Vairochaneshwar (वैरोचनेश्वर)

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Vairochaneshwar

वैरोचनेश्वर

हिरण्यकश्यप के चार पुत्र थे- अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। भक्त प्रह्लाद विष्णु के भक्त थे। हिरण्यकश्यप के वध के बाद वे ही असुरों के सम्राज्य के राजा बने थे। प्रहलाद के महान पुत्र विरोचन हुए और विरोचन से महान राजा बलि का जन्म हुआ जो महाबलीपुरम के राजा बने। इन बलि से ही श्री विष्णु ने वामन बनकर तीन पग धरती मांग ली थी।

प्रह्लाद जी द्वारा काशी में लिंग स्थापना के पश्चात उनके पुत्र विरोचन जी द्वारा उनके समीप में जो शिवलिंग स्थापित किया गया उसे वैरोचनेश्वर के नाम से जाना जाता है। इसके पश्चात प्रह्लाद जी की वंशावली में विरोचन के पुत्र बलि एवं बलि के पुत्र बाणासुर द्वारा भी लिंग स्थापना काशी में स्थित प्रह्लाद तीर्थ में की गयी।

काशी का प्रह्लाद तीर्थ
जैसा कि स्कन्द पुराण काशी खंड में वर्णित है कि विश्व के समस्त तीर्थ अपने देवताओं के साथ काशी में प्राकट्य हैं। यहां उनका दर्शन पूजन उनके मूल स्थान से कम से कम 5 गुना फलदाई होता है। अतः हर द्रोही अर्थात हरदोई से प्रह्लाद तीर्थ का काशी में प्राकट्य हुआ है। जैसा की मूल स्थान (हरदोई) में घाट का नाम भी प्रह्लाद घाट है एवं भगवान नरसिंह प्रह्लाद जी के साथ हैं। काशी में प्रह्लाद जी द्वारा शिवलिंग की स्थापना तथा भगवान हरि के केशव स्वरूप की स्थापना और विदार नरसिंह के रूप में भगवान स्वयं यहाँ अवतरित है। 

तुलसीदास जी काशी में सर्वप्रथम इसी घाट पर आए। तुलसीदास जी द्वारा ११  (एकादश) हनुमान जी का विग्रह काशी के भीतर स्थापित किया गया प्रह्लाद घाट पर उनके द्वारा स्थापित हनुमान जी का विग्रह प्रह्लाद हनुमान के नाम से सर्वविदित है।

स्कन्दपुराण : काशीखण्ड

वैरोचनेश्वरश्चैष पुरः प्रह्लादकेशवात् । बलिकेशवनामासावेष नारदकेशवः ।।
प्रह्लादकेशव के सामने वैरोचनेश्वर है। इन (भगवान) का नाम बालिकेश्व है और यह नारदकेशव है।

वैरोचनेश्वरं लिंगं स्वलीनात्पुरतः स्थितम्। तदुत्तरे बलीशं च महाबलविवर्धनम् ।।
।। तत्रैव लिंगं बाणेशं पूजितं सर्वकामदम् ।।
वैरोचनेश्वर लिंग स्वर्लिनेश्वर के सामने स्थित है। इनके उत्तर में बलीश्वर है जो महान शक्ति का कारण बनता है। बाणेश्वर लिंग (जो कि वहीं है, यदि) की पूजा की जाए तो सभी मनोकामनाएं प्रदान करते हैं।


प्रह्लाद जी की संछिप्त वंशावली

हिरण्यकशिपु महर्षि कश्यप और दक्षपुत्री दिति का ज्येष्ठ पुत्र था। उनका छोटा भाई हिरण्याक्ष था और होलिका दोनों की बहन थी। यहीं से दैत्य जाति का आरम्भ हुआ। हिरण्याक्ष के दो प्रसिद्ध पुत्र हुए - कालनेमि एवं अंधकासुर। हिरण्याक्ष का वध श्रीहरि ने वाराह अवतार लेकर कर दिया। होलिका की मृत्यु भी हिरण्यकशिपु के पुत्र प्रह्लाद के वध के प्रयास में हो गयी। हिरण्याक्ष के पुत्र कालनेमि का वध भगवान विष्णु ने किया और अंधक को भगवान शंकर ने अपना पुत्र बना लिया।

हिरण्यकशिपु ने कयाधु नामक कन्या से विवाह किया जिससे उसे पांच पुत्र - प्रह्लाद, संह्लाद, आह्लाद, शिवि एवं वाष्कल तथा एक पुत्री सिंहिका की प्राप्ति हुई। सिंहिका ने विप्रचित्ति दानव से विवाह किया जिससे उसे स्वर्भानु नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। समुद्र मंथन के समय यही स्वर्भानु छिपकर देवताओं के मध्य बैठ गया ताकि अमृत का पान कर सके। तब नारायण ने अपने सुदर्शन से उसका सर काट दिया। तब उसी स्वर्भानु का सर राहु और धड़ केतु कहलाया।

प्रह्लाद महान विष्णु भक्त निकले जिस कारण हिरण्यकशिपु ने उसे मारना चाहा। तब श्रीहरि ने पुनः नृसिंह अवतार लेकर उसका वध कर दिया और प्रह्लाद को राजा बना दिया। प्रह्लाद ने देवी नामक कन्या से विवाह किया जिससे उन्हें तीन पुत्र प्राप्त हुए - विरोचन, कुम्भ एवं निकुम्भ। उसकी विरोचना नामक एक पुत्री भी हुई।

विरोचन ने देवाम्बा नामक कन्या से विवाह किया जिससे उसे एक पुत्र प्राप्त हुआ बलि। वे भी अपने दादा प्रह्लाद की भांति महान विष्णु भक्त हुए। श्रीहरि ने वामन अवतार लेकर बलि को पाताल भेज दिया जहाँ वे महाबली कहलाये। केरल का ओणम पर्व इन्ही के सम्मान में मनाया जाता है।

महाबली के १०० पुत्र हुए जिनमें से ज्येष्ठ महाप्रसिद्ध बाणासुर था जो भगवान शंकर का अनन्य भक्त था। बलि की दो पुत्री भी हुई - रत्नमाला एवं वज्रज्वला। वज्रज्वला का विवाह रावण के भाई कुम्भकर्ण से हुआ। इनके कुम्भ और निकुम्भ नामक दो प्रतापी पुत्र हुए। (प्रह्लाद के भी इसी नाम के दो पुत्र थे)।

बाणासुर की एक परम सुंदरी पुत्री हुई उषा जिसका विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध से हुआ। इन दोनों का एक पुत्र हुआ वज्र। जब मौसल युद्ध में पुरे यादव वंश का नाश हो गया तो केवल वज्र ही उस कुल में जीवित बचा जिसे युधिष्ठिर ने इंद्रप्रस्थ का राज्य सौंपा।

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वैरोचनेश्वर प्रह्लादेश्वर महादेव मंदिर के भीतर ए-10/80 प्रह्लाद घाट पर स्थित है।
Vairochaneshwar is located at A-10/80 Prahlad Ghat inside Prahladeshwar Mahadev Temple.

For the benefit of Kashi residents and devotees:-

From : Mr. Sudhanshu Kumar Pandey - Kamakhya, Kashi


काशीवासी एवं भक्तगण हितार्थ:-                                                   

प्रेषक : श्री सुधांशु कुमार पांडेय - कामाख्याकाशी


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