Siddha Ashtakeshwar (सिद्ध्यष्टकेश्वर)

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Siddha Ashtakeshwar

सिद्ध्यष्टकेश्वर

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

।। मंदाकिन्याः प्रतीच्यां तु एष सिद्ध्यष्टकेश्वरः ।।

भवेद्यस्य सपर्यातो गृहे सिद्ध्यष्टकं स्फुटम् । कुंडसिद्ध्यष्टकाख्यं च तत्रैव विरजोदकम् ।।

यत्र स्नात्वा कृतश्राद्धो विरजस्को दिवं व्रजेत् । मूर्त्यस्ताः सिद्धयश्चाष्टौ याः काश्यां सर्वसिद्धिदाः ।।

सिद्ध्यष्टकेश्वर मंदाकिनी के पश्चिम में है। इनकी आराधना से व्यक्ति को अपने घर में ही आठों सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं। वहीं रजस (धूल के कण, रजस गुण) से मुक्त जल वाला सिद्ध्यष्टक नामक पवित्र कुंड है। जो व्यक्ति यहां पवित्र स्नान करता है और श्राद्ध करता है, वह राजस गुण से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है। वे आठ सिद्धियाँ काशी में सभी सिद्धियाँ प्रदान करने वाली साकार आध्यात्मिक शक्तियाँ हैं।


सिद्ध्यष्टकेश्वर, महाराज विनायक के गर्भ गृह में स्थित है इनके समीप ही एक कुंड था जिसे सिद्ध्यष्टक कुंड कहते थेवर्त्तमान में यह कूप के स्वरुप में ही बचा है जिसे सिद्ध्यष्टक कूप के नाम से जाना जाता है


वर्त्तमान मैदागिन कुंड जो पाटकर अत्यंत छोटा हो गया है इसका पश्चिमी तट महाराज विनायक (बड़ा गणेश) तक था 


अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा । प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ।।

अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा तथा प्राप्ति प्राकाम्य इशित्व और वशित्व ये सिद्धियां "अष्टसिद्धि" कहलाती हैं।


'सिद्धि' शब्द का तात्पर्य सामान्यतः ऐसी पारलौकिक और आत्मिक शक्तियों से है जो तप और साधना के द्वारा प्राप्त होती हैं। सनातन धर्म शास्त्रों में अनेक प्रकार की सिद्धियां वर्णित हैं जिन में आठ सिद्धियां अधिक प्रसिद्ध है जिन्हें 'अष्टसिद्धि' कहा जाता है और जिन का वर्णन उपर्युक्त श्लोक में किया गया है ।


गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी गई श्री हनुमान चालीसा की वह चौपाई “अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता अस बर दीन जानकी माता” जिसमें तुलसीदास जी बताते हैं कि हनुमान जी आठ सिद्धियाँ और नौ निधियों से संपन्न हैं।


अष्टसिद्धि का विवरण

१. अणिमा : अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि अणिमा हैं, जिसका अर्थ! अपने देह को एक अणु के समान सूक्ष्म करने की शक्ति से हैं। जिस प्रकार हम अपने नग्न आंखों से एक अणु को नहीं देख सकते, उसी तरह अणिमा सिद्धि प्राप्त करने के पश्चात दूसरा कोई व्यक्ति सिद्धि प्राप्त करने वाले को नहीं देख सकता हैं। साधक जब चाहे एक अणु के बराबर का सूक्ष्म देह धारण करने में सक्षम होता हैं।


२. महिमा : अणिमा के ठीक विपरीत प्रकार की सिद्धि हैं महिमा, साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित विशालता करने में सक्षम होता हैं, वह अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकता हैं।


३. गरिमा : इस सिद्धि को प्राप्त करने के पश्चात साधक अपने शरीर के भार को असीमित तरीके से बढ़ा सकता हैं। साधक का आकार तो सीमित ही रहता हैं, परन्तु उसके शरीर का भार इतना बढ़ जाता हैं कि उसे कोई शक्ति हिला नहीं सकती हैं।


४. लघिमा : साधक का शरीर इतना हल्का हो सकता है कि वह पवन से भी तेज गति से उड़ सकता हैं। उसके शरीर का भार ना के बराबर हो जाता हैं।


५. प्राप्ति : साधक बिना किसी रोक-टोक के किसी भी स्थान पर, कहीं भी जा सकता हैं। अपनी इच्छानुसार अन्य मनुष्यों के सनमुख अदृश्य होकर, साधक जहाँ जाना चाहें वही जा सकता हैं तथा उसे कोई देख नहीं सकता हैं।


६. प्रकाम्य : साधक किसी के मन की बात को बहुत सरलता से समझ सकता हैं, फिर सामने वाला व्यक्ति अपने मन की बात की अभिव्यक्ति करें या नहीं।


७. ईशत्व : यह भगवान की उपाधि हैं, यह सिद्धि प्राप्त करने से पश्चात साधक स्वयं ईश्वर स्वरूप हो जाता हैं, वह दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकता हैं।


८. वशित्व : वशित्व प्राप्त करने के पश्चात साधक किसी भी व्यक्ति को अपना दास बनाकर रख सकता हैं। वह जिसे चाहें अपने वश में कर सकता हैं या किसी की भी पराजय का कारण बन सकता हैं।


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सिद्धिष्टकेश्वर महाराज विनायक के गर्भगृह के अंदर स्थित है, जो K-58/101, लोहटिया में स्थित है, जिसे बड़ा गणेश के नाम से जाना जाता है।
Siddhiasthakeshwar is inside Maharaj Vinayak sanctum is located at K-58/101, Lohatia Known as Bada Ganesh.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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