराण के अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार है :-

वशिष्ठकाश्यपोऽत्रिर्जमदग्निस्सगौतमः। विश्वामित्रभरद्वाजौ सप्त सप्तर्षयोभवन्।।
अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं:- वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भारद्वाज।
        काशी में महर्षि गौतम द्वारा गोदावरी (त्रयम्बक) क्षेत्र में शिवलिंग स्थापित किया गया काशी यात्रा अंतर्गत (स्कंदपुराण) के सप्तर्षी यात्रा में गौतमेश्वर के दर्शन का महात्म्य है ऋषि पंचमी के दिन सप्त ऋषियों द्वारा स्थापित शिवलिंगों की काशी में विधिपूर्वक यात्रा करनी चाहिए। इसके अतिरिक्त संकटा घाट पर स्थित सप्तर्षी मंदिर (वसिष्ठेश्वर एवं वामदेवेश्वर परिसर) में सप्तर्षियों द्वारा स्थापित शिवलिंग का दर्शन-पूजन यत्नपूर्वक करना चाहिए        


यहां ध्यान देने वाली यह बात है कि काशी में महर्षि गौतम ने गोदावरी स्थान को ही चुना।  यहां पर गोदावरी नदी के कारण जगह का नाम वर्तमान में गोदौलिया है। पास ही त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र से भगवान त्र्यंबकेश्वर महादेव यहां द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में प्राकट्य हैं।  गोदावरी कुंड तो पाट दिया गया परंतु गोदावरी नदी आज भी भगवान त्र्यंबकेश्वर के समीप ही कूप में आकर भगवान त्र्यंबकेश्वर का गुप्त रूप से निरंतर अभिषेक करती रहती हैं।  जिस प्रकार मूल महाराष्ट्र के त्र्यंबक क्षेत्र में माता गंगा गोदावरी के रूप में करती हैं।  


काशीखण्डः अध्यायः ९७

तन्नैर्ऋत्यां मनोलिंगं वंशवृद्धिकरं परम् । प्रियव्रतेश्वरं लिंगं वैद्यनाथपुरोगतम्।। २३७ ।।
तद्याम्यां मुचुकुंदेशस्तत्पार्श्वे गौतमेश्वरः । तत्पश्चिमेन भद्रेश्तद्याम्यामृष्यशृंगिणः ।। २३८ ।।
उसके दक्षिण-पश्चिम में मनु का लिंग है जो महान है और जो परिवार में वृद्धि का कारण बनता है। प्रियव्रतेश्वर लिंग वैद्यनाथ के सामने है। उसके दक्षिण में मुचुकुन्देश्वर है। उसके पास में गौतमेश्वर हैं। इसके पश्चिम में भद्रेश और उसके दक्षिण में ऋष्यश्रृंग के भगवान हैं।

महर्षि गौतम : सप्तर्षियों में से एक वैदिक काल के एक महर्षि व मन्त्रद्रष्टा थे। ऋग्वेद में उनके नाम से अनेक सूक्त हैं। महर्षि गौतम जिन्हें 'अक्षपाद गौतम' के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है, 'न्याय दर्शन' के प्रथम प्रवक्ता माने जाते हैं। इनकी पत्नी का नाम अहल्या और पुत्र तथा पुत्री के नाम क्रमश: शतानन्द व विजया थे।

अक्षपाद गौतम ने 'न्याय दर्शन' का निर्माण तो शायद नहीं किया, पर यह कहा जा सकता है कि न्याय दर्शन का सूत्रबद्ध, व्यवस्थित रूप अक्षपाद के 'न्यायसूत्र' में ही पहली बार मिलता है। महर्षि गौतम परम तपस्वी एवं संयमी थे। महाराज वृद्धाश्व की पुत्री अहिल्या इनकी पत्नी थी, जो महर्षि के शाप से पाषाण बन गयी थी। त्रेता युग में भगवान श्रीराम की चरण-रज से अहिल्या का शापमोचन हुआ, जिससे वह पाषाण से पुन: ऋषि पत्नी बनी।

धनुर्धर तथा स्मृतिकार महर्षि गौतम बाण विद्या में अत्यन्त निपुण थे। जब वे अपनी बाणविद्या का प्रदर्शन करते और बाण चलाते तो देवी अहिल्या बाणों को उठाकर लाती थी। एक बार वे देर से लौटीं। ज्येष्ठ की धूप में उनके चरण तप्त हो गये थे। विश्राम के लिये वे वृक्ष की छाया में बैठ गयी थीं। महर्षि ने सूर्य देवता पर रोष किया। सूर्य ने ब्राह्मण के वेष में महर्षि को छात्ता और पादत्राण (जूता) निवेदित किया। उष्णता निवारक ये दोनों उपकरण उसी समय से प्रचलित हुए। महर्षि गौतम न्यायशास्त्र के अतिरिक्त स्मृतिकार भी थे तथा उनका धनुर्वेद पर भी कोई ग्रन्थ था, ऐसा विद्वानों का मत है। उनके पुत्र शतानन्द निमि कुल के आचार्य थे। गौतम ने गंगा की आराधना करके पाप से मुक्ति प्राप्त की थी। गौतम तथा मुनियों को गंगा ने पूर्ण पवित्र किया था, जिससे वह 'गौतमी' कहलायीं। गौतमी नदी के किनारे त्र्यंबकम् शिवलिंग की स्थापना की गई, क्योंकि इसी शर्त पर वह वहाँ ठहरने के लिए तैयार हुई थीं। गौतमजी द्वारा लाई गई गंगाजी भी वहाँ पास में गोदावरी नाम से प्रवाहित होने लगीं। यह ज्योतिर्लिंग समस्त पुण्यों को प्रदान करने वाला है।


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गौतमेश्वर D.37/33, काशीनरेश शिवाला, गोदौलिया में स्थित है।
Gautameshwar is located at D.37/33, Kashinresh Shivala, Godaulia.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey 

Kamakhya, Kashi 8840422767 

Email : sudhanshu.pandey159@gmail.com


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय

कामाख्याकाशी 8840422767

ईमेल : sudhanshu.pandey159@gmail.com


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