Kshetrapal Bhairav (क्षेत्रपाल भैरव)

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Kshetrapal Bhairav

काशी के क्षेत्रपाल भैरव

भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥

भैरव, भगवान शिव के निवास के संरक्षक देवता हैं। इसलिए उसे क्षेत्रपाल कहा जाता है। भैरव शब्द का अर्थ है "भयानक"। भगवान के निवास के संरक्षक के रूप में, उनका रूप बहुत उग्र है, विभिन्न प्रकार के हथियारों के साथ, नग्न और खोपड़ी से सुशोभित और चेहरे पर मुस्कान है जो गलत करने वालों को धमकी देती है और भक्तों की रक्षा करती है। उनका वाहन कुत्ता है।

यहां यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि जब काशी के समस्त दायित्व कालभैरव के पास ही है तो क्षेत्रपाल की क्या आवश्यकता? जैसा कि स्कंदपुराण काशीखंड का शोधपूर्वक अध्ययन करने पर पता चलता है कि काशी में प्राणियों की मृत्यु तथा दंड कालभैरव के अधीन है अतः इन अत्यधिक कार्यों का समन्वय करने के लिए कालभैरव ने शिव आज्ञा से काशी में अपने ही समस्त स्वरूप प्रकट किए हैं। जो अपने नाम के अनुसार ही कार्य को क्रियान्वित करते रहते हैं। जिस प्रकार ढुंढिराज गणेश ने अपने 56 रूप काशी की सीमा में प्रकट किए हैं। उसी प्रकार भैरव जी ने भी अपने स्वरूप काशी में प्रकट किए हैं। क्षेत्रपाल भैरव का प्रांगण काल भैरव के वायव्य कोण में है। इस प्रांगण में भैरव के प्रकारान्तर स्वरूप श्री क्षेत्रपाल भैरव विराजमान है। क्षेत्रपाल भैरव के दाएं काशी खण्डोक्त एक कूप भी है।

भैरव भगवान शिव का ही स्वरुप हैं। वह भगवान द्वारा सौंपी गई शक्तियों में से एक हैं। काशी में यह प्रथा है कि दिन की पूजा पूरी होने के बाद समस्त मंदिरों की चाबियाँ भैरव को सौंप दी जाती हैं और अगली सुबह मंदिर खुलने से पहले फिर से उनसे ले ली जाती हैं। संरक्षक देवता के रूप में मंदिर में किसी भी त्योहार के बाद उनकी पूजा की जाती है।

भगवान शिव के सभी मंदिरों में स्वाभाविक रूप से भैरव का निवास होगा। काशी, कालभैरव का सुप्रसिद्ध निवास है, क्योंकि वह इस पूरे नगर भगवान विश्वनाथ की पवित्र भूमि के रक्षक हैं। आदिशंकराचार्य ने काशी के कालभैरव की स्तुति में कालभैरवाष्टकम् स्तोत्र गाया है।


अष्ट भैरव- भैरव शिवजी के ही प्रतिरूप हैं। वस्तुत: शिवजी और भैरव में कोई अन्तर नहीं है। अत: भैरव की उपासना भी शिवजी की उपासना के समान फल देने वाला है। शिवमहापुराण में भैरव को परमात्मा शंकर का ही पूर्णरूप बताते हुए लिखा गया है – भैरव: पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मन:। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहिता:शिवमायया॥


भैरव के स्वरूप : - श्री भैरव के शरीर का रंग श्याम है। उनकी चार भुजाएँ हैं जिनमें वे त्रिशूल, खड्ग, खप्पर तथा नरमुण्ड धारण करते हैं। अन्य मतानुसार वे एक हाथ में मोर पंखों का चंवर भी धारण करते हैं। उनका वाहन श्वान (कुत्ता) है। उनकी वेशभूषा लगभग शिवजी के समान है। शरीर पर भस्म, मस्तक पर त्रिपुण्ड, नग्न या बाघम्बर धारण किए, गले में मुण्ड माला और सर्पो से शोभायमान रहते हैं। भैरव श्मशान वासी हैं। ये भूत-प्रेत योगिनियों के अधिपति हैं। भक्तों पर स्नेहवान और दुष्टों का संहार करने में सदैव तत्पर रहते हैं। हर प्रकार के कष्टों को दूर करके बल, बुद्धि, तेज, यश, धन तथा मुक्ति प्रदान करने के कारण इनकी विशेष प्रसिद्धि है। श्री भैरव के अन्य रूपों में ‘महाकाल भैरव’ तथा ‘बटुक भैरव’ मुख्य हैं।


असिताङ्गोरुरुश्चण्डः क्रोधश्चोन्मत्तभैरवः। कपालीभीषणश्चैव संहारश्चाष्टभैरवम् ॥

अष्ट प्रधान भैरव के रूप में जिन आठ नामों की प्रसिद्धि है वे इस प्रकार हैं-

  1. असिताङ्ग भैरव, 
  2. रूरू भैरव
  3. चण्ड भैरव,
  4. क्रोधन भैरव,
  5. उन्मत्त भैरव, 
  6. भयंकर (भीषण) भैरव,
  7. कपाली भैरव, 
  8. संहार भैरव, 

शिवजी के प्रकारान्तर से निम्न नौ स्वरूप भी भैरव के माने जाते हैं..

  • क्षेत्रपाल, 
  • दण्डपाणि, 
  • नीलकण्ठ, 
  • मृत्युञ्जय, 
  • मंजुघोष, 
  • ईशान, 
  • चण्डेश्वर, 
  • दक्षिणामूर्ति, 
  • अर्द्धनारीश्वर


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क्षेत्रपाल भैरव का मंदिर टाउन हॉल गोलघर मार्ग पर स्थित है। मालवीय मार्केट में घुसकर तिराहे से बाएं जो सड़क मैदागिन से वृषेश्वरगंज वाली सड़क में मिल जाती है
The temple of Kshetrapal Bhairav is situated on Town Hall Golghar Marg.


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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