Urvashishwar (ऊर्वशीश्वर)

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Urvashishwar

ऊर्वशीश्वर

भगवान शिव के गृहपति अवतार का दर्शन करने के लिए काशी में अनेक ऋषि, महर्षि, महात्मा, संत, देवी-देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, अप्सराएं  तथा अन्य आए। इसी क्रम में नारायण के उरु (जंघा) भाग से उत्पन्न अप्सरा श्रेष्ठ उर्वशी काशी आयीं उन्होंने काशी में कुंड निर्माण कराकर शिवलिंग की स्थापना की जिसे ऊर्वशीश्वर के नाम से जाना जाता है। कुंड का नाम उर्वशी कुंड था जो लिंग के समीप था वर्तमान में पाट दिया गया है।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

तरुरत्नंपारिजातः स्त्रीरत्नं सोर्वशी त्विह । नंदनं वनरत्नं च रत्नं मंदाकिनी ह्यपाम् ।।
पारिजात - सबसे उत्कृष्ट वृक्ष, स्त्रियों में आभूषण (रत्न) - उर्वशी, सबसे उत्कृष्ट वन - नंदन और सबसे उत्कृष्ट नदी (जलमार्ग) मंदाकिनी (गंगा) यहीं हैं।
त्रयस्त्रिंशत्सुराणां या कोटिः श्रुति समीरिता । प्रतीक्षते साऽवसरं सेवायै प्रत्यहंत्विह ।।
वेदों में वर्णित तैंतीस करोड़ सुर (देवता)  प्रतिदिन यहां काशी में (अपने प्रभु की) सेवा के लिए अपनी बारी की प्रतीक्षा करते हैं।

तिलोत्तमोर्वशीरंभा प्रभा विद्युत्प्रभा शुभा । सुमंगला शुभालापा सुशीलाड्या वरांगनाः ।।
क्वणत्कंकण पात्राणि कृत्वा करतलं मुदा । मुक्तमुक्ताफलाढ्यानि यक्षकर्दमवंति च ।।
वज्रवैदूर्य दीपानि हरिद्रा लेपनानि च । गारुत्मतैकरूपाणि शंखशुक्तिदधीनि च ।।
पद्मरागप्रवालाख्यरत्नकुंकुमवंति च । गोमेदपुष्परागेंद्र नीलसन्माल्यभांजि च ।।
तिलोत्तमा, उर्वशी, रंभा, तेजस्वी विद्युत्प्रभा, सुमंगला, शुभलापा, सुशीला तथा अन्य उत्कृष्ट देवस्त्रियाँ हाथों में प्रसन्नतापूर्वक बर्तन लिये हुए थीं, जिनकी चूड़ियाँ बज रही थीं। बर्तनों में मोती, यक्षकर्दम (कपूर आदि का पेस्ट), धधकते हीरे और लापीस, लाजुली, दीपक, हल्दी और अन्य अक्षत, पन्ना, शंख, सीप के गोले, दही, केसर, मूंगा और माणिक रत्न, गोमेद, पुष्पराग और  इंद्रनीला पत्थर की अच्छी मालाएँ थीं। (विश्वानर प्रसंग)

कल्पवृक्षादि वृक्षांश्च धातून्कांचनमुख्यतः । दिव्यस्त्रीरुर्वशीमुख्या गरुडादीन्पतत्त्रिणः ।।
उसे इच्छा फल देने वाले कल्पवृक्ष से प्रारम्भ होने वाले वृक्षों का ध्यान करना चाहिये; धातुएँ जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण सोना है; दिव्य देवियाँ जिनमें से प्रमुख हैं उर्वशी; गरुड़ से प्रारम्भ होने वाले पक्षी।

तथैवाप्सरसः कुंडान्मेनकाख्याच्छतद्वयम् । उर्वशीकुंडतः प्राप्ताः सहस्रं द्विशताधिकम् ।।
दिव्य युवती मेनका के नाम पर बने पवित्र कुंड से दो सौ लोग आये। उर्वशी कुंड से एक हजार दो सौ ब्राह्मण ज्येष्ठेश्वर क्षेत्र को आये। (ज्येष्ठेश्वर प्रसंग)

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उर्वशीश्वर महादेव मंदिर औसानगंज, गोलाबाग, जे 56/108, पीपल के पेड़ (नन्हू कान्हू) के पास स्थित हैं।
Urvashishwar Mahadev Temple is situated at Ausanganj, Golabagh, J 56/108, Near Peepal tree (Nanhu Kanhu).


For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी



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