।। काशी के भीतर स्थित मायापुरी (हरिद्वार) में भगवान श्रीनाथजी ।।
भगवान श्रीनाथ जी का द्वार जिस पर बाएं भाग में हनुमान जी तथा दाएं भाग में गरुड़ जी हैं।
स्थापना वर्ष / द्वारा : वल्लभ कुल (पुष्टिमार्गीय अनुयायियों द्वारा)
भ्रांतियां : वल्लभ कुल (पुष्टिमार्गीय अनुयायियों) द्वारा स्थापित श्रीनाथजी के विग्रह को क्षेत्रीय निवासियों ने अज्ञानवश हनुमान जी कहना प्रारम्भ कर दिया है। द्वार पर देखा जाए तो हनुमान जी और गरुड़ विराजमान है जो केवल भगवान नारायण के द्वार पर ही विराजमान होते हैं। मंदिर के अंदर देखने पर भगवान के दोनों तरफ दो सेवक वल्लभाचार्य जी तथा विट्ठलनाथ जी का चित्र दिखाई पड़ता है। मंदिर के सेवादार को यह स्पष्ट है कि वह भगवान श्रीनाथजी की ही सेवा कर रहे हैं। परंतु यह घोर आश्चर्य की बात है कि सामान्य जनमानस तथा क्षेत्रीय निवासी भगवान श्रीनाथजी को हनुमान जी कहकर बुला रहे हैं।
[काशी रहस्य (ब्रह्मवैवर्त पुराण)]
असिसम्भेदकोणे तु गङ्काद्वारं प्रकीर्तितम् । वृद्धकालात्पुरो भागे कृत्तिवासेश्चरावधि ।।
असि-गंगा संगम के समीप का क्षेत्र गंगाद्वार, हरिद्वार या मायापुरी का क्षेत्र है। वृद्धकालेश्वर के आगे कृत्तिवासेश्वर तक का क्षेत्र महाकाल की पुरी उज्जैनी है जो निश्चय ही पापों से जगत की रक्षा करती है।
विष्णोः पादमवन्तिकां गुणवतीं मध्ये च काञ्चीपुरीन् नाभिं द्वारवतीस्तथा च हृदये मायापुरीं पुण्यदाम्।
ग्रीवामूलमुदाहरन्ति मथुरां नासाञ्च वाराणसीम् एतद्ब्रह्मविदो वदन्ति मुनयोऽयोध्यापुरी मस्तकम् ।।
विराट् पुरुष भगवान् विष्णु के चरणों में उज्जैन है, मध्य भाग में कांचीपुरी । नाभि में द्वारकाधाम है, हृदय में हरिद्वार है, ग्रीवामूल मथुरा है । नासिकाग्र में काशीपुरी और मस्तक में अयोध्यापुरी है जो अवधधाम कहलाता है।
श्रीनाथजी, नाथद्वारा
श्रीनाथजी श्रीकृष्ण भगवान के ७ वर्ष की अवस्था के रूप हैं। श्रीनाथजी हिंदू भगवान कृष्ण का एक रूप हैं, जो सात साल के बच्चे (बालक) के रूप में प्रकट होते हैं। श्रीनाथजी का प्रमुख मंदिर राजस्थान के उदयपुर शहर से 49 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित नाथद्वारा के मंदिर शहर में स्थित है। श्रीनाथजी वैष्णव सम्प्रदाय के केंद्रीय पीठासीन देव हैं जिन्हें पुष्टिमार्ग (कृपा का मार्ग) या वल्लभाचार्य द्वारा स्थापित वल्लभ सम्प्रदाय के रूप में जाना जाता है। श्रीनाथजी को मुख्य रूप से भक्ति योग के अनुयायियों और गुजरात और राजस्थान में वैष्णव और भाटिया एवं अन्य लोगों द्वारा पूजा जाता है।
वल्लभाचार्य के पुत्र विठ्ठलनाथजी ने नाथद्वारा में श्रीनाथजी की पूजा को संस्थागत रूप दिया। श्रीनाथजी की लोकप्रियता के कारण, नाथद्वारा शहर को 'श्रीनाथजी' के नाम से जाना जाता है। लोग इसे बावा की (श्रीनाथजी बावा) नगरी भी कहते हैं। प्रारंभ में, बाल कृष्ण रूप को देवदमन (देवताओं का विजेता - कृष्ण द्वारा गोवर्धन पहाड़ी के उठाने में इंद्र की अति-शक्ति का उल्लेख) के रूप में संदर्भित किया गया था। वल्लभाचार्य ने उनका नाम गोपाल रखा और उनकी पूजा का स्थान 'गोपालपुर' रखा। बाद में, विट्ठलनाथजी ने उनका नाम श्रीनाथजी रखा। श्रीनाथजी की सेवा दिन के 8 भागों में की जाती है।
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श्रीनाथ जी असि घाट पर स्थित है।
Shrinath Ji is situated at Asi Ghat.
For the benefit of Kashi residents and devotees:-
From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi
काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-
प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्या, काशी