Pulastyeshwar (पुलस्त्येश्वर)

0

Pulastyeshwar

पुलस्त्येश्वर

महर्षि पुलस्त्य की पत्नी प्रीति द्वारा काशी में स्थापित लिंग प्रीतिकेश्वर : यहाँ देखें

मरीचिरङ्गिरा अत्रिः पुलस्त्यः पुलहः क्रतुः । षडेते ब्रह्मणः पुत्रा वीर्यवन्तो महर्षयः ॥
मरीचि, अंगिरा, अत्रि, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु—ये ब्रह्माजी के छः पुत्र बड़े शक्तिशाली महर्षि हैं
राक्षसाश्च पुलस्त्यस्य वानराः किन्नरास्तथा । यक्षाश्च मनुजव्याघ्र पुत्रास्तस्य च धीमतः ॥
 नरश्रेष्ठ! बुद्धिमान् पुलस्त्य मुनि के पुत्र राक्षस, वानर, किन्नर तथा यक्ष हैं।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

इति द्विजवचः श्रुत्वा प्रोचतुर्गणसत्तमौ । शिवशर्मञ्छिवमते सदा सप्तर्षयोमलाः ।।
वसंतीह प्रजाः स्रष्टुं विनियुक्ताः प्रजासृजा । मरीचिरत्रिः पुलहः पुलस्त्यः क्रतुरङ्गिराः ।।
वसिष्ठश्च महाभागो ब्रह्मणो मानसाः सुताः । सप्त ब्रह्माण इत्येते पुराणे निश्चयं गताः ।।
संभूतिरनसूया च क्षमा प्रीतिश्च सन्नतिः । स्मृतिरूर्जा क्रमादेषां पत्न्यो लोकस्य मातरः ।।
ब्राह्मण के इन शब्दों को सुनकर उत्कृष्ट गणों ने कहा: “हे शुभ बुद्धि वाले शिवशर्मन, अशुद्धियों से रहित सात ऋषि, जिन्हें ब्रह्मा ने विषयों के निर्माण के लिए निर्देशित किया था, यहाँ (काशी में) रहते हैं। वे हैं मरीचि, अत्रि, पुलह, पुलस्त्य, क्रतु, अंगिरस और यशस्वी वसिष्ठ। वे ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। पुराणों में इन्हें सात ब्रह्मा कहा गया है। संभूति, अनसूया, क्षमा, प्रीति, सन्नति, स्मृति और ऊर्जा (अर्थात अरुंधति) क्रमशः उनकी पत्नियाँ हैं। वे जगत की माताएँ हैं।
एतेषां तपसा चैतद्धार्यते भुवनत्रयम् । उत्पाद्य ब्रह्मणा पूर्वमेते प्रोक्ता महर्षयः ।।
प्रजाः सृजत रे पुत्रा नानारूपाः प्रयत्नतः । ततः प्रणम्य ब्रह्माणं तपसे कृतनिश्चयाः ।।
अविमुक्तं समासाद्य क्षेत्रंक्षेत्रज्ञधिष्ठितम् । मुक्तये सर्वजंतूनामविमुक्तं शिवेन यत् ।।
प्रतिष्ठाप्य च लिंगानि ते स्वनाम्नांकितानि च । शिवेति परया भक्त्या तेपुरुग्रं तपो भृशम ।।
तुष्टस्तत्तपसा शंभुः प्राजापत्यपदं ददौ । लिंगान्यत्रीश्वरादीनि दृष्ट्वा काश्यां प्रयत्नतः ।।
तीनों लोकों का संपूर्ण क्षेत्र इन्हीं की तपस्या के बल पर स्थित है। पहले उन्हें रचने के बाद ब्रह्मा ने इन महान ऋषियों से कहा: “हे मेरे पुत्रों, प्रयत्नपूर्वक भिन्न-भिन्न प्रकार की प्रजा उत्पन्न करो।” उन्होंने तप करने का संकल्प लिया। ब्रह्मा की पूजा करने के बाद, वे अविमुक्त गए, वह पवित्र स्थान जिसकी अध्यक्षता क्षेत्रज्ञ (व्यक्तिगत आत्मा के रूप में शिव) ने की थी और सभी जीवित प्राणियों की मुक्ति सुनिश्चित करने के उद्देश्य से शिव ने इसे कभी नहीं छोड़ा था। फिर उन्होंने अपने नाम पर लिंगों की स्थापना की। शिव की भक्ति में लीन होकर उन्होंने कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर, शंभू ने उन्हें प्रजापत्य क्षेत्र प्रदान किया।
पुलहेश पुलस्त्येशौ स्वर्गद्वारस्य पश्चिमे । तौ दृष्ट्वा मनुजो लोके प्राजापत्ये महीयते ।।
पुलहेश्वर और पुलस्त्येश्वर स्वर्गद्वार के पश्चिम में हैं। इनके दर्शन से मनुष्य प्रजापत्य लोक में प्रतिष्ठित होता है।

