Balishwar & Baneshwar Ling (बलीश्वर एवं बाणेश्वर लिंग)

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Balishwar & Baneshwar Ling

बलिश्वर एवं बाणेश्वर लिंग

प्रह्लाद जी द्वारा काशी में लिंग स्थापना के पश्चात उनके पुत्र विरोचन जी द्वारा उनके समीप में जो शिवलिंग स्थापित किया गया उसे वैरोचनेश्वर के नाम से जाना जाता है। इसके पश्चात प्रह्लाद जी की वंशावली में विरोचन के पुत्र बलि एवं बलि के पुत्र बाणासुर द्वारा भी लिंग स्थापना काशी में स्थित प्रह्लाद तीर्थ में की गयी जिन्हे बलीश्वर तथा बाणेश्वर के नाम से जाना जाता है।

काशी का प्रह्लाद तीर्थ
जैसा कि स्कन्द पुराण काशी खंड में वर्णित है कि विश्व के समस्त तीर्थ अपने देवताओं के साथ काशी में प्राकट्य हैं। यहां उनका दर्शन पूजन उनके मूल स्थान से कम से कम 5 गुना फलदाई होता है। अतः हर द्रोही अर्थात हरदोई से प्रह्लाद तीर्थ का काशी में प्राकट्य हुआ है। जैसा की मूल स्थान (हरदोई) में घाट का नाम भी प्रह्लाद घाट है एवं भगवान नरसिंह प्रह्लाद जी के साथ हैं। काशी में प्रह्लाद जी द्वारा शिवलिंग की स्थापना तथा भगवान हरि के केशव स्वरूप की स्थापना और विदार नरसिंह के रूप में भगवान स्वयं यहाँ अवतरित है। 

तुलसीदास जी काशी में सर्वप्रथम इसी घाट पर आए। तुलसीदास जी द्वारा ११  (एकादश) हनुमान जी का विग्रह काशी के भीतर स्थापित किया गया प्रह्लाद घाट पर उनके द्वारा स्थापित हनुमान जी का विग्रह प्रह्लाद हनुमान के नाम से सर्वविदित है।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

वैरोचनेश्वरं लिंगं स्वलीनात्पुरतः स्थितम्। तदुत्तरे बलीशं च महाबलविवर्धनम् ।।

।। तत्रैव लिंगं बाणेशं पूजितं सर्वकामदम् ।।
वैरोचनेश्वर लिंग स्वर्लिनेश्वर के सामने स्थित है। इनके उत्तर में बलीश्वर है जो महान शक्ति का कारण बनता है। बाणेश्वर लिंग (जो कि वहीं है, यदि) की पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाएं प्रदान करते हैं।

महाराजा बलि एवं बाणासुर

कश्यप ऋषि ने दिति के गर्भ से हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र एवं सिंहिका और होलिका नामक दो पुत्री को जन्म दिया। ब्रह्मा के वरदान के चलते दोनों ही पुत्र शक्तिशाली और अत्याचारी बन गए थे। भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर हिरण्याक्ष का वध किया था और दूसरी ओर नृसिंह अवतार धारण करके हिरण्यकश्यप का वध कर दिया था। प्रहलाद की बुआ होलिका जहां आग में जलकर मर गई थी वहीं दूसरी बुआ सिंहिका को हनुमानजी ने लंका जाते वक्त रास्ते में मार दिया था।
 
हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। भक्त प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद वे ही असुरों के सम्राज्य के राजा बने थे। प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन हुए और विरोचन से महान राजा बलि का जन्म हुआ जो महाबलीपुरम के राजा बने। इन बलि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी।

बलि सप्तचिरंजीवियों में से एक, पुराणप्रसिद्ध विष्णुभक्त, दानवीर, महान् योद्धा थे। विरोचन पुत्र असुरराज बलि सभी युद्ध कौशल में निपुण थे। इन्हें परास्त करने के लिए विष्णु का वामनावतार हुआ था। इसने असुरगुरु शुक्राचार्य की प्रेरणा से देवों को विजित कर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया । समुद्रमंथन से प्राप्त रत्नों के लिए जब देवासुर संग्राम छिड़ा और असुरों एवं देवताओं के बीच युद्ध हुआ तो असुरों ने अपनी मायावी शक्तियों एवं का प्रयोग कर के देवताओं को युद्ध में परास्त किया। उस के बाद राजा बलि ने विश्वजित्‌ और शत अश्वमेध यज्ञों का संपादन कर तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया। कालांतर में जब यह अंतिम अश्वमेघ यज्ञ का समापन कर रहा था, तब दान के लिए वामन रूप में ब्राह्मण वेशधारी विष्णु उपस्थित हुए। शुक्राचार्य के सावधान करने पर भी बलि दान से विमुख न हुआ। वामन ने तीन पग भूमि दान में माँगी और संकल्प पूरा होते ही विशाल रूप धारण कर प्रथम दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया। शेष दान के लिए बलि ने अपना मस्तक नपवा दिया।

बाणासुर बलि के सौ पुत्रों में ज्येष्ठ था। अनौपम्या नाम की इसकी पत्नी को नारद ने एक मंत्र दिया था, जिससे यह सबको प्रसन्न कर सकती थी। उसके एक सहस्र बाहें थीं। वह शोणितपुर पर राज्य करता था। अनिरुद्ध वृष्णिवंशीय कृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र। इनके रूप पर मोहित होकर असुरों की राजकुमारी उषा, जो बाणासुर की कन्या थी, इन्हें अपनी एक सखी की सहायता से राजधानी शेणितपुर उठा ले गई। कृष्ण और बलराम बाणासुर को युद्ध में परास्त कर अनिरुद्ध को उषा सहित द्वारका ले लाए।

बाणासुर स्कंद को खेलता देख शिव की ओर आकृष्ट हुआ। उसने शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या की थी। शिव ने वर मांगने को कहा तो उसने निम्न वर मांगे- देवी पार्वती उसे पुत्र-रूप में ग्रहण करें तथा वह स्कंद का छोटा भाई माना जाए। वह शिव से आरक्षित रहेगा। उसे अपने समान वीर से युद्ध करने का अवसर मिले। भगवान शिव ने कहा- "अपने स्थान पर स्थापित तुम्हारा ध्वज जब खंडित होकर गिर जायेगा, तभी तुम्हें युद्ध का अवसर मिलेगा।" बाणासुर की एक सहस्र भुजाएं थीं। उसने अपने मन्त्री कुंभांड को समस्त घटनाओं के विषय में बताया तो वह चिंतित हो उठा। तभी इन्द्र के वज्र से उसकी ध्वजा टूटकर नीचे गिर गयी।


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EXACT GPS LOCATION : 25.323125402987035, 83.03008612884982

बलिश्वर एवं बाणेश्वर लिंग रानी घाट पर पंचाग्नि अखाड़ा के उत्तर में स्थित है।
Balishwar and Baneshwar Linga are situated to the north of Panchagni Akhara at Rani Ghat.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी

॥ हरिः ॐ तत्सच्छ्रीशिवार्पणमस्तु ॥


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