महर्षि पुलस्त्य

महर्षि पुलस्त्य भी पूर्वोक्त ऋषियों की भाँति ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। ये भी अपनी तपस्या, ज्ञान और दैवी सम्पत्ति के द्वारा जगत्के कल्याणसम्पादन में लगे रहते हैं। इनका प्रभाव इतना अधिक है कि जब एक बार अपनी दुष्टता के कारण रावण को कार्तवीर्य सहस्रार्जुन के यहाँ बन्दी होना पड़ा था तब इन्होंने उनसे कहा कि इस बेचारे को मुक्त कर दो और इनकी आज्ञा सुनते ही वह सहस्रार्जुन जिसके सामने बड़े-बड़े देवता और वीर पुरुष नतमस्तक हो जाते थे, इनकी आज्ञाका उल्लंघन नहीं कर सका। इनके तपोबल के सामने बरबस उसका सिर झुक गया। पुलस्त्य की सन्ध्या, प्रतीची आदि कई स्त्रियाँ थीं और दत्तोलि आदि कई पुत्र थे। यही दत्तोलि स्वायम्भुव मन्वन्तर में अगस्त्य नाम से प्रसिद्ध हुए।

इन्हीं की एक पत्नी हविर्भू से विश्रवा हुए थे, जिनके पुत्र कुबेर, रावण आदि हुए। ये योग विद्या के आचार्य माने जाते हैं। ऋषि पुलस्त्य ने ही देवर्षि नारद को वामनपुराण की कथा सुनायी है। जब पराशर क्रुद्ध होकर राक्षसों के नाश के लिये एक महान् यज्ञ कर रहे थे, तब वसिष्ठ के परामर्श से पुलस्त्य का अनुरोध मानकर उन्होंने यज्ञ बन्द कर दिया, जिससे महर्षि पुलस्त्य उन पर अत्यन्त प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी कृपा और आशीर्वाद से समस्त शास्त्रों का पारदर्शी बना दिया। भगवान के अवतार ऋषभदेव ने बहुत दिनों तक राज्यपालन करने के पश्चात् अपने ज्येष्ठ पुत्र भरत को राज्य देकर जब वनगमन किया तब उन्होंने महर्षि पुलस्त्य के आश्रम में रहकर ही तपस्या की थी। ब्रह्माके सर्वतत्त्वज्ञ पुत्र ऋभु से तत्त्वज्ञान प्राप्त करने वाले निदाघ इन्हीं महर्षि पुलस्त्य के पुत्र थे। ये अब भी जगत्की रक्षा-दीक्षा में तत्पर हैं और संसार में यत्किंचित् सुख-शान्ति का दर्शन हो रहा है, उसमें इनका बहुत बड़ा हाथ है। महाभारत और पुराणों में इनकी पर्याप्त चर्चा है।


GPS LOCATION OF THIS TEMPLE CLICK HERE

पुलस्त्येश्वर महादेव, नीलकंठ, मणिकर्णिका सी.के.33/43 पर स्थित है।
Pulastyeshwar Mahadev is located at Neelkanth, Manikarnika C.K.33/43.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


Post a Comment

0Comments
Post a Comment (0)